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नाम-निशान खोने के बाद अब NCP का फंड, ऑफिस और बारामती बचाने की चुनौती? क्या करेंगे शरद पवार

पहले पार्टी का नाम गया, निशान गया, पार्टी के बड़े नेता गए. अब गढ़ भी हिल रहा है. तमाम चुनौतियों के बीच शरद पवार फिर से खड़े होने की बात कर रहे हैं. शरद पवार गुट और अजित पवार गुट में ‘पोस्टर वॉर’ भी चल रहा है. उन्हें तोड़ने वाले लोग तरस भी खा रहे हैं. लोकसभा चुनाव से पहले मिले अब तक के सबसे बड़े झटके से गुज़र रहे शरद पवार के सामने कई चुनौतियां हैं:-

‘NCP शरदचंद्र पवार’… इस नाम से नई पहचान मिलने पर शरद पवार ने कहा, “योद्धा हूं. फिर मैदान में उतरेंगे, फिर पार्टी खड़ी करेंगे.”

NCP दफ्तर के बाहर पोस्टर वॉर

मुंबई में शरद पवार के NCP दफ्तर के बाहर कई पोस्टर लगाए गए हैं. इनमें लिखा है- “चिह्न तुम्हारा, बाप हमारा!” पोस्टर वॉर और बयानबाज़ी दोनों गुटों में तेज़ है. ठीक उसी तरह जैसे शिवसेना की दोनों धड़ों में दिखी थी. 

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कठिनाई है मगर हम लड़ेंगे-क्लाइड क्रास्टो

एनसीपी शरदचंद्र पवार के प्रवक्ता क्लाइड क्रास्टो ने कहा, “हमारे पास शरद पवार हैं. नाम ही काफी है. घड़ी हो ना हो. बेशक रास्ते में कठिनाई है, लेकिन हम लड़ेंगे. जनता के बीच शरद पवार के लिए ही प्यार और सम्मान है.”

अजित गुट के पक्ष में जाएगा स्पीकर का फैसला?

पार्टी छिनने के बाद अब शरद पवार ये मान चुके हैं कि एनसीपी के दोनों गुटों के विधायकों की अयोग्यता पर महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर का फैसला उनके खिलाफ ही आएगा. क्लाइड क्रास्टो ने कहा, “हम श्योर हैं कि फैसला उनके हक में ही जाएगा.” 

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बता दें कि शरद पवार ने उन 9 मंत्री और 31 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग की थी, जो शिवसेना-बीजेपी गठबंधन सरकार में चले गए. 

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देशभर में एनसीपी विधायकों और सांसदों की कुल संख्या 81 है. इनमें 57 अजित पवार गुट के साथ हैं. शरद पवार के पास 28 सदस्य हैं. जबकि 6 सदस्यों ने दोनों गुटों के समर्थन में एफिडेविट दिया था. चुनाव आयोग का फैसला आने के बाद अब पार्टी हेडक्वर्टर ऑफिस, फंड को लेकर जंग शुरू हो गई है. दोनों गुट अपना-अपना अधिकार जता रहे हैं. 

अजित पवार गुट के नेताओं को शरद पवार पर आ रहा तरस

अजित पवार गुट के नेताओं को शरद पवार पर तरस भी आ रहा है. अजित पवार गुट के महासचिव और प्रवक्ता अविनाश आदिक कहते हैं, “उन्हें देखकर ठीक नहीं लगता. साहब को इससे गुज़रना पड़ रहा है.”

‘चाणक्य’ का सियासी एंड?

वहीं, राजनीतिक विश्लेषक इसे ‘चाणक्य’ का सियासी एंड मान रहे हैं.  राजनीतिक विश्लेषक बालाकृष्णन ने कहा, “लोग कहते हैं शरद पवार हर स्थिति में बाउंस बैक करते हैं, लेकिन इस झटके से वो बाउंस बैक नहीं कर पायेंगे. अब उनके पास सिवाय हमदर्दी और सहानुभूति के कुछ नहीं बचा है. उनके खुद के भतीजे ने झटका दिया है.”

बारामती में साख बचाने की बड़ी चुनौती

इस बीच, शरद पवार का अभेद्य किला समझा जाने वाला “बारामती” क्या बच पाएगा? इसे लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है. क्योंकि अजित पवार ने लोकसभा की बारामती सीट से भी अपना उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है. अविनाश आदिक ने कहा, “हम बारामती से भी उम्मीदवार उतारेंगे. किसे उम्मीदवार बनाया जाएगा, ये अभी नहीं बता सकते.”

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राजनीतिक विश्लेषक जयंत माइंकर कहते हैं, “बारामती बच जाये बहुत बड़ी बात है. वो साख का सवाल है. लेकिन ये बहुत मुश्किल लग रहा है. संगठन का 80% अजित पवार ले गये. संगठन के भीतर का जुड़ाव तो अजित पवार के साथ ही है.”

लंबी होगी कानूनी लड़ाई

दूसरी ओर, शरद पवार इस लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट में लड़ने की बात कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट का संघर्ष लंबा होगा और लोकसभा चुनाव करीब 100 दिन ही दूर है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट से उन्हें चुनाव से पहले कोई बड़ी राहत मिलेगी, इसकी संभावना भी कम दिख रही है.

INDIA अलायंस में भी पड़ेगा असर

महाराष्ट्र में प्रदेश के विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी और लोकसभा चुनावों के लिए बने ‘इंडिया ब्लॉक’ दोनों के प्रमुख नेता शरद पवार हैं. लेकिन, आज न तो उनकी पार्टी का नाम उनके साथ है और न ही चुनाव निशान. यही हालात उद्धव ठाकरे के लिए भी है. लेकिन दोनों में बड़ा अंतर है. उद्धव ठाकरे को परिवार के बाहर के शिवसैनिक से चुनौती मिली! लेकिन, शरद पवार अपने ही भतीजे से मात खा गए हैं. अब सहानुभूति की बयार में गठबंधन में उन्हें भले ही उनके अनुभव को सम्मान मिलता रहे, पर सीटों के लिए उनके बार्गेनिंग पावर पर असर तो जरूर पड़ता दिखेगा.

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राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापना 10 जून, 1999 को हुई थी. पार्टी के संस्थापक शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा थे. ये तीनों नेता पहले कांग्रेस का हिस्सा थे, लेकिन जब उन्होंने सोनिया गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने का विरोध किया तो पार्टी ने इन्हें 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया. तब तीनों ने मिलकर एनसीपी की नींव रखी थी. अब तक के सफ़र में सभी दलों के चहेते रहे, लेकिन अपनों के सामने ही हार गये. इस हार से उनका सियासी सफ़र का क्लाइमेक्स तैयार होगा या घड़ी की सुई उनकी तरफ़ फिर घूमेगी ये वक्त ही बताएगा.

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