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बम की धमकी पर फ्लाइट की इमरजेंसी लैंडिंग, आईबी अधिकारी की गिरफ्तारी से मामले में आया नया मोड़


भोपाल:

हाल ही में नागपुर-कोलकाता की फ्लाइट में बम की अफवाह फैलने के कारण विमान को रायपुर में इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ी थी. लेकिन इस घटना के बाद एक ऐसा यात्री कानूनी पचड़े में फंस गया है. जो खुफिया अधिकारी होने का दावा कर रहा है. इस घटना में बम की सूचना देने वाले और अधिकारियों दोनों की कार्रवाई पर बहस छेड़ दी है. बम की धमकी मिलने के बाद फ्लाइट में सवार 193 लोगों में 187 यात्री और छह चालक दल के सदस्य को सुरक्षित निकाल लिया गया.

जब इंडिगों फ्लाइट की हुई इमरजेंसी लैंडिंग

14 नवंबर को बम की धमकी के अलर्ट के बाद फ्लाइट की रायपुर एयरपोर्ट पर इमरजेंसी लैंडिंग कराई गई. CISF और बम डिस्पॉजल यूनिट सहित सुरक्षा एजेंसियों ने फ्लाइट और यात्रियों के सामान की तलाशी ली. इस दौरान कोई विस्फोटक नहीं मिला. शुरुआती जानकारी के अनुसार, इंडिगो का विमान जब हवा में था, तभी यात्री ने विमान चालक दल के सदस्यों को बम की मौजूदगी के बारे में बताया. एयर ट्रैफिक कंट्रोल को सूचित किया गया. जिसके बाद विमान को रायपुर की ओर मोड़ दिया गया.

बम की सूचना देने वाले ने खुद का बताया आईबी अधिकारी

अनिमेष मंडल को कुछ ही समय बाद गिरफ्तार कर लिया गया. उसकी दी गई सूचना को धोखा माना गया और उस पर बीएनएस अधिनियम की धारा 351(4) और नागरिक उड्डयन सुरक्षा अधिनियम, 1982 के विरुद्ध गैरकानूनी कृत्यों के दमन की धारा 3(1)(जी) के तहत आरोप लगाए गए. जिसके बाद एक स्थानीय अदालत ने उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया. लेकिन इस मामले में तब नया मोड आया, जब मंडल ने दावा किया कि वह एक खुफिया ब्यूरो (आईबी) अधिकारी है और वह बम की धमकी की सूचना देकर सहयोग कर रहे थे.

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आईबी अधिकारी के वकील ने क्या कुछ बताया

उनके वकील फैसल रिजवी के अनुसार, मंडल को विमान में संभावित बम के बारे में संदेश मिला और उन्होंने तुरंत क्रू मेंबर को सचेत किया. चालक दल ने कैप्टन को सूचित किया, जिसके बाद इमरजेंसी लैंडिंग की गई. जब कोई बम नहीं मिला, तो पुलिस ने मंडल को गिरफ्तार कर लिया. रिजवी ने कहा, “इस साल की शुरुआत में मुंबई से नागपुर ट्रांसफर होने के बाद अनिमेश मंडल कोलकाता जा रहे थे. उन्होंने अपनी ड्यूटी के तहत इनपुट साझा किया, लेकिन उनकी जिम्मेदारी को मान्यता दिए जाने के बजाय उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.” प्रक्रियात्मक देरी में उलझे हुए मंडल लगभग एक महीने बाद भी हिरासत में हैं. 1982 के अधिनियम के अनुसार विशेष अदालत में मुकदमा चलाना अनिवार्य है, जो छत्तीसगढ़ में नहीं है.

राज्य के गृह मंत्री विजय शर्मा ने कही ये बात

रिजवी ने बताया, “अधिनियम की धारा 3(1)(डी) ऐसे अपराधों के लिए आजीवन कारावास का प्रावधान करती है, लेकिन उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष अदालत के बिना मामला आगे नहीं बढ़ सकता. इस देरी के कारण मंडल की कैद लंबी हो रही है और उनके गंभीर रूप से बीमार माता-पिता से उनकी दिक्कतें और बढ़ रही है.” उनके वकील ने आरोप लगाया है कि आईबी से उनके जुड़ाव को साबित करने वाले पहचान दस्तावेज पेश करने के बावजूद मंडल के दावों पर अधिकारियों ने चुप्पी साध रखी है. राज्य के गृह मंत्री विजय शर्मा ने एक संक्षिप्त टिप्पणी में कहा, “इस मामले पर गौर करना होगा.”

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