चीन ने दुनिया की सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना को दी मंजूरी, क्यों बताया जा रहा है इसे वाटर बम
भारत भी अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र पर अपना बांध बना रहा है. भारत और चीन ने 2006 में दोनों की सीमाओं से बहने वाली नदियों से जुड़े मामलों के हल के लिए एक्सपर्ट लेबल मैकेनिज्म (ईएलएम) का गठन किया था. इसके जरिए चीन भारत को बाढ़ के मौसम के दौरान ब्रह्मपुत्र और सतलज नदियों पर हाइड्रोलॉजिकल डेटा प्रदान करता है.
भारत और चीन में समझौता
भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधियों की बैठक 18 दिसंबर को हुई थी. इसमें भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी के विदेश मंत्री वांग ने सीमा पार नदियों से जुड़े डेटा को साझा करने पर भी चर्चा हुई थी. विदेश मंत्रालय के मुताबिक इन विशेष प्रतिनिधियो ने सीमा पार नदियों से जुड़ा डेटा साझा करने सहित सीमा पार सहयोग और आदान-प्रदान के लिए सकारात्मक दिशा-निर्देश का आदान-प्रदान किया.
इस बांध के निर्माण की चुनौतियां क्या हैं
इस बांध के निर्माण में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. यह इलाका धरती के टैक्टोनिक प्लेट पर बसा है, इसे भूकंप के लिहाज से काफी संवेदनशील माना जाता है. तिब्बती पठार के टेक्टोनिक प्लेटों के ऊपर बसे होने की वजह से वहां अक्सर भूकंप आते रहते हैं. ब्रह्मपुत्र नदी पूरे तिब्बती पठार से होकर बहती है. यह भारत में प्रवेश करने से पहले 25 हजार 154 फीट की असाधारण ऊर्ध्वाधर गिरावट के साथ दुनिया की सबसे गहरी घाटी बनाती है. जहां यह बांध बनाया जाना है, वह मेनलैंड चीन के इलाके में हैं, जहां सबसे अधिक बारिश होती है. इससे ब्रह्मपुत्र पानी का पर्याप्त बहाव सुनिश्चित होता है.हालांकि बुधवार को जारी एक आधिकारिक बयान में इस बांध के निर्माण से पैदा होने वाली पर्यावरणीय चिंताओं का समाधान करने की कोशिश की गई थी.बयान के मुताबिक इस परियोजना में सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के उपायों पर ध्यान दिया गया है.
यारलुंग-त्संगपो की बिजली क्षमता का दोहन करने के लिए इस परियोजना में चार से छह सुरंगें खोदने की जरूरत पड़ेगी.इनमें से हर एक सुरंग करीब 20 किमी लंबी होगी. इसके अलावा आधी नदी की धारा भी मोड़नी पड़ेगी.चीन का कहना है कि स्वायत्तशासी तिब्बत के लिए इस परियोजना से सालाना तीन अरब डॉलर का लाभ होगा.
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