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बंगबंधु की मूर्ति तक न छोड़ी, काश! शेख मुजीबुर्रहमान की कुर्बानी की यह कहानी पढ़ लेते उपद्रवी


नई दिल्ली:

बांग्लादेश की राजधानी ढाका से सोमवार शाम को आईं तस्वीरें विचलित करने वाली थीं.प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री शेख हसीना के सरकारी और निजी आवास में घुस गए थे. वहां जमकर तोड़फोड़ और लूटपाट की गई. उग्र प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेश की संसद में भी घुसकर उत्पात मचाया. प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब उर रहमान की आदमकद प्रतिमा पर चढ़कर उसे हथौड़े से तोड़ने की कोशिश की.इसमें जब वो कामयाब नहीं हुए तो उसे मशीन के जरिए ढहा दिया गया.ढाका में शेख की प्रतिमा के साथ किया गया व्यवहार विचलित करने वाला था.यह उस शेख की प्रतिमा थी, जिसे बांग्लादेश की आजादी का नायक माना जाता है. 

पाकिस्तानी सेना का ऑपरेशन सर्चलाइट

भारत के बंटवारे के बाद पाकिस्तान बना था. मोटे तौर पर पाकिस्तान को पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में विभाजित किया जाता था.आज का बांग्लादेश ही पूर्वी कहलाता था.पाकिस्तानी सेना बांग्लाभाषियों का जबरदस्त दमन कर रही थी.इसके विरोध में पूर्वी पाकिस्तान के लोग सड़कों पर आ गए.साल 1971 में आजादी के आंदोलन को कुचलने के लिए पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर जमकर अत्याचार किए.इस दौरान लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया और जेलों में ठूंस दिया गया. मार्च 1971 में चलाए गए इस दमन को पाकिस्तान की सेना ने ऑपरेशन सर्चलाइट नाम दिया था.

बांग्लादेश की आजादी की घोषणा

ऑपरेशन सर्चलाइट के दौरान पाकिस्तानी सेना के जुल्म को देखने के बाद 25 मार्च 1971 को शेख मुजीब उर रहमान ने बांग्लादेश के आजादी की घोषणा कर दी थी.उन्होंने लोगों से अपील की थी कि उनके पास जो कुछ भी हो उसी से पाकिस्तानी सेना का विरोध करें. यह विरोध तब तक चलते रहना चाहिए, जब तक पाकिस्तान का एक-एक सैनिक बांग्लादेश की धरती से निकल न जाए.

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शेख मुजीब उर रहमान नौ महीने तक पाकिस्तान की कैद में रहे थे.
Photo Credit: AFP

शेख की इस घोषणा के बाद से पाकिस्तान की सेना ने उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दिया.पाकिस्तानी सेना के एक कर्नल ने रात करीब एक बजे ढाका के धानमंडी स्थित शेख के घर से उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. इस दौरान वहां पाकिस्तानी जवानों ने वहां जमकर गोलियां भी बरसाई थीं. 

पाकिस्तान की कैद में शेख मुजीब उर रहमान

गिरफ्तारी के बाद शेख को पाकिस्तान के कराची ले जाया गया. वहां से उन्हें फैसलाबाद की जेल में रखा गया. इसके बाद उन्हें मियांवाली की जेल में रखा गया.लेकिन शेख की पार्टी अवामी लीग को इस बात की जानकारी नहीं थी कि उनके नेता जिंदा भी हैं या नहीं.भारत से मदद मांगने के लिए अवामी लीग के दो नेता ताजुद्दीन अहमद और अमीर उल इस्लाम 30 मार्च को कोलकाता पहुंचे थे.उन्होंने बांग्लादेश की आजादी में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) से मदद मांगी थी. इसके बाद बीएसएफ के अधिकारी उन्हें दिल्ली लेकर गए थे. वहां चार और पांच अप्रैल को ताजुद्दीन अहमद की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की वन-टू-वन बैठक कराई गई. इसमें ताजुद्दीन ने भारत से बांग्लादेश की आजादी लड़ाई में मदद मांगी.इस दौरान इंदिरा गांधी ने शेख के बारे में जानकारी हासिल की. इस बैठक के बाद भारत बांग्लादेश को सीमा पर कुछ मदद देने को तैयार हुआ था.लेकिन बांग्लादेश की आजादी पर कोई आश्वासन नहीं दिया था.

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना के आवास में फोटो एलबम देखते प्रदर्शनकारी.

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना के आवास में फोटो एलबम देखते प्रदर्शनकारी.

इसके बाद 11 अप्रैल, 1971 को स्वाधीन बांग्ला बेतार केंद्र से ताजुद्दीन अहमद का एक भाषण प्रसारित हुआ. वहीं 13 अप्रैल को आजाद बांग्लादेश की अस्थायी सरकार का गठन हुआ. इस सरकार ने 17 अप्रैल को शपथ ग्रहण किया.पार्टी के वरिष्ठ नेता सैयद नजरुल अहमद उस सरकार के राष्ट्रपति और ताजुद्दीन अहमद को प्रधानमंत्री बनाया गया था. 

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पाकिस्तानी सैनिकों का आत्मसमर्पण

इस बीच पाकिस्तान के 90 हजार से अधिक सैनिकों ने 16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना के सामने ढाका में आत्मसमर्पण कर दिया था. इससे दोनों देशों में 13 दिन तक चला युद्ध खत्म हुआ था. इसी दिन आजाद बांग्लादेश का जन्म हुआ था.

शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के बाद उनके आवास में घुसे प्रदर्शनकारी.

शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के बाद उनके आवास में घुसे प्रदर्शनकारी.
Photo Credit: AFP

उधर, जेल में बंद शेख मुजीब उर रहमान को पाकिस्तान की एक सैन्य अदालत ने छह दिसंबर को फांसी की सजा सुना दी थी. इसी बीच पाकिस्तान में सत्ता संभालने वाली नागरिक सरकार के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने जेल में शेख से मुलाकात कर पाकिस्तान-बांग्लादेश के साथ रहने की जरूरत बताई. वो रक्षा, विदेश मंत्रालय और वित्त मंत्रालय अपने पास रखना चाहते थे.इस पर शेख ने भुट्टो से कहा था,”मैं ढाका में एक जनसभा करुंगा. अपने लोगों से बात करुंगा. इसके बाद आपको इस बारे में सूचित करुंगा.”  इस बीच शेख को करीब नौ महीने तक जेल में रखने के बाद पाकिस्तान ने उन्हें रिहा करने का फैसला किया. 

दिल्ली में शेख मुजीब उर रहमान का बांग्ला में भाषण

सात जनवरी 1972 को शेख एक विशेष विमान के जरिए लंदन पहुंचे. वहां दो दिन रहने के बाद शेख ढाका के लिए रवाना हुए. उनके ढाका जाने के लिए ब्रिटेन ने अपना जहाज मुहैया कराया था. भारत और इंदिरा गांधी को उनके योगदान के लिए धन्यवाद देने के लिए शेख कुछ घंटे के लिए दिल्ली में रुके थे.दिल्ली हवाई अड्डे पर उनका राष्ट्रपति वीवी गिरि,प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे और तीनों सेनाओं के प्रमुख मौजूद थे.वहां सेना के मैदान पर शेख मुजीब उर रहमान ने भारत की जनता को धन्यवाद देने के लिए एक भाषण दिया था. उन्होंने अपना भाषण अंग्रेजी में शुरू किया, लेकिन इंदिरा गांधी के अनुरोध पर पूरा भाषण बांग्ला में दिया. इसके बाद वो ढाका रवाना हो गए.

बांग्लादेश में प्रदर्शन के दौरान ढाका में लगाई गई आग.

बांग्लादेश में प्रदर्शन के दौरान ढाका में लगाई गई आग.
Photo Credit: पीटीआई

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शेख मुजीब उर रहमान को ले जा रहा विमान जब ढाका के हवाई अड्डे पर पहुंचा तो वहां करीब 10 लाख लोगों को जन सैलाब अपने नेता का स्वागत करने के लिए वहां मौजूद था. वहां से वो एक खुले ट्रक में सवार होकर रेसकोर्स मैदान गए. वहां उन्हें एक सभा को संबोधित करना था.रास्ते में इतनी भीड़ थी कि तीन किमी की दूरी तय करने में ट्रक को तीन घंटे लगे.यह सब उसी ढांका में हुआ था जहां सोमवार को उग्र भीड़ ने शेख मुजीब उर रहमान की प्रतिमा को जमीदोंज कर दिया. 

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