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एशिया के सबसे बड़े टीबी अस्पताल से क्यों भाग रहे हैं मरीज? आरटीआई के जरिए पता चला 

Asia’s largest TB hospital : आज भी कुछ लोग टीबी को कलंक की तरह देखते हैं. घर में यदि किसी को टीबी हो जाए, तो उसे अस्पताल में एडमिट कर उसे देखने तक नहीं आते हैं. मरीज के पास कोई नहीं रहता. नार्मल टीबी में कम से कम 6 महीने इलाज चलता है. मल्टी और एक्सटेंसिव ड्रग रेजिस्टेंस टीबी हो जाए, तो इलाज का कोर्स डेढ़ से दो साल तक भी चल सकता है. मुंबई में एशिया के सबसे बड़े टीबी हॉस्पिटल से टीबी मरीज भाग रहे हैं. टीबी मरीजों को लेकर आरटीआई से यह खुलासा हुआ है. साढ़े तीन सालों में 83 मरीज इलाज के बीच इस अस्पताल को छोड़कर भाग गए. बताया जा रहा है अस्पताल में स्टाफ और व्यवस्थाओं की कमी के अलावा मरीजों के परिवार का उनसे मुंह फेर लेना भी उनके भागने का बड़ा कारण है. अब ऐसी स्थिति में 2025 तक मुंबई को टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य आखिर कैसे पूरा होगा? 

1,547 मरीजों ने जिद कर डिस्चार्ज लिया

आरटीआई कार्यकर्ता चेतन कोठारी ने मुंबई के शिवड़ी टीबी अस्पताल से जानकारी मांगी थी कि बीते साढ़े तीन साल में कितने मरीज अस्पताल से भागे हैं? जवाब में पता चला कि बीते साढ़े तीन साल में मुंबई के शिवड़ी टीबी अस्पताल से 83 मरीज भाग गए हैं. अस्पताल से प्राप्त उत्तर के अनुसार, 2021 से मई 2024 तक जहां कुल 1,547 मरीजों ने जिद कर अस्पताल से डिस्चार्ज लिया, वहीं 83 मरीज अस्पताल से भाग गए. इन 83 मरीजों में पुरुषों की संख्या ज्यादा है. प्रशासन ने बताया कि 78 पुरुष और 5 महिलाएं अस्पताल से भाग गईं.

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किस साल कितने भागे?

2021 में कुल 11, 2022  में 25, 2023 में 35 और 2024 में 12 टीबी मरीज फरार हुए. वर्ष 2017 से 2023 के बीच तीन हजार से अधिक टीबी मरीज इलाज कराने के बजाय चिकित्सा सलाह के आधार पर घर चले गए हैं. नगर निगम का कहना है कि फरार होने वाले मरीज लगभग “गैर-संक्रामक” होते हैं और अस्पताल में लंबे समय तक रहने के कारण भाग जाते हैं. बताया जा रहा है कि अधिकांश मरीजों के भागने की वजह अकेलापन है. परिवार के लोगों ने इनसे मुंह मोड़ लिया, तो वहीं अस्पताल में स्टाफ और व्यवस्थाओं की कमी भी इनके भागने के मुख्य कारणों में शामिल है.

आईसीयू में बेड तक नहीं मिला

आरटीआई कार्यकर्ता चेतन कोठारी ने बताया कि स्टाफ की बहुत कमी है. अस्पताल पर बहुत लोड है. अस्पताल पर सरकार को ध्यान जाना चाहिए. स्टाफ की संख्या बढ़ानी चाहिए. वहां तो डॉक्टर भी इंफेक्ट हो जाते हैं. मरीज को परिवार वाले छोड़ देते हैं. वो अकेले हो जाते हैं और भाग जाते हैं. वहीं कुछ तो और बदनसीब होते हैं. ऐसा ही मुंबई की 44 साल की मानसी भगत के साथ हुआ. वह टीबी रोगी थीं. गंभीर स्टेज में थीं. उन्हें आईसीयू में बेड तक नसीब नहीं हुआ. आखिरकार, मानसी इलाज में मिली देरी के कारण चल बसीं. टीबी के उपचार के लिए एशिया के सबसे बड़े इस शिवड़ी टीबी अस्पताल में एक हजार से अधिक मरीजों को भर्ती करने की व्यवस्था तो बताई जाती है, लेकिन पीड़ित परिवार कहता है यहां भी आईसीयू बेड नहीं मिला.  
 

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