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1993 सीरियल ब्लास्ट के आरोपी अब्दुल करीम टुंडा को कोर्ट ने सबूतों के अभाव में किया बरी

1993 सीरियल ब्लास्ट (1993 Serial Bomb Blast) के आरोपी अब्दुल करीम टुंडा (Abdul Karim Tunda ) को अजमेर की टाडा कोर्ट ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है. कोर्ट ने फैसले में कहा कि टुंडा के खिलाफ कोई सीधा सबूत नहीं मिला है. टुंडा जो अब 80 वर्ष का हो चुका है, 1996 के बम विस्फोट मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद वर्तमान में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है. वह कई अन्य बम धमाके मामलों में भी आरोपी है. आतंकवादी दाऊद इब्राहिम के करीबी माने जाने वाले टुंडा को बम बनाने के कौशल के लिए “डॉ बम” के रूप में जाना जाता है.

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अदालत ने टुंडा के खिलाफ सबूतों की कमी का हवाला देते हुए उसे बरी किया है. जबकि इस मामले में दो अन्य आरोपियों – अमीनुद्दीन और इरफान को दोषी ठहराते हुए दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. टुंडा, जो अब 80 वर्ष का हो चुका है, 1996 के बम विस्फोट मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद वर्तमान में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है. वह कई अन्य बम विस्फोट मामलों में भी आरोपी है. आतंकवादी दाऊद इब्राहिम के करीबी माने जाने वाले, उन्हें बम बनाने के कौशल के लिए “डॉ बम” के रूप में जाना जाता है. 

आपको बता दें कि ये धमाके कोटा, कानपुर, सिकंदराबाद और सूरत से गुजरने वाली ट्रेनों में हुए थे. मुंबई बम धमाकों के कुछ ही महीनों बाद हुए इन ट्रेन बम धमाकों ने देश को झकझोर कर रख दिया था. दूर-दराज के शहरों के सभी मामलों को एक साथ जोड़ दिया गया और आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम के तहत एक विशेष अदालत द्वारा सुनवाई की गई. जांच की कमान केंद्रीय एजेंसी सीबीआई के हाथ में थी.राजस्थान की अदालात द्वारा टुंडा को बरी किए जाने के फैसले को चुनौती देने के लिए CBI सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती है. 

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टुंडा 40 साल की उम्र में आतंकवादी संगठनों से जुड़ा. इससे  पहले वह बढ़ई का काम करता था.1993 में मुंबई में हुए धमाकों के बाद वह पहली बार जांच के घेरे में आया. बम बनाते समय हुए विस्फोट में उसने अपना बायां हाथ खो दिया था. उसने लश्कर-ए-तैयबा, इंडियन मुजाहिदीन, जैश-ए-मोहम्मद और बब्बर खालसा सहित कई आतंकवादी संगठनों के साथ काम किया था. 2013 में, उसे भारत-नेपाल सीमा के करीब स्थित उत्तराखंड के बनबसा में गिरफ्तार किया गया था. चार साल बाद, हरियाणा की एक अदालत ने उसे 1996 विस्फोट मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. 


 

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