बीड़ी मजदूरों की आजीविका पर किताब का लोकार्पण बुधवार को
नई दिल्ली:
नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में बुधवार को किताब- “बीड़ी श्रमिकों की आजीविका को संरक्षित, सुरक्षित और प्रोत्साहित करने की जरूरत” का लोकार्पण होगा. यह किताब डॉ अनिला नायर और डॉ एमएम रहमान ने लिखी है. किताब का लोकार्पण केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री डॉ मनसुख एल मंडाविया करेंगे.
इस कार्यक्रम में श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे, सांसद प्रफुल्ल पटेल, स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संयोजक डॉ अश्विनी महाजन और भारतीय मजदूर संघ के अखिल भारतीय संगठन मंत्री श्री बी सुरेंद्रन भी मौजूद रहेंगे. यह किताब अखिल भारतीय बीड़ी उद्योग महासंघ (AIBIF) और त्रिनिकेतन फाउंडेशन फॉर डेवलपमेंट के साथ साझेदारी में लिखी गई है.
यह कार्यक्रम नीति में बदलाव के लिए एक महत्वपूर्ण अपील पर केंद्रित है. बीड़ी उद्योग की अपील है कि बीड़ी उत्पादों पर अन्य कुटीर उद्योगों के कर ढांचे के अनुसार जीएसटी 28 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत किया जाए.
केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय के अनुसार बीड़ी उद्योग 49 लाख से अधिक बीड़ी श्रमिकों के लिए आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत है. इस उद्योग में काम करने वालों में बड़े पैमाने पर सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समुदायों की महिलाएं हैं. कुल बीड़ी उद्योग में महिलाओं की भागीदारी बहुत अधिक है. कुल बीड़ी श्रमिकों में महिलाएं 36 लाख (72.77%) हैं.
बीड़ी उद्योग में महिलाओं को घर में रहते हुए काम करने की सुविधा मिलती है. इससे वे अपने परिवार की आय में योगदान देने के साथ-साथ परिवार की देखभाल सहित अन्य दायित्व भी आसानी से निभा पाती हैं. बीड़ी बनाने से उनको जहां आर्थिक स्वतंत्रता मिलती है वहीं वे अपने परिवारों के भीतर निर्णय लेने में भी सक्षम होती हैं.
बीड़ी श्रमिकों का क्षेत्रीय घनत्व सबसे अधिक पश्चिम बंगाल (39.74%) में है. इसके बाद तमिलनाडु (12.40%), आंध्र प्रदेश/तेलंगाना (11.27%), उत्तर प्रदेश (8.84%), कर्नाटक (5.87%) और फिर बिहार (5.69%) का स्थान आता है. बीड़ी बनाना एक ऐसा कौशल है जो पीढ़ियों से चला आ रहा है. श्रम और रोजगार मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2023 के अनुसार इस उद्योग में रोजगार के आंकड़े में अपंजीकृत श्रमिकों को भी शामिल करने पर यह 80 लाख तक होने का अनुमान है.
आम तौर पर औपचारिक रोजगार के लिए मजदूरों को अक्सर शिक्षा, प्रशिक्षण लेना होता है और शहरों में जाना पड़ता है. जबकि बीड़ी बनाने के काम के लिए किसी औपचारिक शिक्षा की जरूरत नहीं होती. यह काम बूढ़े या शारीरिक रूप से विकलांग श्रमिकों भी कर सकते हैं. घर से काम करने की सुविधा मिलने से ग्रामीण समुदायों के परिवारों को रोजगार के लिए पलायन नहीं करना पड़ता है.
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