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चंपई सोरेन को झारखंड के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए किया गया था अपमानित? जानिए पूरी कहानी

Champai Soren open rebellion : चंपई सोरेन आजकल चर्चा में हैं. टीवी चैनलों से लेकर राजनीतिक गलियारों तक उनको लेकर पिछले कई दिनों से कयास लग रहे हैं. अटकलें लग रही थीं कि झारखंड मुक्ति मोर्चा और खासकर हेमंत सोरेन के साथ अब उनके संबंध अच्छे नहीं रह गए हैं. वह नाराज हैं और भाजपा में शामिल हो सकते हैं. रविवार को उनके दिल्ली आने पर अटकलों ने और जोर पकड़ा और वह किसी बात का खंडन करने से बचते दिखे. हालांकि, देर शाम उन्होंने पूरी बात ही बता दी.

चंपई सोरेन का खुला पत्र 

एक्स पर लिखे अपने लंबे पोस्ट में चंपाई सोरेन ने कहा, “आज समाचार देखने के बाद आप सभी के मन में कई सवाल उमड़ रहे होंगे. आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसने कोल्हान के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक गरीब किसान के बेटे को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया? अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत में औद्योगिक घरानों के खिलाफ मजदूरों की आवाज उठाने से लेकर झारखंड आंदोलन तक, मैंने हमेशा जन-सरोकार की राजनीति की है. राज्य के आदिवासियों, मूलवासियों, गरीबों, मजदूरों, छात्रों एवं पिछड़े तबके के लोगों को उनका अधिकार दिलवाने का प्रयास करता रहा हूं. किसी भी पद पर रहा अथवा नहीं, लेकिन हर पल जनता के लिए उपलब्ध रहा, उन लोगों के मुद्दे उठाता रहा, जिन्होंने झारखंड राज्य के साथ, अपने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे. इसी बीच, 31 जनवरी को, एक अभूतपूर्व घटनाक्रम के बाद, इंडिया गठबंधन ने मुझे झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की सेवा करने के लिए चुना. अपने कार्यकाल के पहले दिन से लेकर आखिरी दिन (3 जुलाई) तक, मैंने पूरी निष्ठा एवं समर्पण के साथ राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया. इस दौरान हमने जनहित में कई फैसले लिए और हमेशा की तरह, हर किसी के लिए सदैव उपलब्ध रहा. बड़े-बुजुर्गों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों एवं समाज के हर तबके तथा राज्य के हर व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए हमने जो निर्णय लिए, उसका मूल्यांकन राज्य की जनता करेगी. झारखंड का बच्चा- बच्चा जानता है कि अपने कार्यकाल के दौरान, मैंने कभी भी, किसी के साथ ना गलत किया, ना होने दिया.” 

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अपमान की वो घड़ी बताई

चंपई सोरेन ने आगे कहा, “इसी बीच, हूल दिवस के अगले दिन, मुझे पता चला कि अगले दो दिनों के मेरे सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया है. इसमें एक सार्वजनिक कार्यक्रम दुमका में था, जबकि दूसरा कार्यक्रम पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण करने का था. पूछने पर पता चला कि गठबंधन द्वारा 3 जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है, तब तक आप सीएम के तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते. क्या लोकतंत्र में इस से अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे? अपमान का यह कड़वा घूंट पीने के बावजूद मैंने कहा कि नियुक्ति पत्र वितरण सुबह है, जबकि दोपहर में विधायक दल की बैठक होगी, तो वहां से होते हुए मैं उसमें शामिल हो जाऊंगा, लेकिन उधर से साफ इंकार कर दिया गया. पिछले चार दशकों के अपने बेदाग राजनैतिक सफर में, मैं पहली बार, भीतर से टूट गया. समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं? दो दिन तक, चुपचाप बैठ कर आत्म-मंथन करता रहा, पूरे घटनाक्रम में अपनी गलती तलाशता रहा. सत्ता का लोभ रत्ती भर भी नहीं था, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी इस चोट को मैं किसे दिखाता? अपनों द्वारा दिए गए दर्द को कहां जाहिर करता?” 

JMM से मोहभंग का खुला ऐलान

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पूर्व सीएम ने लिखा, “जब वर्षों से पार्टी के केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक नहीं हो रही है, और एकतरफा आदेश पारित किए जाते हैं, तो फिर किस से पास जाकर अपनी तकलीफ बताता? इस पार्टी में मेरी गिनती वरिष्ठ सदस्यों में होती है, बाकी लोग जूनियर हैं, और मुझ से सीनियर सुप्रीमो जो हैं, वे अब स्वास्थ्य की वजह से राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, फिर मेरे पास क्या विकल्प था? अगर वे सक्रिय होते, तो शायद अलग हालात होते. कहने को तो विधायक दल की बैठक बुलाने का अधिकार मुख्यमंत्री का होता है, लेकिन मुझे बैठक का एजेंडा तक नहीं बताया गया था. बैठक के दौरान मुझ से इस्तीफा मांगा गया. मैं आश्चर्यचकित था, लेकिन मुझे सत्ता का मोह नहीं था, इसलिए मैंने तुरंत इस्तीफा दे दिया, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी चोट से दिल भावुक था. पिछले तीन दिनों से हो रहे अपमानजनक व्यवहार से भावुक होकर मैं आंसुओं को संभालने में लगा था, लेकिन उन्हें सिर्फ कुर्सी से मतलब था. मुझे ऐसा लगा, मानो उस पार्टी में मेरा कोई वजूद ही नहीं है, कोई अस्तित्व ही नहीं है, जिस पार्टी के लिए हम ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. इस बीच कई ऐसी अपमानजनक घटनाएं हुईं, जिसका जिक्र फिलहाल नहीं करना चाहता. इतने अपमान एवं तिरस्कार के बाद मैं वैकल्पिक राह तलाशने हेतु मजबूर हो गया. मैंने भारी मन से विधायक दल की उसी बैठक में कहा कि – “आज से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है.” इसमें मेरे पास तीन विकल्प थे. पहला, राजनीति से सन्यास लेना, दूसरा, अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा, इस राह में अगर कोई साथी मिले, तो उसके साथ आगे का सफर तय करना. उस दिन से लेकर आज तक, तथा आगामी झारखंड विधानसभा चुनावों तक, इस सफर में मेरे लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं.” 

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कब क्या हुआ था?

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साफ है कि चंपाई सोरेन अब नए विकल्प तलाश रहे हैं. मंजिल भाजपा भी हो सकती है और नई पार्टी भी. मगर, चंपई सोरेन का यह पोस्ट यह बताने के लिए काफी है कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से सम्मानपूर्वक नहीं हटाया गया. अगर, घड़ी की सुइयों को पीछे ले जाएं तो इसे 31 जनवरी 2024 तक ले जाना पड़ेगा. इसी दिन देर शाम के समय हेमंत सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेतृत्व वाले गठबंधन ने नए मुख्यमंत्री के रूप में वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन का नाम प्रस्तावित कर दिया. उन्होंने तुरंत सीएम पद की शपथ भी ले ली. इसके चंद घंटों बाद प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया. पांच महीने बाद 28 जून 2024 झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जेल से रिहा हो गए. झारखंड हाईकोर्ट ने जमीन घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में हेमंत सोरेन को जमानत दे दी. इसके बाद हाईकोर्ट का ऑर्डर फैक्स के जरिए रांची सिविल कोर्ट पहुंचा. बेल बांड भरने और फिर रिलीज ऑर्डर जेल पहुंचने के बाद उन्हें रिहाई मिल गई. पांच दिन बाद, झारखंड के मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने 3 जुलाई को पद से इस्तीफा दे दिया. 4 जुलाई को हेमंत सोरेन (Hemant Soren) तीसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री बन गए. मगर इस बीच चंपई सोरेन का दिल टूट चुका था. हालांकि, वह रविवार से पहले तक इस मसले पर चुप रहे.



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