छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री अरुण साव और विजय शर्मा पहली बार बने विधायक, RSS के हैं करीबी
छत्तीसगढ़ में 2018 में हुए चुनाव में करारी हार और लगातार संघर्ष के बाद, इस वर्ष हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों ने पार्टी के भीतर और बाहर साव के कद को बढ़ा दिया है. इस चुनाव के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार के रूप में भी देखा जा रहा था.
अधिवक्ता से नेता बने 55 वर्षीय साव को एक गैर-विवादास्पद और तटस्थ नेता के रूप में देखा जाता है. साव ने लोरमी विधानसभा सीट पर अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के थानेश्वर साहू को 45,891 वोटों से हराया है. 2019 के संसदीय चुनावों के दौरान साव का चुनावी राजनीति का कोई अनुभव नहीं था, लेकिन इस चुनाव में उन्होंने मोदी लहर के बीच बिलासपुर लोकसभा सीट से 1.41 लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी.
विधानसभा चुनाव से एक साल पहले अरुण साव को विष्णु देव साय की जगह भाजपा की छत्तीसगढ़ इकाई का अध्यक्ष बनाया गया था. साय ने बुधवार को यहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
साव प्रभावशाली साहू ओबीसी समुदाय से हैं तथा निचले कैडर के बीच अपने मजबूत आधार के लिए जाने जाते हैं. उन्हें विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुट करने के लिए प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए एक अच्छा विकल्प माना गया था.
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, राज्य में ओबीसी समुदाय में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (कुर्मी समुदाय) के प्रभाव को देखते हुए भाजपा ओबीसी समुदाय से आने वाले साव (साहू) को सामने लायी थी. साहू समाज राज्य की आबादी का एक बड़ा हिस्सा है तथा 90 सदस्यीय विधानसभा में 51 सामान्य सीटों पर चुनाव परिणामों को प्रभावित करता है.
साव 1990 से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और अन्य संगठनों के सदस्य थे. वह आरएसएस कार्यकर्ता भी थे.
साव ने राज्य में हुए कथित घोटालों को लेकर भूपेश बघेल सरकार पर निशाना साधने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. वहीं, इस साल बस्तर में पार्टी के कार्यकर्ताओं की माओवादियों द्वारा की गई हत्या को लक्षित हत्या करार देते हुए सरकार को घेरा था.
अन्य उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा (50) ब्राह्मण समुदाय से हैं. वह राज्य में भाजपा के महामंत्री हैं.
हिंदुत्व के मुखर समर्थक शर्मा ने कवर्धा निर्वाचन क्षेत्र में प्रभावशाली कांग्रेस नेता और निवर्तमान मंत्री मोहम्मद अकबर को 39,592 वोटों से हराया है.
शर्मा अक्टूबर 2021 में कबीरधाम जिले के कवर्धा शहर में सांप्रदायिक झड़प की एक घटना के बाद सुर्खियों में आए थे. तीन अक्टूबर, 2021 को कवर्धा शहर में एक चौराहे से धार्मिक झंडे हटाने को लेकर दो समुदायों के लोगों के बीच झड़प हो गई थी. घटना के दो दिन बाद दक्षिणपंथी संगठनों ने घटना के विरोध में शहर में एक रैली निकाली थी, जिसके दौरान हिंसा हुई.
भाजपा सांसद संतोष पांडे, पूर्व सांसद अभिषेक सिंह और विजय शर्मा उन लोगों में शामिल थे जिनके खिलाफ दंगा भड़काने और अन्य आरोपों में प्राथमिकी दर्ज की गई थी. इस दौरान शर्मा को गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में जमानत पर रिहा किया गया.
शर्मा ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत आरएसएस की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की कवर्धा शहर इकाई के संयुक्त संयोजक के रूप में की थी. 2004 से 2010 तक, वह भारतीय जनता युवा मोर्चा कबीरधाम जिला इकाई के प्रमुख थे.
वर्ष 2016 से 2020 तक, उन्होंने भाजयुमो छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. 2020 में, उन्हें कबीरधाम जिला पंचायत के सदस्य के रूप में चुना गया.
छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 90 में से 54 सीटें जीती हैं. वहीं, कांग्रेस 35 सीटों पर सिमट गई है. राज्य में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी एक सीट जीतने में कामयाब रही है.
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