मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बगावती तेवर: कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ीं, जानें सिद्धरमैया की हासन रैली के मायने
बेंगलुरु:
कर्नाटक की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बगावती तेवरों ने कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. हासन में आयोजित उनकी रैली को कांग्रेस की रैली बनाने के लिए पार्टी को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी है. पहले इस रैली का नाम था “सिद्धारमैया स्वाभिमान जनांदोलन समावेश,” जिसे बदलकर “जन कल्याण समावेश” यानी “पब्लिक वेलफेयर रैली” रखा गया है. इस बदलाव के लिए AICC को हस्तक्षेप करना पड़ा. अगर देखा जाए तो ये अहिंदा रैली है. ऐसी ही अहिंदा रैली का आयोजन सिद्धारमैया ने 2005 में किया था और तब देवेगौड़ा ने उन्हें JDS से निकाल दिया था.
खतरे में है सिद्धारमैया की कुर्सी
एक बार फिर सिद्धारमैया की कुर्सी खतरे में है और फिर सिद्धरमैया ने अहिंदा आंदोलन का दामन थामा है. अहिंदा आंदोलन किसे कहते है इसपर चर्चा से पहले बात सिद्धरमैया की. जब से वो राजनीति में आए हैं किसी ना किसी महत्वपूर्ण पद पर रहे हैं. वह जनता दल फिर जनता दल सेकुलर और बाद में कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे. MUDA के कथित घोटाले को लेकर सिद्धारमैया की साख दाव पर है. भले ही 14 प्लॉट्स उनकी पत्नी को आवंटित किए गए हों और बीजेपी के कार्यकाल में किए गए हों लेकिन इसके बावजूद beneficiary है तो सिद्धरमैया का परिवार ही.
इसलिए स्वाभिमान जनांदोलन का किया फैसला
साथ में एक आम धारणा बन गई है कि सिद्धरमैया को मुख्यमंत्री की कुर्सी ढाई साल के लिए ही मिली है, इसके बाद उनकी जगह उप मुख्यमंत्री डी के शिवकुमार लेंगे. ऐसे में सिद्धरमैया पर मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने का दबाव है. 77 साल के सिद्धारमैया को ये मंजूर नहीं है. इस में अपने सोशल इंजीनियरिंग की ताकत सिद्धारमैया कांग्रेस आलाकमान को दिखाना चाहते है और इसलिए उन्होंने सिद्धारमैया स्वाभिमान जनांदोलन समावेश का आयोजन हासन में करने का फैसला किया. अहिंदा आंदोलन की शुरुआत 70 के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री देवराज अर्स ने की थी.
क्या है अहिंदा आंदोलन
अहिंदा कन्नड़ा भाषा का Acronym है. जिसमें A अल्पसंख्यक H हिंद_उली_द_वरू यानी बैकवर्ड Classes और D यानी Dalits का गठबंधन है. उनके बाद सिद्धारमैया ने इस आंदोलन को दोबारा शुरू किया. 2005 में उप मुख्यमंत्री रहते हुए सिद्धारमैया को जब एहसास हुआ कि JDS सुप्रीमो देवेगौड़ा अपने बेटे कुमारस्वामी को पार्टी की कमान सौंपने की तैयारी कर रहे है तो उन्होंने हुबली में 24 जुलाई 2005 को अहिंदा सम्मेलन बुलाया था. देवेगौड़ा भी राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी है. उन्हें लगा कि सिद्धरमैया जेडीएस तोड़ कर ABPJD को दोबारा शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं और ऐसे में देवेगौड़ा ने सिद्धारमैया को JDS से 3 अगस्त 2005 को निकाल दिया.
2006 में कांग्रेस में शामिल हुए थे सिद्धारमैया
सोनिया गांधी की मौजूदगी में 3 सितंबर 2006 को बेंगलुरू में सिद्धारमैया कांग्रेस में शामिल हुए थे लेकिन पुराने कांग्रेसी नेताओं को ये रास नहीं आया. बीजेपी जेडीएस की साझा सरकार कुमारस्वामी के नेतृत्व में बन चुकी थी और इसी साल यानी 2006 के आखिर में एक नई चुनौती सिद्धारमैया के सामने खड़ी थी. वकील के तौर पर अपने पैतृक जिले मैसूर से अपना करियर शुरू करने वाले ओबीसी समाज के इस कुरबा नेता का वर्चस्व दाव पर था. जेडीएस से निकाले जाने के बाद उन्होंने MLA पद से इस्तीफा दे दिया. ऐसे में चामुंडेश्वरी सीट पर उप चुनाव सिद्धारमैया ने कांग्रेस की टिकट पर लड़ा. देवेगौड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने सिद्धारमैया को हराने की कोशिश में पूरी शक्ति लगा दी. ओल्ड मैसूर रीजन की ये सीट जेडीएस की मजबूत सीट मानी जाती रही है. हालांकि, कांटे की टक्कर में सिद्धारमैया को 257 वोटों से जीत मिली.
2013 में बने थे कर्नाटक के मुख्यमंत्री
इसके बाद सिद्धारमैया ने सफलता की सीढ़ी तेज़ रफ्तार से चढ़ी. वह 2008 में विपक्ष के नेता और 2013 में मुख्यमंत्री बनें. सिद्धारमैया को किसी ना किसी तौर पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी झेलनी पड़ी लेकिन पार्टी की हाई कमान का समर्थन उनके साथ था. 2013 में कांग्रेस सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री कौन होगा इसको लेकर वोटिंग हुई. सिद्धरमैया के सामने थे मल्लिकार्जुन खरगे लेकिन नतीजे पुराने कांग्रेसी नेता खरगे के खिलाफ आए और सिद्धरमैया बाजी मार गए. 5 साल का कार्यकाल उन्होंने पूरा किया और ऐसा करने वाले सिद्धरमैया कर्नाटका के दूसरे नेता थे. पहले देवराज अर्स थे जिन्होंने ने अपना कार्यकाल पूरा किया था.
फिर थामा अहिंदा आंदोलन का दामन
भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे सिद्धरमैया ने एक बार फिर अहिंदा आंदोलन का दामन थामा है ताकि कांग्रेस आलाकमान उनके ख़िलाफ़ कोई भी कदम उठाने से पहले दोबारा सोचे. और प्रदेश के कांग्रेस नेताओं की आवाज जो उनके खिलाफ उठती रहती है उसपर विराम लगे. इस रैली के जरिए सिद्धारमैया अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने के लिए अहिंदा आंदोलन का सहारा ले रहे हैं.