अपने ही दांव में फंसी बीमा भारती? पाला बदलने के बाद भी नहीं बदली किस्मत, पढ़े इनसाइड स्टोरी
नई दिल्ली:
बिहार की रुपौली विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में राष्ट्रीय जनता दल की उम्मीदवार बीमा भारती के लिए जो परिणाम आए हैं वो उनके राजनीतिक भविष्य पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह जरूर लगा रहे हैं. यहां से वापसी करना और बीमा भारती के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होने वाला है. आपको बता दें कि बीमा भारती रुपौली सीट से ही तीन बार विधायक रही हैं. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीमा भारत ने जेडीयू का साथ छोड़कर आरजेडी का दामन थामा था. बाद में आरजेडी ने उन्हें पूर्णिया लोकसभा सीट से इंडिया गठबंधन का उम्मीदवार भी बनाया. इस सीट पर बीमा भारती का सीधा मुकाबला निर्दलीय उम्मीदवार पप्पू यादव से था. और इस चुनाव में बीमा भारती को पप्पू यादव ने बड़े अंतर से हराया था.
बीमा भारती की इस हार के बाद से ही अंदरखाने ये बात उठने लगी थी कि क्या बीमा भारती का दांव उनपर ही उल्टा पड़ा है. ये वही दांव था जिसके तहत बीमा भारती दिल्ली की राजनीति में सक्रिय होना चाह रहीं थीं. दरअसल, बीमा भारती बीते 14 सालों से जेडीयू में थीं और लगातार रुपौली सीट से विधायक भी रहीं हैं. लेकिन इस बार के आम चुनाव से ठीक पहले बीमा भारती ने राजनीति में अपना कद बढ़ाने के इरादे से लोकसभा का चुनाव लड़ने का फैसला किया. यही वजह थी कि उन्होंने जेडीयू से 14 साल पुराना अपना रिश्ता तोड़कर आरजेडी के साथ अपनी नई पारी शुरू की. आरजेडी ने भी बीमा भारती पर दांव खेला और उन्हें पूर्णिया से उम्मीदवार बनाया. आरजेडी ने बीमा भारती पर ये दांव इसलिए खेला क्योंकि बीमा भारती रुपौली से विधायक थीं, और रुपौली विधानसभा क्षेत्र पूर्णिया लोकसभा सीट के तहत ही आता है.
सांसद बनने के सपने के चक्कर में विधायकी भी गई
बीमा भारती ने सांसद बनने के जिस सपने के साथ आम चुनाव से पहले इतना बड़ा दांव खेला था, वो पूरी तरह से फेल होता नजर आ रहा है. दरअसल, बीमा भारती को उम्मीद थी कि वह पूर्णिया से सांसद चुन ली जाएंगी. इसके लिए उन्होंने जातिय समीकरण से लेकर हर पहलू पर करना शुरू कर दिया था. चुनाव से पहले तक बीमा भारती का यह गणित कुछ हद सही साबित होता भी दिख रहा था. ऐसा इसलिए भी क्योंकि इंडिया गठबंधन के सीट बंटवारे के तहत लोकसभा चुनाव में ये सीट आरजेडी के खाते में चली गई थी.
बीमा भारती को लग रहा था कि अब उनके सांसद बनने की राह में कोई बड़ी अड़चन नहीं है. लेकिन ऐन वक्त पर पप्पू यादव (जिन्होंने सीट बंटवारे से ठीक पहले कांग्रेस में अपनी पार्टी का विलय किया था) ने इस सीट से कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के खिलाफ जाते हुए बतौर निर्दलीय उम्मीदवार पर्चा भर दिया. और यहीं से बीमा भारती का खेल खराब हो गया. स्थिति कुछ ऐसी बनी कि एक तरफ जेडीयू को छोड़ आरजेडी में शामिल होने की वजह से रुपौली की सीट खाली हो गई, दूसरी तरफ पप्पू यादव के बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ने से वो पूर्णिया से लोकसभा चुनाव भी नहीं जीत पाईं.
बिहार में फ्लोर टेस्ट के बाद ही बदला था बीमा भारती का मन?
कहा जाता है कि इस साल बिहार में हुए फ्लोर टेस्ट के दौरान ही बीमा भारती असमनजस में दिख रही थीं. उस दौरान वह जेडीयू के ही साथ थी लेकिन फ्लोट टेस्ट के दौरान किसे अपना वोट दिया जाए उसे लेकर उनका स्पष्ट मत नहीं दिख रहा था. माना जाता है कि इसी वजह से बाद में उनके पति और बेटे कार्रवाई भी की गई थी. इस वजह से बीमा भारती और जेडीयू के बीच का रिश्ता खराब होने लगा. कहा जाता है कि इसी के बाद से बीमा भारती ने जेडीयू को छोड़ने का मन बना लिया था.
बतौर निर्दलीय विधायक की थी राजनीतिक सफर की शुरुआत
बीमा भारती का राजनीतिक सफर दो दशक पुराना है. उन्होंने 2000 के विधानसभा चुनाव में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार जीत दर्ज की थी. 2010 में बीमा भारती ने जेडीयू का दामन थामा था. तब से ही वो लगातार रुपौली विधानसभा सीट से विधायक हैं. 2 जून 2014 को जीतन राम मांझी सरकार के कैबिनेट विस्तार में बीमा भारती पहली बार मंत्री बनीं थीं. इसके बाद 2 जून 2019 को नीतीश कैबिनेट में बीमा भारती को गन्ना और विकास विभाग की जिम्मेदारी मिली थी.