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"वोटर टर्नआउट में कमी के कारण नतीजों का आकलन हुआ मुश्किल" : The HindkeshariBattleground में बोले एक्सपर्ट्स

The Hindkeshariके एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया ने ‘बैटलग्राउंड’ में राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी, लोकनीति के नेशनल को-ऑर्डिनेटर संदीप शास्त्री और सी वोटर के फाउंडर डायरेक्टर यशवंत देशमुख से तमाम मुद्दों, फैक्टर पर उनकी राय जानी.

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लोअर वोटर टर्नआउट से रिजल्ट का आकलन मुश्किल

राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा, “चुनाव में कम वोटर टर्नआउट कोई बड़ा फैक्टर नहीं होता. आप कम वोटिंग पर्सेंटेज से ये नहीं बता सकते कि सरकार जा रही है या रिपीट हो रही है. क्योंकि ऐसा कई बार हुआ है जब वोटर टर्नआउट कम रहा, लेकिन सरकार रिपीट हुई. ऐसा भी हुआ है, जब वोटर टर्नआउट ज्यादा रहा, लेकिन सरकार बदल गई. इसबार वोटर टर्नआउट में कमी के कारण नतीजों का आकलन करना मुश्किल जरूर हुआ है.” 

लोकसभा चुनाव के अभी तक के सफर को देखते हुए क्या टेक अवे निकल रहा है? इसके जवाब में सी वोटर के फाउंडर डायरेक्टर यशवंत देशमुख कहते हैं, “चुनाव के जो प्री-पोल ट्रैकर्स आए थे, उसे देखते हुए लगता है कि पहले फेज के वोटर टर्नआउट में कमी आई. उसके कारण अफरा-तफरी सी मच गई है. ये कुछ आउट ऑफ सेलेबस सा हो गया है. वोटर टर्नआउट को एनालाइज (आकलन) करना अच्छी बात है, लेकिन ओवर एनालाइज (हद से ज्यादा आकलन) करना सही नहीं है. 2004 की कवायद 2024 में तो नहीं होगी. 2024 का कैलकुलेशन अलग था. 2024 का कैलकुलेशन अलग है.”

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2024 की सारी तुलना 2019 के चुनाव से क्यों?

लोकनीति के नेशनल को-ऑर्डिनेटर संदीप शास्त्री कहते हैं, “2024 की सारी तुलना 2019 के चुनाव से हो रही है. 2019 का चुनाव निश्चित तौर पर एक विशेष चुनाव था. अगर उसके पहले चुनावों को देखें और इस बार के इलेक्शन को देखें, तो मतदान में उतना फर्क नहीं दिखता है. बेशक पर्सेंटेज 2019 के मुकाबले कम होगा, लेकिन 2019 को थोड़ा पीछे रखकर ओवरऑल देखें, तो गैप कम दिखता है. पहले फेज की वोटिंग के बाद कई पार्टियों को लगा कि मतदान कम हुआ है. उन्होंने अपने इलाके को डिफेंड करने की एक कोशिश भी की. लेकिन चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, आप देखेंगे कि वोटर टर्नआउट भी बढ़ रहा है.”

2019 के इलेक्शन में बीजेपी ने यूपी में बनाया 50% वोट बैंक

लोकनीति नेटवर्क के नेशनल को-ऑर्डिनेटर संदीप शास्त्री ने कहा, ”2014 में जब बीजेपी रणनीति बना रही थी, तो उन्हें शानदार प्रदर्शन की जरूरत थी. बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने के लिए उन्हें यूपी में बेस्ट परफॉर्मेंस करना था. 2014 के बाद से बीजेपी ने उत्तर प्रदेश को अपना बना लिया है. 2019 के इलेक्शन में बीजेपी ने राज्य में 50 प्रतिशत वोट बैंक बनाया है. जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी की बड़ी भूमिका थी.”

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पीएम मोदी के वाराणसी से लड़ने का बीजेपी को मिला फायदा

सी वोटर के फाउंडर डायरेक्टर यशवंत देशमुख कहते हैं, “पीएम मोदी के वाराणसी से लड़ने के फैसले का आस-पास के इलाकों पर प्रभाव पड़ा. इसमें बनारस का सांस्कृतिक महत्व एक कारक रहा है. 2014 के बाद से पीएम मोदी के नेतृत्व में यहां बहुत विकास हुआ है. मुस्लिम वोटों में बदलाव से भी फर्क पड़ा है. बीजेपी को पहले एक अंक में वोट प्रतिशत मिलता था. अब उसे दो अंक में मुस्लिम वोट प्रतिशत मिलता है. ये अजीब बात है कि अगर मुसलमान बीजेपी को वोट देते हैं, तो उन्हें सरकारी मुसलमान कहा जाता है.”

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यूपी के चुनाव में रिजनल पार्टियां कितनी अहम?

इसके जवाब में यशवंत देशमुख कहते हैं, “चुनाव में रिजनल पार्टियां अहम हैं. पिछले 10 साल में बीजेपी ज्यादातर चुनाव जीती है. इस बार के लोकसभा चुनाव में 200 सीटों पर मुकाबला बीजेपी बनाम कांग्रेस है. जबकि 243 सीटों में बीजेपी बना रिजनल पार्टियां है. कांग्रेस की स्थिति खराब है. पंजाब, कर्नाटक और तेलंगाना में यह अकेले लड़ रही है. वो अन्य राज्यों में जूनियर पार्टनर के रूप में है. इन कुछ राज्यों में उन्हें फायदा हो सकता है. एनडीए में बीजेपी की हिस्सेदारी बढ़कर 370 हो गई है और सहयोगी पार्टियों की हिस्सेदारी 30 हो गई है.”

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मायावती के नुुकसान से किसे फायदा?

लोकनीति के नेशनल को-ऑर्डिनेटर संदीप शास्त्री ने लोकसभा चुनाव में मायावती की पार्टी की स्थिति को लेकर बात की. उन्होंने कहा, “बीएसपी के ओबीसी वोट लगता है कि बीजेपी के पास जा रहा है. नॉन-जाटव वोट कुछ बीजेपी और कुछ समाजवादी पार्टी के साथ जा सकता है. जाटव वोट काफी हद तक बीएसपी के साथ ही रहेगा. लेकिन इसका एक हिस्सा बीजेपी या सपा के साथ जा सकता है.”

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