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चीन की बढ़ती परमाणु ताकत किस-किस के लिए खतरा, क्या जंग की तैयारी कर रहा ड्रैगन?

नई दिल्ली:

पूरी दुनिया इस वक्त दो बड़ी जंग में उलझी हुई है. एक ओर रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध लंबे अरसे से जारी है. वहीं इजरायल-हमास की जंग ने अब दुनिया को दो खेमों में बांट दिया है. इस सबके बीच चीन पर अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन की रिपोर्ट ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं.

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चीन की बढ़ती परमाणु ताकत से अमेरिका भी हैरान

चीन की मिलिट्री ताकत पर अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन की रिपोर्ट आयी है, जो बता रही है कि चीन की परमाणु हथियार बढ़ाने की रफ़्तार दुनिया में सबसे तेज है. 2021 में चीन के पास 400 परमाणु हथियार थे, अब 500 से ज़्यादा हैं. अगले 7 साल में चीन के परमाणु हथियार दोगुने हो जाएंगे.

इस रिपोर्ट का दावा है कि 2030 तक चीन के पास 1000 से ज़्यादा परमाणु हथियार होंगे. इंटरकॉन्टिनेंटल दूरी की मिसाइल प्रणाली बनाने की कोशिश में चीन लगा हुआ है. चीन ने अगर ऐसी मिसाइल बना ली तो अमेरिका के लिए बड़ा खतरा होगा और ये अमेरिका समेत पूरी दुनिया के लिए चिंता की बात है.

चीन बढ़ा रहा बर्बादी का ज़ख़ीरा?

हालांकि चीन ने अमेरिका की इस रिपोर्ट को ख़ारिज कर दिया है. चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि पेंटागन की रिपोर्ट चीन के प्रति पूर्वाग्रह से भरी हुई है. रिपोर्ट में तथ्यों को नजरअंदाज किया गया है. अमेरिका जान-बूझकर चीन के खतरे की बातें फैलाता है.

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चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीन ने तो अपने परमाणु बलों को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ज़रूरी न्यूनतम स्तर पर रखा हुआ है. चीन किसी भी देश के साथ परमाणु हथियारों की दौड़ में शामिल नहीं है.

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ऐसे में सवाल उठता है कि चीन की बढ़ती परमाणु ताक़त, किस-किस के लिए ख़तरा है? क्या चीन जंग की तैयारी कर रहा है?

पूर्व राजनयिक स्कंद तायल ने कहा कि ये कोई नई बात नहीं है. चीन का उद्देश्य है कि 2049 तक वो दुनिया की बड़ी सैन्य ताकत बन जाए. इसीलिए वो अपनी परमाणु शक्ति भी बढ़ा रहा है. लेकिन अगर इसे इस तरह से देखा जाए कि अमेरिका और रूस के पास 5500 परमाणु हथियार है, लेकिन वो वियतनाम में हारा और अफगानिस्तान भी छोड़कर भाग गया. ऐसे में संख्या सिर्फ एक मात्र मनोवैज्ञानिक बढ़त है.
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उन्होंने कहा कि चीन ताइवान पर भी प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, कि कैसे उसे कमजोर किया जाए. चीन का लंबे समय का ये टारगेट है कि कैसे ताइवान पर कब्जा की जाए. लेकिन यूक्रेन-रूस युद्ध या इजरायल-फिलीस्तीन युद्ध का रूस किसी तरह का फायदा उठाने की कोशिश करता नहीं दिख रहा है.

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