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अनब्याही मां को वापस मिल गया 2 महीने का बेबी, दिलचस्प है यह कानूनी कहानी

एक अनब्याही मां को कथित तौर पर अपने नवजात शिशु को बायकुला के पास एक बाल गृह में सौंपने के लिए मजबूर किया गया था. जिसके बाद महिला ने बच्चे को वापस पाने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. इंसाफ की मांग कर ही महिला को आखिरकार अब अपना दो महीने का बच्चा वापस मिल गया है. हाई कोर्ट ने बाल कल्याण समिति को महिला द्वारा अपने बच्चे की कस्टडी के लिए किए गए आवेदन पर आदेश पारित करने का निर्देश दिया है.

बॉस ने किया था महिला का यौन शोषण

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक न्यायमूर्ति नितिन बोरकर और न्यायमूर्ति सोमशेखर सुंदरेशन ने बुधवार को बाल कल्याण समिति के आदेश पर गौर किया. आशा सदन बालगृह के वकील ऋषभ सेठ ने कहा कि सरेंडर डीड को रद्द कर दिया गया है और बच्चे को मां की देखभाल में छोड़ दिया गया है. दरअसल विदेश में काम करने के दौरान बॉस द्वारा यौन शोषण की शिकार हुई महिला (23) को छह महीने बाद पता चला कि वह गर्भवती है. क्योंकि महिला का परिवार रूढ़िवादी है, इसलिए उसने अपनी गर्भावस्था को छुपाया और आशा सदन में रहने लगी. उसने 29 मार्च को एक लड़की को जन्म दिया.

महिला ने दायर याचिका में क्या कहा

हालांकि बाद में उसके परिवार ने उसका समर्थन किया. जब उसने अपने बच्चे को घर ले जाने के लिए कहा, तो उससे 5 अप्रैल को एक सरेंडर डीड पर हस्ताक्षर करवाए गए और उससे कहा गया कि इसे रद्द करने के लिए उसके पास 60 दिन हैं. महिला की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि वह कभी भी अपने बच्चे को सरेंडर नहीं करना चाहती थी, लेकिन एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि बच्चे को वापस पाने का यही एकमात्र तरीका है.

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महिला को कैसे वापस मिला बच्चा

इसके बाद 2 मई को बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) (मुंबई सिटी-1) ने उसे सुनवाई का मौका दिया, लेकिन उसके बच्चे को वापस लेने के आवेदन पर कोई फैसला नहीं किया गया. न्यायाधीशों ने कहा कि चूंकि याचिका निष्फल हो गई है, इसलिए इसका मतलब यह नहीं है कि आरोप निराधार थे या प्रथम दृष्टया उनमें दम था. महिला की वकील तृप्ति भारदी ने कहा कि “जिस तरह से महिला के साथ व्यवहार किया गया, उससे वह सदमे में है और तनाव में है” और इन आरोपों पर अब हाईकोर्ट को ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है “क्योंकि मामला अपने आप सुलझ गया है. “

बॉम्बे हाई कोर्ट के जज ने क्या कहा

बॉम्बे हाईकोर्ट के जजों ने कहा कि यह स्पष्ट है कि ऐसे मामलों में, “भावनाएं बहुत अधिक होंगी और पक्षों के आचरण में तर्कसंगतता वैसी नहीं होगी जैसी कि सामान्य परिस्थितियों में होती है.” उन्होंने दोनों पक्षों से ईमानदारी से अनुरोध किया कि वे सब कुछ पीछे छोड़ दें और बच्चे के भविष्य पर ध्यान दें. ” न्यायाधीशों ने कहा कि उन्हें “एक सौहार्दपूर्ण बातचीत के लिए अपनी भावना का इस्तेमाल करना चाहिए… बच्चे के कल्याण को किसी भी अन्य प्रतिकूल भावनाओं और आशंकाओं से ऊपर रखना चाहिए.”



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