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जलवायु परिवर्तन : बढ़ती गर्मी, घटती ठंड और पिघलते हुए ग्लेशियर्स बन रहे हैं चिंता का कारण

बढ़ते हुए तापमान से बढ़ रही चिंता

साल 2023 में तापमान बड़े हुए थे और उसने कई रिकॉर्ड तोड़े लेकिन साल 2024 ने 2023 का भी रिकॉर्ड तोड़ा और भारत में सबसे गर्म साल रहा. यही नहीं अभी साल 2025 की शुरुआत ही है लेकिन इसमें भी बारिश नाममात्र हुई है. उत्तराखंड मौसम विज्ञान केंद्र की माने तो 81 फीसदी बारिश कम रिकॉर्ड हुई है. मौसम विज्ञान केंद्र के निर्देशक विक्रम सिंह के मुताबिक जनवरी और फरवरी का महीना विंटर सीजन का होता है और इसमें हमें अक्सर 100 या 101 एमएम बारिश होती है. अगर जनवरी और फरवरी के महीने में देखा जाए तो 50-50 एमएम की बारिश होती है लेकिन जनवरी का महीना गुजरने को है और अभी तक मुश्किल से ही चार प्रतिशत बारिश ही हुई है.

1 जनवरी 2025 से 22 जनवरी 2025 में बारिश के रिकॉर्ड

अल्मोड़ा में 67 फीसदी ,बागेश्वर में 82 फीसदी ,चमोली में 90 फीसदी ,चंपावत में 64 फीसदी, देहरादून में 71 फीसदी, पौड़ी गढ़वाल में 84 फीसदी, टिहरी में 87 फीसदी, हरिद्वार में 29 फीसदी, नैनीताल में 44 फीसदी ,पिथौरागढ़ में 88 फीसदी, रुद्रप्रयाग में 90 फीसदी, उधम सिंह नगर में 74 फीसदी, और उत्तरकाशी में 89 फीसदी बारिश कम हुई है.

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कम बारिश होना है पर्यावरण और लोगों के लिए चिंताजनक

मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक विक्रम सिंह के मुताबिक बारिश का कम होना बेहद चिंताजनक है क्योंकि पहाड़ों में लगातार निर्माण का काम बढ़ रहा है और इसके लिए तेजी से जंगलों को काटा जा रहा है. इसके अलावा जंगलों की आग की घटनाएं भी साल दर साल बढ़ रही हैं. पहाड़ों पर लगातार वाहनों की संख्या भी बढ़ रही है और वाहनों से निकलने वाला धुआं सीधे वायुमंडल और ग्लेशियर पर बड़ा प्रभाव डाल रहे हैं.

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आने वाले वक्त में दिखेगा इसका बुरा प्रभाव

प्रोफेसर और पर्यावरणविद एसपी सती कहते हैं कि बारिश कम हो रही है तो इसका प्रभाव आने वाले समय में जरूर पड़ेगा. जिसमें सबसे पहले जंगलों की आज की घटनाएं और बढ़ेंगी. दूसरा प्रभाव ग्लेशियर पर बर्फ कम पड़ेगी और ग्लेशियर तेजी से पिघलेंगे और तीसरा सबसे बड़ा प्रभाव पीने के पानी की समस्या और बढ़ेगी. मौसमी चक्र में बदलाव में सबसे ज्यादा हम रोल ग्लोबल वार्मिंग, पेड़ों का अंधाधुन कटना, वाहनों से निकलने वाला धुआं और कंक्रीट के बड़े जंगल हैं और ऐसे ही बारिश कम होती रही और तापमान बढ़ता रहा तो शायद ही धरती पर पानी नसीब हो पाएगा.



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