नालंदा के बाद अब विक्रमशिला को जिंदा करने की तैयारी, जानिए कितना गौरवशाली रहा है अतीत

नालंदा के बाद विक्रमशिला विश्वविद्यालय को भी अतीत की धूल से निकाल कर फिर से खड़ा करने की तैयारी जारी है. प्राचीन काल में नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला आदि वे विश्वविद्यालय थे जहां दुनिया भर के छात्र पढ़ने आते थे. बिहार में नालंदा के बाद अब सरकार विक्रमशिला के पुनरुद्धार में लगी है. आइये जानते हैं कि इस प्राचीन विश्वविद्यालय को किस तरह का स्वरूप देने का किया जा रहा है प्रयास और इसका क्या है गौरवशाली इतिहास.
क्या है योजना और कैसे करेगी काम
- दरअसल 2015 में ही इस विश्वविद्यालय की योजना बनी थी.
- तब इसके लिए 500 करोड़ का आवंटन हुआ था.
- लेकिन दस साल तक यह काम अटका रहा.
- अब बिहार सरकार ने इसके लिए 202.15 एकड़ ज़मीन की पहचान की है.
- ये ज़मीन भागलपुर के पास अंतीचक नाम के गांव में है.
- अब भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की जानी है.

यह वैश्विक ज्ञान का केंद्र था: पीएम मोदी
बीते महीने अपने भागलपुर दौरे के वक्त प्रधानमंत्री मोदी ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय के उद्धार की बात कही तो उसके बाद इसमें तेजी आई है.
मोदी ने कहा, ‘‘हमारा यह भागलपुर संस्कृति और ऐतिहासिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण रहा है. विक्रमशिला विश्वविद्यालय के कालखंड में यह वैश्विक ज्ञान का केंद्र हुआ करता था. हम नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचीन गौरव को आधुनिक भारत से जोड़ने का काम शुरू कर चुके हैं. नालंदा विश्वविद्यालय के बाद अब विक्रमशिला में केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाया जा रहा है. जल्द ही केंद्र सरकार जल्द ही इस पर काम शुरू करने वाली है.”

जानिए कैसा था विक्रमशिला का वैभव
पुराने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की अपनी ख्याति रही है. इसका एक वैभवशाली अतीत रहा है.
- विक्रमशिला विश्वविद्यालय एक बौद्ध विश्वविद्यालय था.
- इसकी स्थापना राजा धर्मपाल ने की थी.
- ये आठवीं-नवीं सदी में बनाया गया.
- इसमें 100 से ज़्यादा शिक्षक हुआ करते थे.
- और उन दिनों 1000 से ज़्यादा छात्र रहते थे.
- यहां धर्मशास्त्र, दर्शन, व्याकरण, तत्वमीमांसा और तर्कशास्त्र जैसे विषय पढ़ाए जाते थे.
- यहां तंत्र विद्या का भी अध्ययन हुआ करता था.
- लेकिन बारहवीं सदी में बख्तियार खिलजी के आक्रमण में यह नष्ट हो गया.
फिलहाल क्या है हाल, कई हैं सवाल
फिलहाल इस विश्वविद्यालय या विहार के खंडहर बिखरे पड़े हैं. खंडहरों के बीच एक ईंट का स्तूप है, जो देखने में बहुत सुंदर है. स्तूप के चारों ओर 208 कमरे हैं. इन खंडहरों की साफ-सफाई का काम जारी है, लेकिन सवाल है, अगर आप विश्वविद्यालय को पुरानी गरिमा लौटाना चाहते हैं, उसे एक आधुनिक रूप देना चाहते हैं तो उसके लिए आपकी परिकल्पना क्या है, तैयारी कैसी है? नालंदा विश्वविद्यालय को जो हम बनाना चाहते थे, क्या बना पाए हैं? नालंदा विश्वविद्यालय को लेकर बड़े एलान हुए, लेकिन हाल में कई विवाद भी सामने आए हैं.
नए विश्वविद्यालय बने यह अच्छी बात: कमर
शिक्षाविद् फुरकान कमर ने The Hindkeshariसे बातचीत में कहा कि मुख्य उद्देश्य है कि हमारे जो प्राचीन गौरव थे और इसकी ओर हमें लौटकर जाना है, इन विश्वविद्यालयों को हमें बनाना है. इस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए. किसी बहाने से नए विश्वविद्यालय बने यह अच्छी बात है जाहिर है कि हम ऐसी परिकल्पना नहीं कर सकते हैं कि यह बौद्ध मठ होगा. नालंदा को जो पुनरुद्धार हुआ है, वह भी एक आधुनिक विश्वविद्यालय है. उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि विक्रमशिला में भी यही होगा कि इसका पुनरुद्धार इस तरह से कर रहे हैं कि एक विश्वविद्यालय था, जिसके स्थान पर हम एक नया विश्वविद्यालय बना रहे हैं.
क्वालिटी और एक्सीलेंस को प्राथमिकता दी जाए: कमर
उन्होंने कहा कि हम उसका नाम वही रखेंगे जो पहले था और कोशिश करेंगे कि उसमें जैसी शिक्षा दी जाती थी, उस तरह की शिक्षा का एक हिस्सा या कुछ न कुछ हिस्सा नए जमाने में भी दिया जाए. उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि जब यह बनेगा तो इसमें आजकल की आवश्यकताओं के अनुसार, आधुनिक शिक्षा का भी प्रावधान किया जाएगा.
उन्होंने कहा कि सबको यह मालूम है कि उच्च शिक्षा में बिना गुणवत्ता के आगे बढ़ पाना बेहद मुश्किल है. उन्होंने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि इसमें क्वालिटी और एक्सीलेंस को प्राथमिकता दी जाएगी. हमारे जितने भी प्राचीन विश्वविद्यालय हैं, जो खंडहर हो चुके हैं उनका पुनरुद्धार होना चाहिए.
नालंदा विश्वविद्यालय के साथ यह चुनौती थी कि यह एक इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी था और इसमें साउथ ईस्ट एशिया के लोगों को आना था और उसके निर्माण में योगदान देना था. हालांकि यह नहीं हो पाया है. मेरा खयाल है कि विक्रशिला में इस तरह का प्रावधान नहीं है.