2018 में विज्ञापन, 5 साल के बाद नियुक्ति, फिर जनरल-OBC के फेर में फंसी; जानें यूपी शिक्षक भर्ती का पूरा विवाद
नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश में 69 हज़ार शिक्षक भर्ती मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को तीन महीनों में नई सूची तैयार करने का आदेश दिया है. इसको लेकर योगी सरकार ने तय किया है कि वो हाईकोर्ट के इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती ना देकर कोर्ट के निर्णय को मानते हुए नई सूची बनाएगी. इस संबंध में रविवार शाम को सीएम ने उच्च स्तरीय बैठक की. इधर राज्य सरकार की घोषणा के बावजूद ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थी मंगलवार को लखनऊ में धरने पर बैठ गए. इनका कहना है कि हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में फ़ैसला दिया है तो अब सरकार तत्काल उन्हें नियुक्ति दे.
सामान्य वर्ग के शिक्षक क्या बोले?
वहीं दूसरी तरफ़ सामान्य वर्ग के चयनित शिक्षक भी सरकार से न्याय की गुजर लगा रहे हैं. सामान्य वर्ग के शिक्षकों का कहना है कि उनके दस्तावेज़ों में कोई ग़लती नहीं, उनकी योग्यता में कोई कमी नहीं. ऐसे में चार साल से नौकरी कर रहे सामान्य वर्ग के शिक्षक अधिकारियों की ग़लती की सज़ा क्यों भुगतें? सामान्य वर्ग के शिक्षकों का कहना है कि सरकार ओबीसी वर्ग वालों को समायोजित कर शिक्षक बनाए लेकिन उनकी नौकरी ना ले. उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से न्याय देने की अपील की. सामान्य वर्ग के शिक्षक भी अब धरना देने और उनकी मांगें ना माने जाने पर सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कह रहे हैं.
हाईकोर्ट ने क्या आदेश दिया है?
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच की डबल पीठ ने अपने आदेश में यूपी सरकार से 69000 सहायक शिक्षक भर्ती मामले में नये सिरे से मेरिट लिस्ट जारी करने को कहा है. कोर्ट ने कहा है कि 69 हज़ार शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में नई सूची आरक्षण कानून के तहत बनाई जाए. कोर्ट ने अभ्यर्थियों की तरफ़ से दायर याचिका पर पिछले हफ़्ते फ़ैसला देते हुए यूपी सरकार को कहा है कि मेरिट में आने वाले आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों को सामान्य श्रेणी में रखते हुए सूची तैयार की जायेगी. कोर्ट ने शासन से तीन महीने में प्रक्रिया पूरी करने को कहा है. कोर्ट ने कहा जो अध्यापक इस कार्यवाही से प्रभावित होंगे, उन्हें सत्र लाभ दिया जाए. कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि नई चयन सूची में बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 और आरक्षण अधिनियम 1994 के मुताबिक आरक्षण नीति का पालन किया जाए.
यूपी का 69 हज़ार भर्ती मामला है क्या?
दरअसल समाजवादी पार्टी सरकार ने 1,72,000 शिक्षा मित्रों का समायोजन शिक्षकों के तौर पर करने का आदेश दिया. इसमें से 1,37,000 हज़ार शिक्षा मित्र समायोजित हुए थे. इसके ख़िलाफ़ पहले से स्कूलों में पढ़ा रहे शिक्षक और अभ्यर्थी कोर्ट गए तो सुप्रीम कोर्ट ने समायोजन रद्द कर राज्य सरकार को ख़ाली पड़े पदों पर भर्ती करने का आदेश दिया. राज्य सरकार ने 69,000 और 68,500 शिक्षकों की भर्ती निकाली. इसमें 69 हज़ार शिक्षक भर्ती का विज्ञापन दिसंबर 2018 में आया. कुल 4 लाख 10 हज़ार युवाओं ने फॉर्म भरा. इसमें 1 लाख 47 हज़ार अभ्यर्थी पास हुए. इनमें आरक्षित वर्ग के 1 लाख 10 अभ्यर्थी शामिल थे. इन आरक्षित वर्ग में ओबीसी की संख्या 85,000 थी.
पहला विवाद कट ऑफ मार्क्स का था
सरकार ने परीक्षा होने तक कट ऑफ लिस्ट जारी नहीं की थी. परीक्षा के अगले दिन कट ऑफ लिस्ट जारी हुई, जिसमें सामान्य वर्ग के लिए 65 और ओबीसी के लिये 60 प्रतिशत अंक रखे गये. डिग्री और कट ऑफ को मिलकर गुणांक बनता है. इसी गुणांक के आधार पर मेरिट तैयार होती है. ऐसे में मेरिट लिस्ट में सामान्य वर्ग का कट ऑफ 67.11 और ओबीसी का कट ऑफ 66.73 रखा गया. नतीजों के बाद कुछ अभ्यर्थी हाईकोर्ट पहुंचे और दावा किया कि प्रश्न पत्र में एक सवाल ग़लत था. यानी अभ्यर्थियों को एक नंबर ग़लत तरीक़े से मिला. जांच हुई तो आरोप सही पाये गये. तब हाईकोर्ट ने कहा कि जितने अभ्यर्थी कोर्ट आये थे, उनके एक नंबर बढ़ाये जायें. इसके बाद कुछ अभ्यर्थियों ने दावा किया कि आरक्षण देने में अनियमितता हुई है.
इसके बाद ओबीसी आरक्षण पर सवाल उठा
कुल 69 हज़ार पदों में ओबीसी का हिस्सा 18,598 बन रहा था. परीक्षा पास करने वाले अभ्यर्थियों का कहना है कि बेसिक शिक्षा विभाग की वेबसाइट से नतीजों की पूरी लिस्ट निकाली. दावा किया गया कि तीन महीनों तक रिसर्च किया. इस लिस्ट में बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 और आरक्षण नियमावली 1994 का अनुपालन नहीं किया गया. आरक्षण नियमावली कहता है कि नंबर के हिसाब से जनरल केटेगरी के हिसाब से अंक पाने वालों को आरक्षित वर्ग से निकाल कर सामान्य वर्ग में रखा जाये. वहीं आरक्षित वर्ग को उनके कट ऑफ के हिसाब से चयनित किया जाये. दावा ये भी किया गया कि सरकार ने मात्र तीन फ़ीसदी ही ओबीसी वर्ग का चयन किया है. हालांकि जांच के बाद सरकार ने दावा किया कि 18,568 पदों के सापेक्ष 30 हज़ार से ज़्यादा ओबीसी का चयन इस भर्ती में हुआ है.
सरकार का ये दावा है
उत्तर प्रदेश सरकार के सूत्रों का कहना है कि 69000 शिक्षक भर्ती में अनारक्षित क्षेणी के 34,589 पदों में सामान्य वर्ग के 20,301 अभ्यर्थी, अन्य पिछड़ा वर्ग के 12,630, अनुसूचित जाति वर्ग से 1637 और अनुसूचित जनजाति के 21 अभ्यर्थियों का चयन किया गया था. ओबीसी समाज के 18,598 पदों में से 18,598 के साथ 12,630 को मिलाकर कुल 31,228 अभ्यर्थियों का चयन किया गया. यानी सरकारी सूत्रों के मुताबिक़ 69 हज़ार पदों में सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी मात्र 20,301 ही हैं. यानी सरकारी सूत्र बेसिक शिक्षा नियमावली और आरक्षण नियमावली के पालन किए जाने का दावा कर रहे हैं.
आरक्षण पर कोर्ट पहुंचे अभ्यर्थी
अभ्यर्थियों का दावा है कि सरकार ने पास हुए ओबीसी अभ्यर्थियों में 27% ऐसे अभ्यर्थियों को चयनित किया, जो ओबीसी कट ऑफ पा रहे थे. यानी दावे के मुताबिक़ आरक्षण नियमावली का पालन नहीं किया गया. इसके बाद राज्य सरकार से लेकर पिछड़ा वर्ग आयोग और हाईकोर्ट तक में अभ्यर्थियों ने अपनी मांग उठाई. दावा है कि पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी माना की गड़बड़ी हुई है. आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी हाईकोर्ट की डबल बेंच के पास गये और अब डबल बेंच ने अपना फ़ैसला सुनाया है. इसके बाद राज्य सरकार को नई सूची जारी करनी है. ऐसे में सवाल ये है कि जो शिक्षक भर्ती हो चुके हैं, क्या उनकी नौकरी जाएगी या सरकार कोई दूसरा रास्ता निकालेगी.