देश

बिल्डर्स, बैंक और कानूनी पचड़े में फंसा सपनों का आशियाना, लोन लेकर खरीदे फ्लैट; सालों बाद भी नहीं मिली चाबी

The HindkeshariCampaign For Home Buyers: एक आम आदमी अपनी जिंदगी भर की कमाई एक छोटे से घर के सपने में लगा देता है, लेकिन बिल्डर्स की लापरवाही, डेवलपर्स की वादाखिलाफी, बैंकों की जटिल प्रक्रिया और कानूनी उलझनों के चलते लाखों होम बायर्स अपने सपनों के घर की चाबी से वंचित रह जाते हैं. देशभर में दिल्ली-एनसीआर से लेकर मुंबई, बेंगलुरु और अन्य शहरों तक सैकड़ों हाउसिंग प्रोजेक्ट्स अधर में लटके हैं, और इसका खामियाजा मासूम खरीदारों को भुगतना पड़ रहा है. इसी मुद्दे को उठाने और होम बायर्स की परेशानियों को सामने लाने के लिए The Hindkeshariइंडिया ने अपनी खास मुहिम शुरू की.

गुरुग्राम का ग्रीनोपोलिस प्रोजेक्ट: 14 साल का इंतजार, फिर भी अधूरा सपना

गुरुग्राम के सेक्टर 89 में स्थित ग्रीनोपोलिस प्रोजेक्ट में सालों से घर खरीदारों को अशियाने का इंतेज़ार है. यहां करीब 1500 होम बायर्स पिछले 14 साल से अपने घर का इंतजार कर रहे हैं. साल 2011 में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट में खरीदारों का आरोप है कि ग्रीनोपोलिस फेज-1 के फ्लैट तैयार होने के बावजूद उन्हें चाबियां नहीं सौंपी जा रही हैं.

इस प्रोजेक्ट की कहानी शुरू होती है 2011 से, जब ओरिस ग्रुप को हरियाणा के टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग से 37 एकड़ में ग्रुप हाउसिंग टाउनशिप का लाइसेंस मिला. निर्माण की जिम्मेदारी 3सी शेल्टर्स कंपनी को दी गई, जिसे 2015 तक फ्लैट्स तैयार करने थे. 

समझौते के मुताबिक, 35% फ्लैट्स ओरिस को और 65% 3सी के पास रहने थे. 3सी ने खरीदारों से लगभग 612 करोड़ रुपये वसूले, लेकिन प्रोजेक्ट को पूरा करने में नाकाम रही. आरोप है कि कंपनी ने पैसे की हेराफेरी कर दूसरी कंपनियों में ट्रांसफर कर दी और बाद में खुद को दिवालिया घोषित कर दिया.

यह भी पढ़ें :-  लाइव सर्जरी प्रसारण मामला : सुप्रीम कोर्ट का केंद्र और नेशनल मेडिकल काउंसिल को नोटिस 

दूसरी ओर, ओरिस ने 3सी से अपना पल्ला झाड़ लिया, लेकिन खरीदारों का पैसा इस प्रोजेक्ट में पहले ही लग चुका है और उनके पास पक्के दस्तावेज भी मौजूद हैं. अब तक 1800 में से सिर्फ 500 फ्लैट्स ही तैयार हुए हैं, जिनमें से 350 फ्लैट्स 3सी के हिस्से के हैं. 

लेकिन ओरिस इन फ्लैट्स को खरीदारों को देने से इनकार कर रहा है. ग्रीनोपोलिस के होम बायर कैप्टन (रिटायर्ड) अरुण कुमार जिंदल अपनी व्यथा सुनाते हुए कहते हैं, “हम NCLAT और H-RERA के बीच फुटबॉल बने हुए हैं.

सरकार का दावा: शिकायत पर कार्रवाई

हरियाणा में बिल्डर्स के खिलाफ बढ़ती शिकायतों पर सरकार का रुख जानने के लिए हमने हरियाणा के पीडब्ल्यूडी मंत्री रणबीर गंगवा से बात की. उनका कहना है, “हमारे पास जो भी शिकायत आती है, हम उसके खिलाफ सख्त एक्शन लेते हैं. भविष्य में भी पुराने मामलों को ध्यान में रखते हुए कड़े कदम उठाएंगे, ताकि होम बायर्स को कोई परेशानी न हो.” हालांकि, खरीदारों का अनुभव कुछ और ही कहानी बयां करता है.

बिल्डर्स का कब्जा: घर मिले तो सोसाइटी पर अधिकार नहीं

घर का लंबा इंतजार तो एक समस्या है ही, लेकिन कई मामलों में फ्लैट मिलने के बाद भी सोसाइटी पर बिल्डर्स का कब्जा बना रहता है. बिल्डर्स नियमों को ताक पर रखकर मेंटेनेंस चार्ज के नाम पर सालों तक सोसाइटी से मोटी कमाई करते रहते हैं. 

फेडरेशन ऑफ अपार्टमेंट ओनर्स एसोसिएशन के फाउंडर अलोक कुमार कहते हैं, “कानून साफ है कि प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद बिल्डर को सोसाइटी का नियंत्रण खरीदारों को देना होगा. लेकिन बिल्डर्स नियमों की अनदेखी कर खरीदारों से सालों तक मेंटेनेंस चार्ज वसूलते हैं.” सोसाइटी पर अधिकार पाने के लिए खरीदारों को कोर्ट से लेकर हर स्तर पर लड़ाई लड़नी पड़ रही है.

यह भी पढ़ें :-  पवन कुमार चामलिंग 40 साल में पहली बार विधानसभा चुनाव हारे

रेरा से उम्मीदें, लेकिन नतीजा सिफर

  • बिल्डर्स की मनमानी और होम बायर्स की परेशानियों को देखते हुए रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) का गठन किया गया था. उम्मीद थी कि इससे खरीदारों को राहत मिलेगी, लेकिन हालात में कोई खास सुधार नहीं हुआ. 
  • कर्नाटक होम बायर्स एसोसिएशन के प्रमुख धनंजय पद्मनाभचर कहते हैं, “कर्नाटक में रेरा ने अभी तक कंप्लीशन पॉलिसी तक जारी नहीं की है. रेरा के आने के बाद भी एक भी प्रोजेक्ट ठीक ढंग से पूरा नहीं हुआ.”
  • हालांकि, यूपी रेरा के लीगल एडवाइजर वेंकट राव का मानना है कि पुराने मामलों को तुरंत हल करना मुश्किल है, लेकिन रेरा की वजह से बिल्डर्स में कुछ हद तक अनुशासन जरूर आया है.

देशभर में फंसे प्रोजेक्ट्स, बेबस खरीदार

दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, बेंगलुरु और अन्य शहरों में सैकड़ों प्रोजेक्ट्स अटके पड़े हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में करीब 4.5 लाख फ्लैट्स ऐसे हैं, जिनका निर्माण अधूरा है या डिलीवरी में देरी हो रही है. इनमें से ज्यादातर प्रोजेक्ट्स में खरीदारों ने 80-90% तक भुगतान कर दिया है, लेकिन उन्हें न घर मिल रहा है, न ही पैसा वापस.

आगे क्या?

होम बायर्स के सपनों को साकार करने के लिए सख्त कानून, पारदर्शी सिस्टम और त्वरित न्याय की जरूरत है. जब तक बिल्डर्स पर लगाम नहीं कसी जाएगी, तब तक लाखों परिवारों का अपने घर का सपना अधूरा ही रहेगा. The Hindkeshariइंडिया की इस मुहिम के ज़रीए हमारी कोशिश है कि हर खरीदार को उसका हक मिल सके.

यह भी पढे़ं –  The Hindkeshariकी मुहिम: जेवर गिरवी रखे, लोन-उधार लेकर खरीदा घर, बिल्डर ने बिके फ्लैट के थमाए कागजात; इंसाफ कब?

यह भी पढ़ें :-  17 साल से फरार गुरुग्राम में अपने सहकर्मी की हत्या करने वाला आरोपी गिरफ्तार : पुलिस


Show More

संबंधित खबरें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button