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महाकुंभ भगदड़ मामले में जनहित याचिका का इलाहाबाद हाईकोर्ट ने किया निस्तारित


नई दिल्ली:

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आज महाकुंभ में 29 जनवरी के मौनी अमावस्या के स्नान के दौरान भगदड़ मामले में सुनवाई करते हुए सरकार के आश्वाशन पर महाकुंभ क्षेत्र में अमावस्या के दिन हुई सभी हादसों में हुई मौतों और लापता लोगों का पता लगाने की उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग वाली जनहित याचिका निस्तारित कर दी. सरकार ने कोर्ट को बताया कि न्यायिक आयोग के जांच का दायरा बढ़ा दिया गया है. अब वह  भगदड़ में हुए जानमाल की हानि का भी पता लगाएगी.

क्या है पूरा मामला?

राज्य सरकार ने 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के दौरान महाकुंभ में हुई मौत और सम्पत्ति हानि को भी आयोग द्वारा की जा रही जांच में शामिल कर लिया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट को आज राज्य सरकार ने जानकारी दी. महाकुंभ में 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के दौरान भगदड़ की घटना को लेकर दाखिल जनहित याचिका में कहा गया था कि सरकार द्वारा गठित जांच आयोग को सीमित जांच करने को कहा गया है. उसमें जन-धन हानि को शामिल नहीं किया गया है. केवल घटना कैसे घटी और भविष्य में ऐसी घटना न घटे इस पर रिपोर्ट देना था.

पूरी कहानी जानिए

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महाकुम्भ में 29 जनवरी को हुई भगदड़ की जांच न्यायिक निगरानी में करने और घटना के बाद लापता लोगों का सही ब्योरा देने की मांग में दाखिल जनहित याचिका पर राज्य सरकार से पूछा था कि न्यायिक आयोग की जांच का दायरा बढ़ाकर इसमें हताहतों की संख्या की पहचान करने और भगदड़ से संबंधित अन्य शिकायतों पर गौर करने को शामिल किया जा सकता है या नहीं. कोर्ट ने सरकार से इस संदर्भ में 24 फरवरी तक जानकारी मुहैया कराने को कहा था.

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क्या कहा चीफ जस्टिस अरुण भंसाली ने?

चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र की डिवीजन बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि अब तक आयोग के कार्यक्षेत्र में भगदड़ के अन्य प्रासंगिक विवरणों की जांच शामिल नहीं है. राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने कहा था कि आयोग भगदड़ के सभी पहलुओं की जांच करने के लिए पूरी तरह से सक्षम है.  इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि जब आयोग की नियुक्ति की गई थी तो उसकी जांच के दायरे में हताहतों और लापता लोगों की संख्या पता लगाने के बिंदु नहीं थे. इसलिए इन बिंदुओं को अब आयोग की जांच में शामिल किया जा सकता है. 

जनहित याचिका में क्या कहा गया?

इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व महासचिव सुरेश चंद्र पांडेय की ओर से दाखिल जनहित याचिका में महाकुम्भ में भगदड़ के बाद लापता हुए व्यक्तियों का विवरण एकत्र करने के लिए न्यायिक निगरानी समिति के गठन की मांग की गई थी. सुनवाई के दौरान याची के अधिवक्ता सौरभ पांडेय ने कहा कि कई मीडिया पोर्टल ने राज्य सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर बताई गई मौतों (30) की संख्या पर विवाद किया है. एडवोकेट सौरभ पांडेय ने विभिन्न समाचार पत्रों और पीयूसीएल की एक प्रेस विज्ञप्ति का भी हवाला देते हुए कहा कि मृतकों के परिजनों को मृत्यु प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए इधर-उधर भागने पर मजबूर होना पड़ रहा है. मृतकों को बिना पोस्टमार्टम 15,000 रुपये देकर यह आश्वासन दिया गया है कि उन्हें मृत्यु प्रमाण पत्र दिया जाएगा. अब लोगों को मृत्यु प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा है. जबकि राज्य का कर्तव्य लोगों की मदद करना है. 

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गहनता से समझिए मामला

अधिवक्ता ने बताया कि उनके पास एम्बुलेंस चलाने वाले लोगों के वीडियो हैं, जिन्होंने बताया है कि वे कितने लोगों को अस्पताल ले गए थे. उन्होंने कहा कि आधिकारिक बयानों में सेक्टर 21 और महाकुम्भ मेला के आसपास के अन्य इलाकों में हुई भगदड़ का उल्लेख नहीं किया गया है. इस पर राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि जनहित याचिका में की गई सभी प्रार्थनाओं पर राज्य सरकार द्वारा नियुक्त न्यायिक आयोग विचार कर रहा है. इस पर कोर्ट ने टिप्पणी की कि आयोग के दायरे में यह शामिल नहीं है कि भगदड़ के दौरान क्या हुआ था. इसे देखते हुए जांच के दायरे को बढ़ाने की आवश्यकता प्रतीत होती है. 

राज्य सरकार को यह संदेश देने को कहा गया था कि न्यायिक आयोग के संबंध में सामान्य अधिसूचना जारी न की जाए और इसकी बजाय संदर्भ की शर्तें व्यापक रूप से निर्धारित की जाएं. गौरतलब है कि महाकुम्भ में भगदड़ संगम नोज के पास 29 जनवरी को आधी रात के बाद हुई जिसमें 30 लोग मारे गए. बाद में सरकार ने इस संख्या को बढ़ाकर 70 कर दिया है. प्रदेश सरकार ने 29 जनवरी की भगदड़ की जांच के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति हर्ष कुमार की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया है. आयोग ने घटना के बारे में जानकारी देने के लिए लोगों को आमंत्रित किया है.


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