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मुस्लिम वोटों पर अखिलेश-ओवैसी फिर आमने-सामने, किधर जाएंगे यूपी के मुसलमान?


लखनऊ:

वैसे तो यूपी में उप चुनाव (UP By Elections 2024) हो रहा है. लेकिन मुक़ाबला मिनी विधानसभा चुनाव जैसा हो गया है. एक-एक सीट जीतने की होड़ मची है. समाजवादी पार्टी और बीजेपी में सीधी टक्कर है. पर लड़ाई में बीएसपी, आज़ाद समाज पार्टी और AIMIM भी (Akhilesh-Owaisi) हैं. इनकी वजह से कहीं बीजेपी का, तो कहीं समाजवादी पार्टी का समीकरण बिगड़ रहा है. उप चुनाव के बहाने सभी राजनीतिक दल अपना दम ख़म दिखाने को बेक़रार हैं. यूपी में विधानसभा की नौ सीटों पर चुनाव हो रहे हैं. समाजवादी पार्टी का कांग्रेस से गठबंधन है, पर कांग्रेस ने इस बार चुनाव न लड़ने का फ़ैसला किया है. दो साल बाद होने वाले यूपी चुनाव से पहले इस उप चुनाव को फ़ाइनल से पहले नेट प्रैक्टिस माना जा रहा है. 

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यूपी उपचुनाव में कांटे की टक्कर

बीजेपी की तरफ़ से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव प्रचार का नेतृत्व कर रहे हैं. ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के नारे के साथ वे हिंदुत्व के एजेंडे पर चुनावी मैदान में हैं. समाजवादी पार्टी की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चुनाव प्रचार की कमान संभाल रहे हैं. ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ के नारे के बहाने एक बार फिर से वे PDA के भरोसे हैं. इसी फ़ॉर्मूले से उन्होंने लोकसभा चुनाव में 37 सीटें जीतने का रिकॉर्ड बनाया. आम चुनाव में ज़ीरो पर आउट रहने वाली मायावती भी खाता खोलने की उम्मीद में हैं. चंद्रशेखर रावण भी अपनी पार्टी के विस्तार में जुटे हैं.

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इन मुस्लिम सीटों पर ओवैसी की नजर

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी यूपी में अब तक कोई बड़ा उलट फेर नहीं कर पाई है. लोकसभा चुनाव में यूपी से उनकी पार्टी दूर रही. ओवैसी ने ज़रूर कुछ सीटों पर चुनाव प्रचार किया था. लेकिन इस बार उनकी पार्टी पूरे दम ख़म से तीन सीटों पर उप चुनाव लड़ रही है.

इन सीटों पर चुनाव लड़ रही ओवैसी की AIMIM

  • मुरादाबाद की कुंदरकी सीट
  • मुज़फ़्फ़रनगर की मीरापुर सीट
  • गाज़ियाबाद सीट

यूपी की इन मुस्लिम आबादी वाली सीटों पर ओवैसी की पार्टी क़िस्मत आज़मा रही है. AIMIM के यूपी अध्यक्ष शौक़त अली बताते हैं कि सब कुछ ठीक रहा तो दो सीटों पर बीजेपी से मुक़ाबला उनकी ही पार्टी करेगी. इसी फ़ीडबैक के आधार पर ओवैसी ने रैली करने का फ़ैसला किया है. इन दोनों सीटों पर मुस्लिम वोटरों का दबदबा है. 

अखिलेश-ओवैसी के बीच छत्तीस का आंकड़ा!

अखिलेश यादव तो असदुद्दीन ओवैसी का नाम सार्वजनिक रूप से लेने से भी बचते हैं. दोनों का रिश्ता शुरू से ही छत्तीस का रहा है. ये बात उन दिनों की है जब अखिलेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री थे. उनके राज में ओवैसी को कभी सभा करने की इजाज़त तक नहीं मिली. क़ानून व्यवस्था ख़राब हो जाने के नाम पर उन्हें हर बार रोका गया. ओवैसी भी कहते रहे हैं कि समाजवादी पार्टी में सारी मलाई यादव बिरादरी के लोग खाते हैं. मुसलमानों का काम तो सिर्फ़ दरी बिछाने का रहा है. 

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किसके होंगे यूपी के मुस्लिम?

असदुद्दीन ओवैसी के आने से नुक़सान अखिलेश यादव का है. वे सबसे पहले मीरापुर में प्रचार करेंगे फिर कुदंरकी में रैली करेंगे. पिछले विधानसभा चुनाव में कुंदरकी में ओवैसी की पार्टी को करीब चौदह हज़ार वोट मिले थे. सोमवार को ही अखिलेश यादव ने यहां एक बड़ी चुनावी सभा की. अब बारी ओवैसी की है. कुंदरकी से ओवैसी का संबंध पुराना रहा है. समाजवादी पार्टी के मुसलमानों में तुर्क वोटरों पर भरोसा है. तो ओवैसी की नज़र मुस्लिम चौधरी वोट पर है. उनके आने से मुस्लिम वोटों में बंटवारे का खतरा है. कुंदरकी में 65% मुसलमान वोटर हैं. मेरठ के मेयर के चुनाव में ओवैसी की पार्टी समाजवादी पार्टी से आगे रही थी. चुनाव में कब क्या समीकरण बन जायें इसकी कोई गारंटी नहीं है. 
 

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