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TDP को लोकसभा स्पीकर पद देने को तैयार नहीं बीजेपी -सूत्र, जानें किस वजह से बेहद खास है ये पद


नई दिल्ली:

देश में 9 जून को एक बार फिर से मोदी सरकार (Modi 3.0) बनने जा रही है. लेकिन इस बार हालात पहले से अलग हैं. बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत नहीं है.अब वह सरकार बनाने के लिए अपने सहयोगी दल पर निर्भर है. बीजेपी सरकार बनाने के लिए जेडीयू और टीडीपी की तरफ देख रही है. 12 और 16 सीटें जीतने वाले दोनों ही दल मौजूदा हालात में एनडीए के लिए काफी अहम हैं. यही वजह है कि बार्गेनिंग का दौर भी जारी है. टीडीपी (TDP) और जेडीयू दोनों ही दलों ने अपनी-अपनी डिमांड रखी दी है. जेडीयू जहां 3 मंत्रालयों की मांग कर रहा है, वहीं टीडीपी की नजर लोकसभा स्पीकर के पद पर है. टीडीपी सूत्रों के हवाले से खबर है कि बीजेपी सहयोगी दलों को स्पीकर पद देने को तैयार नहीं है. टीडीपी को 3 कैबिनेट और एक राज्य मंत्री का दर्जा मिलेगा. टीडीपी ने साल 1998 की तरह स्पीकर पद की डिमांड की है. 1998 में भी यह पॉवरफुल पद वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार में टीडीपी के पास था. 

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सवाल यह है कि स्पीकर का पद ही क्यों, चंद्रबाबू नायडू तो अहम मंत्रालय मांग सकते थे. तो बता दें कि लोकसभा स्पीकर का पद बहुत ही पावरफुल होता है. स्पीकर का फैसला काफी मायने रखता है. साल 2014 में सुमित्रा महाजन और 2019 में ओम बिरला को बीजेपी ने स्पीकर बनाया था. लेकिन अब बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत नहीं है, ऐसे में उसे सहयोगी दलों पर निर्भर रहना होगा. मान लीजिए बीजेपी ने अपना स्पीकर बना भी दिया तो उसे लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ सकता है. फिर उसके सामने बहुमत साबित करने की चुनौती होगी. यही वजह है कि स्पीकर का रोल बहुत ही अहम हो जाता है.

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टीडीपी क्यों मांग रही स्पीकर पद?

टीडीपी अच्छी तरह जानती है कि अगर स्पीकर उसका होगा तो लोकसभा में उसका होल्ड रहेगा. उसका स्पीकर होने की वजह से किसी भी मुश्किल हालात से वह आसानी से निपट सकते हैं. सदन में जब किसी सवाल पर बराबर वोट बंट जाते हैं, ऐसे हालात में स्पीकर को वोट डालने का अधिकार होता है. सदन में वोटिंग के दौरान लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका काफी अहम होती है. इन्हीं सब वजहों से ही टीडीपी चाहती है कि सदन में उसका होल्ड रहे. 

स्पीकर का पद अहम कैसे?

  • लोकसभा स्पीकर बहुत ही अहम पद है. उसका फैसला ही आखिरी फैसला होता है. सदन में उसकी निर्णायक भूमिका होती है.
  • बहुमत साबित करने के दौरान जब दल-बदल कानून लागू होता है तो ऐसे में स्पीकर की भूमिका काफी बढ़ जाती है.
  • स्पीकर के पास सदन के सदस्यों की योग्यता और अयोग्यता का फैसला लेने का पूरा अधिकार होता है. चाहे कोई रेजोल्यूशन हो, मोशन या फिर सवाल, स्पीकर का फैसला निर्णायक होता है.
  • लोकसभा स्पीकर एक संवैधानिक पद है. उसकी मंजूरी के बिना सदन में कुछ भी नहीं होता.
  • सदन को स्थगित करने से लेकर किसी को निलंबित करने तक स्पीकर के पास हर अधिकार होता है.

स्पीकर की भूमिका का एक उदाहरण

साल 1998 के लोकसभा चुनावों में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. अटल बिहारी वाजपेयी ने सरकार बनाने के लिए टीडीपी से बाहरी समर्थन लिया और एनडीए की सरकार बन गई. AIADMK ने जब सरकार से अपना समर्थन वापस लिया तो सरकार अल्पमत में आ गई. उ समय स्पीकर टीडीपी के जीएमसी बालयोगी थे. फ्लोर टेस्ट के समय स्पीकर ने कांग्रेस सांसद गिरधर गमांग को वोट डालने की अनुमति दी थी. दरअसल वह बिना इस्तीफा दिए ओडिशा के सीएम बन गए थे. ऐसे में विवेक के आधार पर लोकसभा स्पीकर ने उनको वोट डालने की अनुमति दी थी. हालांकि अगर वह चाहते तो उनको वोट डालने से रोक भी सकते थे. तो ये होती है स्पीकर की पावर, जिसकी वजह से टीडीपी ने स्पीकर पद की मांग रखी है. 
 

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