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आरक्षण को लेकर चिराग पासवान का क्लियर स्टैंड, पार्टी ने कहा- "पहले की व्यवस्था ही रहेगी जारी"


नई दिल्ली:

भाजपा की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने कहा कि आरक्षण के मूलभूत प्रावधानों में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं किया जाएगा. एक्स पर एक पोस्ट में लोजपा (रामविलास) ने लिखा कि पार्टी अध्यक्ष सह केंद्रीय मंत्री  चिराग पासवान जी के अथक प्रयासों की वजह से आज आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जी के साथ एक लंबे दौर की बातचीत के पश्चात उनके समर्थन में कहा की एनडीए सरकार बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर जी के द्वारा बनाए गए आरक्षण के मूलभूत प्रावधानों में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं किया जाएगा. साथ ही पूर्व की व्यवस्था के साथ ही लागू रहेगा. ये पार्टी के संस्थापक परम श्रद्धेय स्व. रामविलास पासवान जी के सिद्धांतों की जीत है और देशभर के करोड़ों अनुसूचित जाति – जनजाति वर्ग की जीत है. प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार SC – ST वर्ग के समग्र उत्थान और समावेशी विकास के लिए संकल्पित है.

पोस्ट में आगे लिखा गया कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने प्रधानमंत्री मौजूदगी में पहले ही कहा था की ” जब तक मैं हूं तब तक आरक्षण को कोई समाप्त नहीं कर सकता है ” आज ये चरितार्थ हुआ.

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले का किया था विरोध

केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का विरोध किया था, जिसमें राज्यों को अनुसूचित जातियों के आरक्षण के भीतर क्रीमी लेयर बनाए जाने की अनुमति दी गई है. उन्होंने घोषणा की कि उनकी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) इसके खिलाफ अपील करेगी. चिराग पासवान ने कहा था कि उनकी पार्टी जल्दी ही इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका डालने जा रही है.

उन्होंने कहा था, “हमारी पार्टी सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध करेगी कि वह अपने हाल के फैसले की समीक्षा करे, जिसमें अनुसूचित जाति कोटे के तहत 15 प्रतिशत उप-समूहों को अनुमति दी गई है. एससी कोटे में क्रीमी लेयर को अनुमति नहीं दी जा सकती. एससी कोटे में उप-समूहों को अनुमति देने से सामाजिक रूप से हाशिए पर पड़े वर्ग के उत्थान का उद्देश्य पूरा नहीं होगा, जो छुआछूत की प्रथा का शिकार रहा है.”

चिराग पासवान ने आश्चर्य व्यक्त किया कि शीर्ष अदालत के फैसले में अस्पृश्यता शब्द का उल्लेख तक नहीं है. उन्होंने कहा, “अनुसूचित जाति के अधिकांश लोग, यहां तक ​​कि संपन्न परिवारों से आने वाले और शिक्षा तक पहुंच रखने वाले लोग भी अस्पृश्यता का सामना करते हैं. इसलिए, अनुसूचित जाति के भीतर उप-समूहों की अनुमति देना न्यायोचित नहीं है.”



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