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क्या सरकार किसी निजी संपत्ति को सामुदायिक भलाई के लिए पुनर्वितरित कर सकती है? जानें सुप्रीम कोर्ट में क्या कुछ हुआ

प्रत्येक नागरिक की संपत्ति का योग करके और फिर इसे एक विशेष वर्ग के बीच समान रूप से वितरित करने के  विचार आर्थिक विकास, शासन, सामाजिक कल्याण और राष्ट्र की समझ की कमी को दर्शाते हैं. मेहता ने कहा कि यदि कोई भूमि किसी व्यक्ति की है और एक बड़े क्षेत्र के निवासियों की सामान्य भलाई के लिए सड़क के निर्माण के लिए इसकी आवश्यकता है, तो उस निजी स्वामित्व वाली भूमि को अधिक से अधिक भलाई के लिए उपयोग किए जाने वाले भौतिक समुदाय संसाधन के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा.

उन्होंने कहा, “अनुच्छेद 39 (बी) आधारित कानून का उद्देश्य किसी विशेष समुदाय, नस्ल या जाति के लोगों के स्वामित्व वाली संपत्तियों को नागरिकों के दूसरे वर्ग के बीच वितरण के लिए छीनना नहीं है. सीजेआई चंद्रचूड़,  जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस बी वी नागरत्ना,जस्टिस  एस धूलिया, जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस आर बिंदल, जस्टिस एस सी शर्मा और जस्टिस ए जी मसीह की पीठ ने मंगलवार को कहा कि निजी स्वामित्व वाली संपत्ति को समुदाय के भौतिक संसाधनों के में तौर पर शामिल करने के लिए अनुच्छेद 39 (बी) की व्याख्या करना अतिवादी होगा.

1990 के दशक से आर्थिक विकास की गतिशीलता समाजवादी पैटर्न से मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था में बदल गई है और अब निजी निवेश महत्वपूर्ण है. यदि हम एक उत्पादक अर्थव्यवस्था चाहते हैं तो निजी निवेश को प्रोत्साहित करना होगा. 1950 के दशक में किसी ने भी यह कल्पना नहीं की थी कि बिजली का वितरण निजी पार्टियों द्वारा किया जाएगा. वर्तमान परिदृश्य में, यह तर्क देना बेहद अनुचित होगा कि सामुदायिक संसाधनों में सभी निजी संपत्तियां शामिल हैं.

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सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि जब संवैधानिक अदालत संविधान के राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 39 (बी) जैसे प्रमुख प्रावधान की व्याख्या करती है, तो उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि व्याख्या से “भारत क्या है और वह क्या बनना चाहता है, इसका स्पष्ट संदेश जाना चाहिए. सभी निजी संपत्तियों को समुदाय के भौतिक संसाधनों के रूप में वर्गीकृत करना मुश्किल है. लेकिन साथ ही, हम यह नहीं कह सकते कि भौतिक संसाधनों में कभी भी कोई निजी संपत्ति शामिल नहीं हो सकती.

उन्होंने संकेत दिया कि भारत के विकास के संदर्भ में दो चरम विचारों – समाजवादी और पूंजीवादी – के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है. वहीं तुषार मेहता ने कहा कि अनुच्छेद 39 (बी) आम भलाई को प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ एक कल्याणकारी राज्य विकसित करने का एक उपाय है, जहां समुदाय के भौतिक संसाधनों को वितरण के लिए या तो नियंत्रित करने के लिए विधायी हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है.

उन्होंने कहा कि सरकार किसी भी चरम सीमा की वकालत नहीं करती है – कि देश की सभी संपत्तियां राष्ट्र या समुदाय में निहित हैं, या किसी भी निजी संपत्ति को कभी भी सामुदायिक संसाधनों के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है, यह समय और उद्देश्य के संदर्भ पर निर्भर करता है. मेहता की बात सुनने के बाद पीठ ने कहा कि आपकी दलीलें अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की दलीलों के विपरीत प्रतीत होती हैं जिन्होंने तर्क दिया था कि सामुदायिक संसाधनों में निजी संपत्तियां शामिल होंगी. मेहता ने कहा कि उन्होंने कानूनी प्रस्ताव को अलग तरह से समझाया है. ये बहस बुधवार को पूरी हो जाएगी.

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