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त्रासदी के बाद छोड़नी पड़ी पढ़ाई, दिल्ली NCR की पहली महिला उबर ड्राइवर की प्रेरणादायक कहानी


नई दिल्ली:

अगर आप नोएडा से दिल्ली का सफर रात के आठ बजे कर रहे हैं और आपकी कैब ड्राइवर महिला हो, तो चौंकिए मत! अनीता, जो दिल्ली NCR की पहली महिला उबर ड्राइवर हैं, आपकी ड्राइवर हो सकती हैं.

अनीता की यह यात्रा आसान नहीं थी. जब उन्होंने उबर में ड्राइवर बनने के लिए आवेदन किया, तो उन्हें तीन बार रिजेक्ट किया गया. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अंततः सफलता पाई. उबर ने उन्हें एक महिला ड्राइवर के तौर पर पहचान दी और उनकी मेहनत रंग लाई. अनीता की यह प्रेरणादायक कहानी साबित करती है कि मेहनत और लगन से कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है. अब वह दिल्ली एनसीआर की पहली उबर महिला ड्राइवर के रूप में अपने सफ़र को नए मुकाम तक पहुंचा चुकी हैं.

अनीता ने ढाई महीने पहले उबर में महिला ड्राइवर के तौर पर अपने सफर की शुरुआत की और आज वह दिल्ली NCR की पहली महिला उबर ड्राइवर बन चुकी हैं. अनीता हरियाणा के गुड़गांव की रहने वाली हैं और उनकी यह यात्रा एक दर्द भरी कहानी के साथ जुड़ी हुई है.

अनीता के परिवार में उनके पिता के निधन और भाई की दुर्घटना में मौत के बाद घर की ज़िम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई. अब वह अपनी मां और भतीजे का पालन-पोषण करती हैं. अनीता ने कभी एलएलबी करने और वकील बनने का सपना देखा था. लेकिन घर में हुई त्रासदी के बाद उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. हालांकि, अनीता ने हार नहीं मानी और अब उबर में ड्राइवर बनकर अपने घर की ज़िम्मेदारी निभा रही हैं.

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वह उस हरियाणा से आती हैं, जहां “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का नारा गूंजता है, और वहीं से निकलकर वह उबर की पहली महिला ड्राइवर बनीं हैं. इस पेशे में अनीता को दिन-रात कभी भी गाड़ी चलानी पड़ती है और कई बार उनके काम के घंटे 12 घंटे से भी ज्यादा हो सकते हैं. बावजूद इसके, अनीता इस कड़ी मेहनत से अपने परिवार का पालन-पोषण कर रही हैं.

जब उनसे यह पूछा गया कि क्या कभी ऐसा हुआ है कि किसी कस्टमर के कारण उन्हें ख़ुद को खतरे में महसूस हुआ हो, तो अनीता ने कहा कि इसके उलट, गाड़ी में बैठने वाले लोग हमेशा खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं. अनीता उन लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं जो ड्राइविंग को अपना पेशा बनाना चाहती हैं. उनका संघर्ष और समर्पण यह साबित करता है कि अगर मन में मजबूत इच्छाशक्ति हो, तो कोई भी सपना हासिल किया जा सकता है.



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