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एकनाथ शिंदे की दुविधा: वे 3 कारण जिनकी वजह से उनका सत्ता में बने रहना हुआ ज़रूरी


मुंबई:

महाराष्ट्र में आखिरकार आज शाम पांच बजे भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस बतौर मुख्यमंत्री शपथ लेने जा रहे हैं. एक हफ्ते से ज़्यादा वक्त तक चले सस्पेंस के बाद, एकनाथ शिंदे ने आखिरकार महायुति सरकार का हिस्सा बनने का फैसला किया है और आज शाम को उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. बताया जा रहा है कि भाजपा द्वारा गृह मंत्रालय और विधानसभा अध्यक्ष का पद न दिए जाने से वे नाराज़ थे. कयास लगाए जा रहे थे कि वे नई सरकार से बाहर रहने का फैसला कर चुके हैं. हालांकि, मंगलवार को देवेंद्र फडणवीस ने उनसे मुलाकात की और उन्हें सरकार में शामिल होने के लिए मना लिया. यह तीन कारण माने जा रहे हैं जिनकी वजह से इतना शिंदे सरकार में शामिल होने को तैयार हुए.

शिवसेना में अंदरूनी खींचतान की आशंका

अगर एकनाथ शिंदे उपमुख्यमंत्री पद के लिए किसी और को आगे करते तो पार्टी के नेताओं की छिपी हुई महत्वाकांक्षाएं खुलकर सामने आ सकती थी. उनके बेटे श्रीकांत शिंदे इस पद के प्रमुख दावेदार थे, लेकिन शंभूराजे देसाई और उदय सामंत जैसे अन्य नाम भी चर्चा में रहे. अगर श्रीकांत को यह पद मिलता, तो शिंदे पर परिवारवाद का आरोप लग सकता है, क्योंकि उनके बेटे के पास पहले से ही लोकसभा सीट है. वहीं, किसी अन्य नेता को नियुक्त करने से पार्टी में आंतरिक विवाद हो सकता था, जिससे शिंदे के गुट में एकता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो जाता.

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एक और शक्ति केंद्र उभरता

जून 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत ने शिवसेना को नया रूप दिया और उन्हें पार्टी में निर्विवाद नेता बना दिया. उनके ढाई साल के मुख्यमंत्री कार्यकाल ने उनकी पकड़ और मजबूत कर दी है. फिलहाल पार्टी में कोई नेता उनके बराबर की स्थिति में नहीं है. लेकिन किसी और को उपमुख्यमंत्री बनाना एक नए शक्ति केंद्र के उभरने का रास्ता खोल सकता है, जिससे शिंदे की ताकत कमजोर हो सकती है और उनका नेतृत्व अस्थिर हो सकता है.

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गठबंधन में तालमेल

एकनाथ शिंदे बीजेपी और शिवसेना के बीच समन्वय की अहम कड़ी है. उनके नेतृत्व में महायुति सरकार ने बिना किसी बड़े विवाद के काम किया. जब बीजेपी ने अजीत पवार के एनसीपी गुट को शामिल किया,तब भी शिंदे ने कोई विरोध नहीं किया और सहयोगात्मक रवैया बनाए रखा. उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से भी अच्छे संबंध हैं. लेकिन अगर वह सरकार में किसी अहम भूमिका में नहीं रहेंगे,तो गठबंधन के सहयोग में रुकावट आ सकती है. बीजेपी के लिए भी शिंदे को खुश रखना ज़रूरी है. उनकी पार्टी केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार का हिस्सा है. शिंदे को साथ न लेना विपक्षी दलों को यह कहने का मौका देगा कि बीजेपी अपने क्षेत्रीय सहयोगियों को दबाती है.



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