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ED का बड़ा खुलासा, सोरोस से जुड़ी कंपनियों ने भारत में NGO को अवैध तरीके से की फंडिंग


नई दिल्ली:

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने जॉर्ज सोरोस से जुड़ी कंपनियों को लेकर एक बड़ा खुलासा किया है. ED सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जॉर्ज सोरोस से जुड़ी कंपनियों की जांच में पता चला है कि ये कंपनिया भारत में अवैध तरीके से NGO’s को फंडिंग कर रहीं थी. ED सूत्रों के अनुसार अभी तक की जांच में कई चौकाने वाले खुलासे हुए हैं. जांच के दौरान यह पाया गया कि ओपन सोसाइटी इंस्टीट्यूट, यूएसए (OSI, जिसे पहले ओपन सोसाइटी फाउंडेशन-OSF कहा जाता था) को गृह मंत्रालय  द्वारा 30.05.2016 को Prior Reference Category (PRC) में रखा गया था, क्योंकि इसके काम अवांछनीय पाए गए थे. इसका मतलब यह है कि OSI को भारत में किसी भी FCRA पंजीकृत संगठन को पैसे भेजने से पहले गृह मंत्रालय की परमिशन लेनी होती है.

जांच में पता चला है कि OSI की सोरोस इकोनॉमिक डेवलपमेंट फंड (SEDF) नाम की यूनिट सोशल इन्वेस्टमेंट के कामों लिए जानी जाती है. लेकिन जांच में यह सामने आया है कि SEDF ने भारत में FDI (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) या कंसल्टेंसी या सर्विस फीस के रूप में पैसे भेजकर NGO क्षेत्र से जुड़े कई कामों के लिए वित्तीय मदद की. इसके लिए तीन भारतीय कंपनियों (रूटब्रिज सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड (RSPL),रूटब्रिज एकेडमी प्राइवेट लिमिटेड (RAPL) और ASAR सोशल इम्पैक्ट एडवाइजर्स प्राइवेट लिमिटेड) को वित्तीय सहायता दी गई. वित्त वर्ष 2020-21 से 2023-24 के बीच इन कंपनियों को SEDF से लगभग ₹25 करोड़ मिले. जबकि SEDF, जो कि एक PRC सूचीबद्ध संस्था (OSI) द्वारा संचालित है, भारतीय NGOs को सीधे पैसे नहीं भेज सकती थी, इसलिए वैकल्पिक तरीकों का उपयोग किया गया. 

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RSPL को संदिग्ध FDI फंडिंग

अभी तक की जांच में पता चला है कि RSPL को SEDF से ₹18.64 करोड़ मिले, जो कि Compulsorily Convertible Preference Shares (CCPS) के जरिए निवेश किया गया. यह पैसा ₹2.5 लाख से ₹2.6 लाख प्रति शेयर के प्रीमियम पर दिया गया, जो DCF मेथड पर आधारित थी.जांच टीम को ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि यह निवेश FDI मानकों का उल्लंघन कर सकता है और SEDF द्वारा प्रतिबंधों को बायपास करने की कोशिश हो सकती है.

RAPL के माध्यम से फंडिंग बायपास करने की साजिश

RAPL, जो कि 2019 में स्थापित हुई थी, मुख्य रूप से गैर-लाभकारी संगठनों (NGOs) के लिए फंडरेजिंग सेवाएं प्रदान करती है। लेकिन इसे SEDF से ₹2.70 करोड़ “कमीशन एजेंट” सर्विस फीस के रूप में मिले, जबकि किसी प्रकार की सर्विस नहीं दी गईं. इससे यह स्पष्ट होता है कि RAPL ने SEDF के लिए एक एजेंट के रूप में कार्य किया और FCRA प्रावधानों को दरकिनार कर भारत में NGOs को पैसे भेजने का जरिए बना.

ASAR द्वारा सर्विस फीस की आड़ में पैसे का लेनदेन

ASAR सोशल इम्पैक्ट एडवाइजर्स प्रा. लि. की स्थापना 26.02.2016 को हुई थी. यह कंपनी संचार रणनीति विकास, क्षमता निर्माण, शोध और अन्य सेवाओं के माध्यम से भारतीय NGOs को सहयोग प्रदान करती है.लेकिन SEDF से ₹2.91 करोड़ सर्विस फीस के रूप में मिलना यह दर्शाता है कि यह फंड वास्तव में डोनेशन की आड़ में दिया गया पैसा हो सकता है, और SEDF को कोई सर्विस नहीं दी गई.

SEDF ने भारत में 12 कंपनियों को ₹300 करोड़ का निवेश किया

सूत्रों से यह भी पता चला कि OSI समूह ने मॉरीशस में Aspada Investment Company (AIC) बनाई, जिसका उपयोग भारत में SEDF की फंडिंग को भेजने के लिए किया गया. इसके अलावा, Aspada Investment Advisors Pvt Ltd (AIAPL) को बेंगलुरु में 04.02.2013 को पंजीकृत किया गया, ताकि SEDF के भारतीय निवेशों का प्रबंधन किया जा सके.रिपोर्ट के अनुसार, SEDF ने भारत में कुल 12 कंपनियों में ₹300 करोड़ से अधिक का निवेश किया.

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चौंकाने वाला खुलासा – भारतीय निवेश शाखा को जानकारी नहीं थी

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि SEDF की भारत में निवेश शाखा यानी Aspada Investment Advisors Private Limited (अब Lightrock Investment Advisors Private Limited), जो कि SEDF के भारतीय निवेशों की देखरेख करती थी, उन्हें इस गतिविधि की जानकारी तक नहीं थी.इस पूरी जांच से यह संकेत मिल रहे हैं कि OSI समूह ने भारतीय कानूनों और FCRA प्रावधानों को बायपास करने के लिए FDI और सेवा शुल्क का उपयोग किया. SEDF के जरिए भारतीय NGOs तक पैसा पहुंचाने के लिए Rootbridge, RAPL और ASAR जैसी कंपनियों का सहारा लिया गया. यह मामला अब FDI नियमों और FCRA के उल्लंघन से जुड़ी जांच के दायरे में आ सकता है.


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