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"लोकतंत्र को बचाना होगा": ममता बनर्जी सहित विपक्षी दल 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' को लेकर आक्रामक


नई दिल्ली:

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा दो बिलों को मंजूरी दिए जाने के बाद सरकार पर जोरदार हमला बोला. इनमें से एक विधेयक के जरिए संविधान में संशोधन हो सकेगा और  लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना संभव हो सकेगा. यह बिल बीजेपी के ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के सपने को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

तृणमूल नेता ममता बनर्जी पहले से ही इस प्रस्ताव की मुखर आलोचक रही हैं. उन्होंने इसे “संविधान के मूल ढांचे को नष्ट करने की साजिश” कहा था. ममता ने आज शाम को इस “संघ-विरोधी” कदम की निंदा की. उन्होंने इसे भारत के लोकतंत्र और संघीय ढांचे को कमजोर करने वाला बताया.

उन्होंने कहा, “हमारे सांसद इस क्रूर कानून का पूरी ताकत से विरोध करेंगे… बंगाल कभी भी दिल्ली की तानाशाही सनक के आगे नहीं झुकेगा. यह भारत के लोकतंत्र को निरंकुशता के चंगुल से बचाने के बारे में है!”

ममता बनर्जी का आज का तीखा हमला उनके एक साथ चुनाव कराने के विरोध को एक बार फिर स्पष्ट करने वाला है. जनवरी में उन्होंने केंद्र द्वारा पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में गठित पैनल को पत्र लिखा था. इस पैनल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी सदस्य थे. ममता ने पत्र में अपनी चिंताओं से अवगत कराया था. उन्होंने कहा था कि उन्हें “सिद्धांत को लेकर बुनियादी वैचारिक कठिनाइयां” हैं.

उनकी ओर से उठाए गए मुद्दे थे – ‘एक राष्ट्र’ शब्द का संवैधानिक और संरचनात्मक निहितार्थ क्या है, और संसदीय और विधानसभा चुनावों का समय, खासकर अगर मौजूदा चुनाव चक्रों में बड़ा अंतर हो तब?

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर विपक्ष

ममता बनर्जी के साथ उनके तमिलनाडु के समकक्ष द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के एमके स्टालिन ने भी ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के प्रस्ताव की निंदा की और इसे “लोकतंत्र विरोधी” बताया.

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स्टालिन ने कहा, “आइए हम भारतीय लोकतंत्र पर इस हमले का पूरी ताकत से विरोध करें!”

बंगाल और तमिलनाडु में सरकारों के निर्धारित कार्यकाल के अनुसार साल 2026 में विधानसभा चुनाव होंगे. 

आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने भी अपनी बात रखी और एक साथ चुनाव कराने के बजाय देश के स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के बुनियादी ढांचे की मांगों पर राजनीतिक सहमति और ध्यान देने का आह्वान किया.

दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री ने बीजेपी की “गलत प्राथमिकताओं” पर दुख जताते हुए कहा, “इस देश को ‘एक राष्ट्र, एक शिक्षा’, ‘एक राष्ट्र, एक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली’ की जरूरत है… ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की नहीं.”

दिल्ली का अगला विधानसभा चुनाव कुछ ही सप्ताह बाद फरवरी 2025 में होने की उम्मीद है.

बिल को लेकर कांग्रेस की ओर से असम के सांसद गौरव गोगोई ने देश के संघीय ढांचे पर संभावित नकारात्मक प्रभावों की चेतावनी दी. उन्होंने कहा कि पिछले महीने महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों को एक साथ आयोजित करके ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ प्रस्ताव को लागू करने के अवसरों को ठुकरा दिया गया.

गोगोई ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी बात पर अमल नहीं किया है. वे ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की बात करते हैं, लेकिन जब उन्हें सुविधा होती है तो वे हरियाणा और महाराष्ट्र में अलग-अलग चुनाव कराते हैं. वे एक राज्य में एक चरण में चुनाव भी नहीं कराते…जब उन्हें सुविधा होती है, तो वे पांच चरणों में चुनाव कराते हैं.” 
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के शिवसेना गुट और सीपीआईएम के जॉन ब्रिटास ने भी ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के प्रस्ताव का विरोध किया है. 

बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने प्रस्ताव का किया स्वागत

एक साथ चुनाव कराने के कदम का बीजेपी के सांसदों और खास तौर पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड सहित अन्य सहयोगी दलों ने स्वागत किया. जेडीयू के संजय कुमार ने कहा, “नीतीश कुमार ने हमेशा एक साथ चुनाव कराने की वकालत की है… देश हमेशा ‘चुनावी मोड’ में रहता है… अगर एक ही चुनाव होगा तो इससे खर्च में काफी कमी आएगी.”

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केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के लोक जनशक्ति पार्टी के गुट ने भी इस बिल का समर्थन किया है.

सांसद शांभवी चौधरी ने कहा, “एलजेपी ने इसका समर्थन किया है… हर छह महीने में किसी न किसी राज्य में चुनाव होते हैं (और तब) प्रतिनिधि संसद में समय नहीं दे पाते और संसाधन बर्बाद होते हैं.” जेडीयू और एलजेपी दोनों को अगले साल बिहार के विधानसभा चुनाव में जाना है.

बीजेपी की सांसद और अभिनेत्री कंगना रनौत ने कहा, “यह एक अच्छा कदम है. चुनावों में सरकार का बहुत समय और पैसा बर्बाद होता है. इससे पैसे की बचत होगी और यह एक अच्छी पहल है,.”

कैबिनेट ने ‘एक चुनाव’ से जुड़े दो बिलों को मंजूरी दी

केंद्रीय कैबिनेट ने दो विधेयकों को मंजूरी दी, जिन्हें मौजूदा संसद सत्र में पेश किया जा सकता है, बशर्ते कि सोनिया गांधी और जॉर्ज सोरोस के बीच संबंधों के आरोपों पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच चल रही तनातनी के चलते बार-बार स्थगन का सिलसिला बंद हो.

सितंबर में कोविंद पैनल की रिपोर्ट को मंजूरी मिलने के बाद दो बिलों को हरी झंडी दे दी गई थी. पैनल ने तब कहा था कि वह “इस बात पर एकमत है कि एक साथ चुनाव कराए जाने चाहिए.” इससे “(देश की) चुनावी प्रक्रिया (और) शासन में बदलाव आएगा” और “दुर्लभ संसाधनों का अधिकतम उपयोग होगा.”

क्या है ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’

सरल शब्दों में कहें तो इसका मतलब है कि सभी भारतीय लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए एक साथ मतदान करेंगे. वे केंद्रीय और राज्य प्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे. यह पूरा चुनाव यदि एक ही समय पर नहीं हो सकेगा तो एक ही साल में होगा. 

वर्तमान में केवल तीन राज्य ऐसे हैं जहां लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव होते हैं. यह राज्य आंध्र प्रदेश, सिक्किम और ओडिशा हैं. तीन अन्य राज्यों महाराष्ट्र, हरियाणा और जम्मू और कश्मीर में लोकसभा चुनाव के वर्ष के अंत में मतदान होता है. बाकी राज्यों में हर पांच साल में जब जिस विधानसभा का कार्यकाल पूरा होता है, तब चुनाव होता है. उदाहरण के लिए कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में पिछले साल अलग-अलग समय पर मतदान हुआ था.

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के लिए चुनौतियां

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का प्रस्ताव 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के घोषणापत्र में शामिल था. विपक्ष ने इसकी कड़ी आलोचना की है. विपक्ष संवैधानिक मुद्दों को लेकर इसके खिलाफ आवाज बुलंद कर रहा है.

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क्षेत्रीय दलों ने यह भी कहा है कि उनके सीमित संसाधनों का मतलब है कि वे स्थानीय मुद्दों को मतदाताओं तक नहीं पहुंचा पाएंगे, क्योंकि आर्थिक रूप से अधिक मजबूत दल भी लोकसभा चुनाव लड़ते हैं.

चिंता का एक और विषय इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन खरीदने के लिए लगने वाली लागत है. चुनाव आयोग ने कहा है कि हर 15 साल में लगभग 10,000 करोड़ रुपये व्यय होगा.

क्या ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ कारगर होगा?

संविधान में संशोधन किए बिना और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों, प्रमुख राजनीतिक दलों की ओर से पुष्टि किए बिना यह नहीं हो सकता. 

संविधान में अनुच्छेद 83 (संसद का कार्यकाल), अनुच्छेद 85 (राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा का विघटन), अनुच्छेद 172 (राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल), अनुच्छेद 174 (राज्य विधानसभाओं का विघटन) और अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन लागू करना) शामिल है. कानूनी विशेषज्ञों ने चेताया है कि ऐसे संशोधनों को पारित करने में विफलता से प्रस्ताव पर भारत के संघीय ढांचे का उल्लंघन करने के आरोप लगने का खतरा बढ़ जाएगा.

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