संविधान 75 साल में सिर्फ एक ही बार इमरजेंसी में तोड़ा गया : The HindkeshariIndia संवाद कार्यक्रम में प्रकाश जावड़ेकर
नई दिल्ली:
भारत के संविधान निर्माण के 75 साल पूरे होने पर The HindkeshariIndia संवाद कार्यक्रम में राज्यसभा सांसद, वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी, पूर्व राज्यसभा सांसद और पूर्व राजदूत डॉ पवन वर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता प्रकाश जावड़ेकर ने चर्चा में भाग लिया. यह चर्चा इस सवाल पर केंद्रित थी कि विपक्षी दलों के कथनानुसार क्या संविधान खतरे में है?
राज्यसभा सांसद, वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने विपक्ष की और से संविधान के खतरे में होने की बात कहे जाने से जुड़े सवाल पर कहा कि, जब हम कहते हैं कि हनन हो रहा है तो बड़ी सरल बात कहते हैं. वह सरल बात है मूल्यों का हनन हो रहा है. संविधान के मूल तत्वों की कमी हो रही है. संविधान के मूल्यों वाले कई स्तंभ हैं, धर्म निरपेक्षता, पंथ निरपेक्षता, सौहार्द, संघीय ढांचा वगैरह…इसके अलावा हमारे स्तंभ हैं संसदीय गणतंत्र, सीएजी, ईसी… यदि आप स्तभों को कमजोर करते हैं, तो हनन कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि कुछ चिंताजनक डेवलपमेंट हुए हैं. देश में दुराव, अविश्वास, विभाजन की राजनीति, संस्थाओं को कमजोर करना.. ब्यूरोक्रेसी में वफादारी की कसौटी सबसे ऊपर है. चुनाव आयोग में जो विश्वसनीयता पहले थी वह अब नहीं है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि, ”संविधान 75 साल में सिर्फ एक ही बार तोड़ा गया था, इमरजेंसी के समय. तब हम 14 महीने जेल में रहे थे, सत्याग्रह करके गए थे. देश में एक लाख 30 हजार लोग बंदी बनाए गए थे. यह देश को पता भी नहीं चला, सेंसरशिप थी. इमरजेंसी क्यों लगाई गई थी, क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा जी को पद से हटाया था. उसको ठीक करने के लिए वे 39 अमेंडमेंट लाई थीं. इसमें कोर्ट के सारे अधिकार समाप्त कर दिए थे तो वह सुनवाई नहीं कर सकता था.”
उन्होंने कहा कि ”42वां संविधान संशोधन तो लोकतंत्र की भयंकर हत्या थी. तब के एटॉर्नी जनरल नीरेन डे ने कोर्ट से कहा था कि कितने भी समय तक सरकार को बंदी बनाकर रखने का अधिकार है, बिना जांच के, बिना सबूत के और बिना सुनवाई के..कोर्ट ने कहा था कि क्या उन्हें जीने का अधिकार है तो नीरेन डे ने कहा था कि सरकार यदि चाहे तो किसी की जान भी ले सकती है. उस समय सारी अभिव्यक्ति की, संगठन की स्वतंत्रता खत्म थी, कार्यक्रम करने की, आंदोलन करने की आजादी खत्म थी. जो संविधान संशोधन किया जाएगा उसको कोई चैलेंज भी नहीं कर सकता था.”
संविधान की आत्मा जीवित न रखी जाए तो वह सिर्फ कागज का टुकड़ा : डॉ पवन वर्मा
पूर्व राज्यसभा सांसद और पूर्व राजदूत डॉ पवन वर्मा ने कहा कि, ”संविधान महज एक कागज का टुकड़ा है यदि उसकी आत्मा को जीवित न रखा जाए. इमरजेंसी में संविधान के कुछ मूल सिद्धांतों का हनन हुआ था. वह 1977 की बात है. पर ऐसा नहीं है कि सरकारें आज की हों या पहले की हों, संविधान की आड़ में संविधान की आत्मा पर प्रहार होता चला आया है. संविधान की आत्मा तब तक स्वस्थ रहती है जब तक उसके मूल स्तंभ कमजोर नहीं होते. न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और चौथा मीडिया. ब्यूरोक्रेसी स्वतंत्र राय देने के काबिल नहीं बची है. इससे संविधान को खतरा है.”