देश

चीन का अब तक का सबसे बड़ा अतिक्रमण, भूटान के शाही परिवार के पैतृक क्षेत्रों पर किया कब्जा

इस मामले पर लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज (एसओएएस) में तिब्बती इतिहास के विशेषज्ञ, प्रोफेसर रॉबर्ट बार्नेट ने कहा है कि यह चीन की तरफ से एक कमजोर पड़ोसी देश के सांस्कृतिक महत्व वाले क्षेत्र पर अवैध कब्जा की तरह है. 

भूटान के राजदूत ने पूरे मामले पर क्या कहा?

बेयुल खेनपाजोंग में चीन की निर्माण गतिविधि पर सवालों के जवाब में, भारत में भूटान के राजदूत मेजर जनरल वेत्सोप नामग्याल (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हालांकि यह हमारी नीति है कि हम चल रही किसी भी सीमा वार्ता को लेकर मीडिया में कोई बयान नहीं देते हैं. लेकिन मैं बताना चाहूंगा कि हम सीमा वार्ता के दौरान हमेशा भूटान के क्षेत्रीय हितों को बनाए रखा जाएगा और उसकी रक्षा की जाएगी. 

सैटेलाइट इमेजरी विशेषज्ञों ने The Hindkeshariसे बात करते हुए बताया कि इन तस्वीरों से साफ हो रहा है कि चीन ने जिस स्तर का निर्माण कार्य किया है उसमें सैंकड़ों लोगों को बसाया जा सकता है. The Hindkeshariने 200 से अधिक एकल और बहुमंजिला संरचनाओं की गिनती की है, हालांकि यह माना जा रहा है कि कि अंतिम संख्या इससे अधिक हो सकती है.  यहां दिखाई देने वाले तीन एन्क्लेव का निर्माण अभी भी पूरा नहीं हुआ है. 

2020 और वर्तमान की तस्वीर में साफ दिख रहा है अंतर

रेफरेंस के लिए हम आपको  नवंबर 2020 की पुरानी तस्वीरों को भी नई तस्वीर के साथ दिखा रहे हैं. जिसमें साफ तौर पर देखा जा सकता है कि उस दौरान उस क्षेत्र में निर्माण कार्य नहीं हुए थे.  नवंबर 2020 से लेकर अब तक बेयुल खेनपाजोंग को पूरी तरह से बदल दिया गया है. सड़क का एक जाल बिछा दिया गया है. 

Latest and Breaking News on NDTV

चैथम हाउस द्वारा हाल ही में प्रकाशित एक लेख में, जॉन पोलक और एक प्रमुख भू-खुफिया शोधकर्ता डेमियन साइमन ने बेयुल, और अन्य घाटियों के महत्व को समझाया है. बताते चलें कि शाही परिवार अपनी पैतृक विरासत को पर्वतीय क्षेत्र से जोड़ता रहा है, फिर भी सरकार वहां चीनी बस्ती को रोकने में असमर्थ रही है. 

यह भी पढ़ें :-  चिनफिंग से मुलाकात के बाद PM मोदी के इन चार शब्दों पर गौर किया आपने?

सिलीगुड़ी कॉरिडोर को लेकर भारत की बढ़ जाती है चिंता

भूटान के कुछ हिस्सों पर चीन के कब्जे से भारत की सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है.  2017 में सिक्किम से सटे ऊंचाई वाले डोकलाम पठार में भारतीय और चीनी सैनिकों का आमना-सामना हुआ था. भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों को उस क्षेत्र में बनाई गई सड़क का विस्तार करने से रोक दिया था. गौरतलब है कि डोकलाम के क्षेत्र कोअंतरराष्ट्रीय स्तर पर भूटानी क्षेत्र के रूप में मान्यता मिली हुई है. 

डोकलाम संकट के बाद से चीन की तरफ से कई बार घुसपैठ के प्रयास हुए हैं. चीनी श्रमिकों ने अमू चू नदी घाटी के किनारे तीन गांवों का निर्माण करने के लिए भूटानी क्षेत्र में घुसपैठ किया था. जो पूर्व में स्थित है और सीधे डोकलाम से सटा हुआ है. भारत, भूटान में चीन की जमीन हड़पने की कोशिशों को सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर खतरे के तौर पर देखता रहा है. बताते चलें कि सिलीगुड़ी कॉरिडोर के माध्यम से ही भारत पूर्वोत्तर भारत के राज्यों से जुड़ा हुआ है.

भारत में विदेश मामलों के जानकार डॉ. ब्रह्मा चेलानी ने कहा कि “भूटानी क्षेत्रीय संप्रभुता का उल्लंघन करने वाली चीनी निर्माण गतिविधि का उद्देश्य भूटान-भारत संबंधों को कमजोर करना और भूटान को चीनी मांगों को मानने के लिए मजबूर करना हो सकता है.

एक अन्य जानकार डॉ. बार्नेट ने कहा कि भारत की सुरक्षा चिंताएं, वास्तव में, भूटान के लिए एक अतिरिक्त समस्या हैं. “चीन ने भूटान पर एक तथाकथित पैकेज डील थोप दी है – वह जकारलुंग और उसके दक्षिण और पश्चिम के क्षेत्रों को वापस करने से इंकार कर सकता है जब तक कि भूटान पश्चिमी भूटान के क्षेत्रों, विशेष रूप से डोकलाम पठार, को चीन को नहीं सौंप देता, जिसे भूटान अपने संधि दायित्वों के कारण नहीं छोड़ सकता है. बताते चलें कि यह क्षेत्र भारत के लिए बेहद अहम माना जाता है.

यह भी पढ़ें :-  "महुआ मोइत्रा के लोकसभा निष्कासन की योजना बनाई जा रही है, लेकिन...'': CM ममता बनर्जी

क्या चीन भूटान को अपने कब्जे में करना चाहता है?

चीन के अत्यधिक दबाव के कारण, भूटान अपने क्षेत्र में घुसपैठ को हमेशा के लिए बंद करने को इच्छुक है. पिछले साल अक्टूबर में, विदेश मंत्री टांडी दोरजी ने बीजिंग की यात्रा की थी, जो पहली यात्रा थी. उसी महीने, प्रधान मंत्री लोटे शेरिंग ने कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि चीन और भूटान के बीच एक उचित सीमा का सीमांकन किया जाएगा.  भूटान ने वार्ता की प्रगति पर सार्वजनिक बयान नहीं दिया है, हालांकि यह माना जाता है कि भारत को ताजा घटनाक्रम के बारे में सूचना दे दी गयी है. 

Latest and Breaking News on NDTV

हालांकि, भारत की सबसे बड़ी चिंता चीन के साथ भूटान के संबंधों के भविष्य को लेकर हो सकता है. प्रमुख तिब्बतविज्ञानी क्लाउड अरपी ने पिछले महीने The Hindkeshariको बताया था कि भूटान धीरे-धीरे चीन की रणनीतिक कक्षा में स्थानांतरित हो रहा है और भारत बहुत कुछ नहीं कर सकता है, सिवाय इसके कि नई दिल्ली और थिम्पू के बीच एक नए सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए जाएं. हालांकि अब तक उस दिशा में किसी कदम के कोई संकेत नहीं हैं.

ये भी पढ़ें-

Show More

संबंधित खबरें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button