Benjamin Netanyahu: कैसे एक सैनिक से इजरायल के 'किंग बीबी' बन गए बेंजामिन नेतन्याहू?
बेंजामिन नेतन्याहू एक कट्टर राष्ट्रवादी हैं. उन्हें ‘किंग बीबी’ के नाम से भी जाना जाता है. नेतन्याहू को हमेशा इस बात को लेकर आलोचना का सामना करना पड़ा है कि उन्होंने 1996 में पहली बार सत्ता में आने पर बेहतर पोजिशन में होने के बाद भी फिलिस्तीन के साथ शांति का अवसर नहीं निकाला. देश को सुरक्षित रखने वाले एकमात्र व्यक्ति के रूप में उनकी सावधानीपूर्वक बनाई गई इमेज को तब झटका लगा, जब 7 अक्टूबर को हमास ने अचानक जमीन-समुद्र और हवाई रास्ते के जरिए इजरायल पर ताबड़तोड़ हमले किए. 7 दिन से जारी जंग में अब तक 3500 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.
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इजरायल पर हमास के हमले और उसके बाद जंग का ऐलान ऐसे समय पर हुआ है, जब नेतन्याहू रिश्वतखोरी के आरोपों के साथ-साथ अपनी सरकार के प्रस्तावित न्यायिक सुधार पर विरोध का सामना कर रहे हैं.
शुरुआती जिंदगी
बेंजामिन नेतन्याहू का जन्म 1949 में तेल अवीव में हुआ था. उनका परिवार 60 के दशक की शुरुआत में कुछ साल के लिए अमेरिका चला गया. लेकिन 1967 में वह देश लौट आए. तब उनकी उम्र 18 साल थी. नेतन्याहू इजरायली सेना में शामिल हो गए और उन्हें इजरायल कमांडो यूनिट के सबसे एलीट ग्रुप सायरेट मटकल का कैप्टन बना दिया गया. सायरेट मटकल मौजूदा समय में गाजा में इजरायली बंधकों के रेस्क्यू ऑपरेशन में लगा हुआ है.
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1972 और 1976 के बीच नेतन्याहू ने सेना छोड़ दी. वो MIT में आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए. MIT में जब नेतन्याहू फाइनल ईयर में थे, तब उनके भाई योनातन (योनी) की मौत हो गई. योनी सायरेट मटकल में एक प्रतिष्ठित अधिकारी थे और इजरायल के सबसे जाने-माने आर्मी हीरो में शामिल थे. ‘ऑपरेशन एंटेबे’ पर काम करने के दौरान योनातन की मौत हो गई थी. इस ऑपरेशन में 100 से ज्यादा यहूदी बंधकों को बचाया गया था.
जनता के बीच ऐसे मिली लोकप्रियता
बेंजामिन नेतन्याहू 1978 में अमेरिका से इजरायल लौट आए. उन्होंने अपने भाई की याद में जोनाथन इंस्टीट्यूट की स्थापना की. वह 1994 से 1998 तक संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के स्थायी प्रतिनिधि रहे. वहां उन्हें काफी तवज्जो मिली.
नेतन्याहू ने 1988 में अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत की. दक्षिणपंथी लिकुड पार्टी के टिकट पर उन्होंने संसदीय (नेसेट) का चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीते भी. उन्हें उप विदेश मंत्री के लिए नामित किया गया. 1993 में नेतन्याहू लिकुड पार्टी के अध्यक्ष और विपक्ष के नेता बने.
तत्कालीन प्रधानमंत्री यित्ज़ाक राबिन उस दौरान फिलिस्तीन के साथ शांति समझौते के प्रयासों का नेतृत्व कर रहे थे. 1995 में उनकी हत्या कर दी गई. इसके एक साल बाद नेतन्याहू इजरायल के पहले सीधे निर्वाचित प्रधानमंत्री बने.
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नेतन्याहू का रुख
अपने 16 साल से ज्यादा के कार्यकाल में नेतन्याहू को ‘शांति का रास्ता’ चुनने के बजाय ‘सत्ता के प्रयोग’ को प्राथमिकता देने के लिए जाना जाता है. अपने देश के खिलाफ घातक हमलों के बाद ‘किंग बीबी’ ने सख्त रुख अपनाया है. नेतन्याहू सरकार ने गाजा को बिजली, खाना, ईंधन और पानी की सप्लाई रोक दी है. हमास के हमलों की तुलना आईएसआईएस से करते हुए नेतन्याहू ने कहा, “हम उन्हें कुचल देंगे. उनका नामोनिशान मिटा देंगे. जैसे दुनिया ने ISIS को खत्म कर दिया है.”
नेतन्याहू ने यह भी चेतावनी दी है कि देश अपने दुश्मनों के साथ जो करेगा, उसका असर पीढ़ियों तक रहेगा. इजरायल मिडिल ईस्ट को बदल देगा.
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गाजा को खाली करने का दिया अल्टीमेटम
जंग के बीच इजरायल ने गाजा के लोगों को वहां से शिफ्ट होने का आदेश दिया है. इसके लिए इजरायली सेना ने पर्चे गिराए हैं और लोगों को गाजा छोड़ने के लिए 24 घंटे की मोहलत दी है. बता दें कि इजरायल-हमास युद्ध में 3700 से अधिक लोग मारे गए हैं.