आखिर डोनाल्ड ट्रंप के आते ही जलवायु सम्मेलन का 'मौसम' क्यों हो गया खराब
नई दिल्ली:
अजरबैजान के बाकू में 11 नवंबर से संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन होने जा रहा है. इस सालाना जलवायु सम्मेलन पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हैं. दुनिया में जलवायु संकट की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए पैसों की जरूरत है. अमेरिका समेत विकसित देशों को यह ‘दान’ 10 गुना तक बढ़ाना है. अब इस पर बात यहीं अटकी हुई है कि विकसित देश इस पर आनाकानी कर रहे हैं. असल में विकसित देश चाहते हैं कि ‘दान’ देने वाली अमीर देशों की लिस्ट में और भी नाम जुड़ें और वे चाहते हैं कि अमीर देश जैसे- सऊदी, कतर, सिंगापुर और चीन में इसमें शामिल हों.
ट्रंप के आते ही जलवायु सम्मलेन पर क्यों मंडराने लगे बादल
ऐसे में डॉनल्ड ट्र्ंप की वजह से अब यह संकट और बढ़ने की आशंका है. 2016 में ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद पैरिस अग्रीमेंट से अमेरिका को अलग कर लिया था. हालांकि चार साल बाद राष्ट्रपति बाइडन ने अमेरिका को इसमें फिर शामिल किया. ट्रंप न सिर्फ पैरिस अग्रीमेंट, बल्कि UN फ्रेमवर्क से अमेरिका को बाहर कर सकते हैं. ट्रंप जलवायु समझौतों को एकतरफा और चीन को फायदा देने वाला बताते रहे हैं. पैरिस समझौते में वैश्विक तापमान बढ़ोतरी 2 डिग्री से कम और 1.5 डिग्री तक सीमित रखने की बात है. इस गौर करने वाली बात ये है कि अमेरिका चीन के बाद दूसरा सबसे प्रदूषण फैलाने वाला देश है.
डोनाल्ड ट्रंप का आना वैश्विक जलवायु न्याय के लिए एक गहरा झटका है. अंतरराष्ट्रीय समझौतों के प्रति उनकी उपेक्षा और जलवायु वित्त प्रदान करने से इनकार करने से संकट और गहरा होगा. अंतरराष्ट्रीय नीति एक्सपर्ट्स ने बुधवार को इस बार में बात की. दिल्ली स्थित विचारक संस्था ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि ट्रंप का अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में चुनाव वैश्विक जलवायु प्रयासों के लिए एक “बड़ा झटका” होगा, खासकर यदि वह मुद्रास्फीति न्यूनीकरण अधिनियम (आईआरए) जैसी महत्वपूर्ण घरेलू नीतियों को वापस ले लेते हैं.
ट्रंप की वजह से स्थिति क्यों होगी और खराब
सुनीता नारायण ने यह भी कहा कि अमेरिका ऐतिहासिक रूप से वैश्विक जलवायु प्रयासों में पीछे रह गया है, विशेष रूप से कमजोर देशों के लिए वित्तीय सहायता, डीकार्बोनाइजेशन और विकासशील देशों के लिए वित्तीय प्रतिबद्धताओं के मामले में और ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से स्थिति और भी खराब हो जाएगी. नारायण ने कहा कि राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन ने घरेलू जलवायु कार्यों को प्राथमिकता दी है, लेकिन ट्रंप के अभियान का फ्रैकिंग (शेल चट्टान से गैस और तेल निकालने की एक तकनीक) और तेल उत्पादन के विस्तार पर ध्यान केंद्रित करना अमेरिकी प्रतिबद्धताओं के लिए गंभीर खतरा है.
जो बाइडन के प्रशासन ने घरेलू जलवायु कार्यों को प्राथमिकता दी है, लेकिन ट्रंप के अभियान का फ्रैकिंग (शेल चट्टान से गैस और तेल निकालने की एक तकनीक) और तेल उत्पादन के विस्तार पर ध्यान केंद्रित करना अमेरिकी प्रतिबद्धताओं के लिए गंभीर खतरा है.
अमेरिका हरित गैसों का सबसे बड़ा उत्सर्जक
नारायण ने कहा, “आईआरए इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिका हरित गैसों का सबसे बड़ा ऐतिहासिक उत्सर्जक बना हुआ है और सालाना दूसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है. यह दुनिया का सबसे बड़ा तेल और गैस उत्पादक और निर्यातक भी है, जो प्रतिदिन लगभग 1.3 करोड़ बैरल का उत्पादन करता है. आईआरए (और 2030 तक तथा 2005 के स्तर से नीचे 50 प्रतिशत उत्सर्जन में कमी लाने में इसकी भूमिका) ने दुनिया को एक महत्वपूर्ण संकेत दिया कि अमेरिका जलवायु कार्रवाई में अग्रणी हो सकता है.”
ट्रंप का तेल और गैस उत्पादन बढ़ाने पर जोर
अपने अभियान में ट्रंप ने तेल और गैस उत्पादन बढ़ाने के प्रति अपने समर्थन पर जोर दिया, तथा “ड्रिल, बेबी, ड्रिल” को मुख्य नारा बनाया. जलवायु नीति विशेषज्ञ ने कहा कि उन्होंने जलवायु परिवर्तन की चिंताओं को पूरी तरह से खारिज कर दिया. जलवायु कार्यकर्ता और जीवाश्म ईंधन अप्रसार संधि पहल के लिए वैश्विक सहभागिता निदेशक, हरजीत सिंह ने कहा कि ट्रंप की जीत वैश्विक जलवायु न्याय के लिए एक गहरा झटका है तथा विश्व के सबसे कमजोर समुदायों के लिए जलवायु जोखिम में खतरनाक वृद्धि है.
उन्होंने कहा कि जीवाश्म ईंधन उत्पादन को बढ़ाने के लिए ट्रंप का प्रयास, अंतरराष्ट्रीय समझौतों की अवहेलना तथा जलवायु वित्त प्रदान करने से इनकार करने से संकट और गहरा होगा, जीवन और आजीविका खतरे में पड़ जाएगी – विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जो जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे कम जिम्मेदार हैं, लेकिन उससे सबसे अधिक प्रभावित हैं. अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी संस्था क्लाइमेट ग्रुप की सीईओ हेलेन क्लार्कसन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से लड़ना, परिवर्तन के लिए धन जुटाना और उत्सर्जन कम करने के लिए कार्रवाई करना “एक बहुत बड़ी चुनौती बन गई है, जिसका असर सीओपी29 और आने वाले वर्षों में महसूस किया जाएगा.”