देश

कंधे और पैर में गोली खाने के बाद भी दुश्मन के 4 बंकर किए तबाह, भाई ने बताई कैप्टन मनोज पांडेय की दिलेरी


टाइगर हिल:

करगिल जंग के 25 साल हो चुके हैं. हर साल ये दिन विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) के रूप में मनाया जाता है. 1999 के करगिल युद्ध में भारतीय वीर सपूतों ने पाकिस्‍तानी घुसपैठियों को खदेड़कर बाहर निकाल दिया था. इन बहादूर सपूतों में कैप्टन मनोज कुमार पांडेय भी थे. उन्होंने दिलेरी के साथ कई हमले कर दुश्‍मन के एक के बाद एक चार ठिकानों को नेस्तनाबूद किया था. नजीता रहा कि हम करगिल पर विजय का पताका लहरा पाए. 

करगिल युद्ध के 25 साल पूरे होने पर The Hindkeshariखास सीरीज ‘वतन के रखवाले’ चला रहा है. आज की सीरीज में हमने टाइगर हिल के लेमोचिन पॉइंट पर करगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टन मनोज पांडेय (Captain Manoj Pandey)के परिवार से खास बातचीत की है.

गोली लगने के बावजूद दुश्मन के बंकर में घुसे थे कैप्टन मनोज 
कैप्टन मनोज कुमार पांडेय उत्तर प्रदेश के सीतापुर से थे. करगिल युद्ध के दौरान वो 11 गोरखा राइफल की पहली बटालियन (1/11 जीआर) में कैप्टन थे. 11 जून 1999 को उन्होंने बटालिक सेक्टर से दुश्मन सैनिकों को खदेड़ दिया. उनके नेतृत्व में सैनिकों ने जुबार टॉप पर कब्जा किया. कंधे और पैर पर गोली लगने के बावजूद वो दुश्मन के बंकर में घुसे. हैंड-टू-हैंड कॉम्बैट में उन्होंने दो दुश्मनों को मार गिराया. कैप्‍टन मनोज कुमार पांडेय ने साहसपूर्वक कई हमले कर दुश्‍मन के चार ठिकानों पर बम की तरह बरसे. वो पूरी दिलेरी से अगले 22 दिन तक दुश्मनों के छक्के छुड़ाते रहे. चौथे बंकर पर कब्जा करने तक कैप्टन मनोज पांडेय बुरी तरह जख्मी हो चुके थे. 3 जुलाई 1999 को वो 24 साल की उम्र में शहीद हो गए. उन्हें सरकार ने परमवीर चक्र से सम्मानित किया.

यह भी पढ़ें :-  जम्‍मू-कश्‍मीर : उरी में सुरक्षाबलों ने घुसपैठ की बड़ी कोशिश की नाकाम, हथियारों का जखीरा बरामद

MIG-27 में लगी आग तो पार कर गए बॉर्डर,  8 दिन झेला दुश्मनों का टॉर्चर… ग्रुप कैप्टन नचिकेता ने बताई कैसे पाकिस्तान ने टेके घुटने

भाई के लोकेशन को लेकर बहुत फिक्र रहती थी- मनमोहन पांडेय
शहीद कैप्टन मनोज पांडेय के छोटे भाई और उनकी पत्नी से   The Hindkeshariने बात की.  मनमोहन पांडेय अपने भाई शहीद कैप्टन मनोज पांडेय से 6 साल छोटे हैं. जंग के समय वो 18 साल के थे. मनमोहन पांडेय बताते हैं, “जब करगिल में मेरे भाई जंग लड़ रहे थे, उस समय परिवार में काफी उलझन रहती थी. बहुत फिक्र रहती थी कि भाई कहां पर होंगे, कैसे होंगे. उस समय जब हम टीवी पर जंग की खबरें देखते थे, उस समय हमें ये नहीं पता चल पा रहा था कि कौन कहां पर है. हमें यूनिट के जरिए पता चलता था कि 1/11 जीआर बटालिक में है या खालुबार की तरफ मूव कर रहे हैं. इससे परिवार में उन्हें लेकर बड़ी कश्मकश रहती थी.”

मनमोहन पांडेय बताते हैं, “जंग के समय टीवी पर न्यूज देखते हुए हमें हर दिन किसी न किसी जवान के शहीद होने की बात पता चलती थी. इससे मन में बहुत डर भी रहता था. डर था कि कहीं भाई के साथ कोई अनहोनी न हो जाए. 2 और 3 जुलाई की रात में जब बटालिक सेक्टर में फायरिंग हुई. 3 जुलाई को ही हमें सेना के कुछ अधिकारियों से पता चला की भाई कैप्टन मनोज पांडेय खालुबार की चोटी में जंग लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए हैं. ये बात हम लोगों के लिए बहुत शॉकिंग था.”

भइया ने इंजीनियरिंग छोड़ NDA चुना
मनमोहन पांडेय बताते हैं, “हमारे परिवार में भइया से पहले कोई भी आर्मी में नहीं था. मनोज पांडेय परिवार में पहले शख्स थे, जिन्होंने देश सेवा के लिए फौज ज्वॉइन किया था. उनके अंदर एक जुनून था. बचपन से उनका मानना था कि देश के लिए कुछ करना है. उन्होंने भारत मां की सेवा के लिए पहले नंबर पर आर्मी को चुना. उनके पास दो कॉल लेटर साथ में आए थे. इंजीनियरिंग का और NDA का भी. घरवालों ने उनसे कहा था कि वो इंजीनियरिंग में जाएं. लेकिन मेरे भाई ने NDA चुना. उन्होंने बताया था कि NDA में जाना आसान नहीं होता है, इसलिए वो पहले NDA में जाएंगे.”

यह भी पढ़ें :-  पश्चिम बंगाल में बीजेपी के दफ्तर में पार्टी के नेता का शव मिला, महिला गिरफ्तार

पांडेय के मुताबिक, जब मनोज पांडेय NDA में गए, तो यूपी के 67 बच्चे गए थे. लेकिन सिर्फ उनका ही सिलेक्शन हुआ. उनका लक्ष्य बड़ा था. उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था -If death strikes before I prove my blood, I promise, I will kill death. (अगर मेरे खून को साबित करने से पहले मौत आ गई, तो मैं वादा करता हूं, मैं मौत को मार डालूंगा. जंग में उन्होंने वही किया.”

चौथे बंकर को तबाह कर प्राप्त हुई वीरगति
मनमोहन पांडेय बताते हैं, “जब दुश्मनों के तीसरे बंकर में मेरे भाई कैप्टन मनोज पांडेय को दो गोलियां लग गई थी. एक कंधे और एक घुटने में लगी थी. उनका बहुत खून बह रहा था. वो मौत के बिल्कुल करीब पहुंच चुके थे. उसके बाद भी वो चौथे बंकर में घुसे. दुश्मनों के चौथे बंकर को तबाह किया. वहां पर भी उन्हें एक गोली लगी थी. वहीं उन्हें वीरगति प्राप्त हुई.”

मुक्केबाजी और बॉडी बिल्डिंग का रखते थे शौक
कैप्टन मनोज पांडेय का जन्म यूपी के सीतापुर के रूद्रा गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम गोपी चंद पांडेय और मां का नाम मोहिनी पांडेय है. उनकी शुरुआती पढ़ाई लखनऊ के आर्मी स्‍कूल में हुई थी. वह राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) खड़कवासला में शामिल हुए थे. उनकी नियुक्‍ति 11 गोरखा राइफल्स (1/11 जीआर) की पहली बटालियन में हुई थी. कैप्‍टन मनोज कुमार पांडेय मुक्केबाजी और बॉडी बिल्डिंग का शौक रखते थे. यही वजह रही कि उन्‍हें सबसे प्रस‍िद्ध बटालियन में शामिल किया गया. उनकी वीरता को देखते हुए उत्तर प्रदेश सैनिक स्कूल लखनऊ का नाम बदलकर कैप्टन मनोज कुमार पांडेय यूपी सैनिक स्कूल रख दिया गया है.

यह भी पढ़ें :-  जम्मू-कश्मीर के कठुआ में आतंकियों ने की फायरिंग, सुरक्षाबलों ने एक दहशतगर्द को किया ढेर

करगिल की कहानी, जनरल की जुबानी : पूर्व आर्मी चीफ ने बताया कैसे पाकिस्तानी घुसपैठ का चला पता


Show More

संबंधित खबरें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button