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Exclusive: मेटावर्स की दुनिया में वर्चुअल गैंगरेप से कैसे बचें? यह रेप की कैटेगरी में है या नहीं: साइबर क्राइम एक्सपर्ट की राय

16 साल की बच्ची  हेडकेयर पहने हुई है. इसके साथ रेप किया गया. क्या इसे डिजिटल रेप या वर्चुअल रेप बोलेंगे या फिर साइबर स्पेस में क्राइम बोलेंगे?

हम लोग जो रेप शब्द इस्तेमाल जब करते हैं, तो कानून के हिसाब से रेप क्या होता है, क्या वही सेक्शन लगेगा. अभी जब मेटावर्ड या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या फिर जिसे हम अवतार बोलते हैं, उसका जब अब्यूज होता है तो रेप का सेक्शन नहीं लगेगा, क्यों कि आईपीसी 376 में रेप कैसे होता है, इसके बारे में स्पष्ट लिखा हुआ है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि कानून के हिसाब से ऐसे विक्टिम के लिए कोई भी उपाय नहीं है. कानून के अंदर बाकी दो सेक्शन, जो सेक्सुअल हैरेसमेंट के लिए है या हैकिंग और वायरस अटैक के लिए हैं, इनको इस्तेमाल किया जा सकता है तो फिर हैकिंग और वायरस अटैक के बारे में बात क्यों की जाए. 

ब्रिटेन में 16 साल की बच्ची से हुई घटना कोई पहली नहीं है. मेटावर्स तो 3D में होता है, जब कि सबसे पहले 1993 में 2D में एक यूजर ने हैकिंग करके प्लेटफॉर्म का कंट्रोल ले लिया. उसके बाद उसने लेडी अवतार का वर्चुअल रेप किया था. डिबल नाम के एक ऑथर ने ‘अ रेप इन साइबर स्पेस’ नाम का आर्टिकल लिखा था. उसके बारे में मैने अपनी पहली किताब 2017 में लिखी थी और साइबर क्राइम स्टोरी की दूसरी किताब जो कि साल 2022 में लिखी, उसमें भी इसका जिक्र मैने किया है.  

मेटावर्स में भी ब्रिटेन की घटना से पहले इस तरह की घटना हो चुकी है. जनवरी 2022 में एक हाउस वाइफ ने मेटावर्स में साइन इन किया था. महज 60 सेकेंड में उनपर हमला हुआ. उन्होंने भी अपने इंटरव्यू में यही बताया कि जब अवतार के ऊपर जब हमला हुआ तो उनको ऐसा लग रहा था कि उनके ऊपर असॉल्ट हुआ है. इस तरह के हमले वर्चुअल स्पेस में तभी हो सकते हैं जब कोड से छेड़छाड़ की जाती है,  इसीलिए वैकल्पिक बचाव के बारे में ध्यान रखना चाहिए. कानून में अभी जो सेक्शन हैं उनको अभी इस्तेमाल किया जा सकता है.  लेकिन यह रेप शब्द में नहीं आएगा. 

इस मामले को जानने वाले एक अधिकारी का कहना है कि जैसा मानसिक आघात रेप के मामले में होता है, उस बच्ची ने वैसा ही महसूस किया है. उस पर उसी तरह का इमोशनल और साइकोलॉजिकल प्रभाव पड़ा है. ये प्रभाव शारीरिक चोट से ज्यादा है. हालांकि वह बच्ची अवतार के फॉर्म में थी फिर भी आहत हुई है.  क्यों कि लॉ इन्फोर्समेंट एजेंसियों के पास लिमिटेड पावर हैं तो ऐसे में वह क्या एक्शन ले सकते हैं?

दिक्कत बस यही है कि जब इस तरह के मामले आते हैं तो अधिकारीह कंफ्यूज हो जाते हैं. वह यही सोचते हैं कि अब हम क्या करेंगे. इन मामलों में क्या सेक्शन डाले जा सकते हैं.  जब किसी का फोटो मॉर्फ करके या फिर डीफ फेक में सेक्सुअली अब्यूजिव कंटेंट बना रहे हैं, वो भी फेक है. ऐसे मामलों में भी वह विक्टिम, जिसका चेहरा इस्तेमाल किया जाता है उनको भी ऐसा लगता है कि जैसे अपने उसका इस्तेमाल किया गया है. ठीक उसी तरह से मेटावर्स वर्ल्ड में होता है.

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जब मैं आर्टिकल पर रिसर्च कर रही थी तो यह देखकर हैरान रह गई कि अमेरिका में चार मामलों में बच्चे वर्चुअल अब्यूज के बारे में बात कर रहे थे. इन मामलों को अदालत ने यह कहकर होल्ड कर दिया कि वर्चुअली होने की वजह से इस तरह का क्राइम विक्टिमलैस होता है, वह क्राइम नहीं माना जाता ऐसे कहकर कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया. उसके बाद अपील में उसको रिवर्स करना पड़ा और अपीलेट कोर्ट को इसे होल्ड करना पड़ा. उन्होंने कहा कि अगर वर्चुअल डोमेन में हो रहा है तो इसका यह मतलब नहीं है कि ये लोग विक्टिम नहीं हैं. अपीलेट कोर्ट ने यह बात समझाई. 

ज्यादातर लोग यह सोच लेते हैं कि ऑनलाइन हो रहा है या फिर फोटो के साथ हो रहा है तो इससे आपके ऊपर कुछ भी नहीं हुआ. लेकिन ऐसे नहीं होता है क्यों कि इसका असर सभी पर पड़ता है. जल्द ही भारतीय न्याय संहिता आएगी, लेकिन जब तक यह नहीं आती तब तक आईपीसी के प्रोवेशन ही लागू होंगे. 509 के भीतर आउटरेजिंग द मॉडेस्टी ऑफ वुमन है . वहीं 354 के भीतर सेक्सुअल असॉल्ट और 354A में सेक्सुअल हैरेसमेंट का जिक्र है. 

अगर आउटरेजिंग द मॉडेस्टी ऑफ वुमन है या सेक्सुअसल असॉल्ट है तो उसका कोई डोमेन डिफाइन नहीं है. अगर उसको ऐहसास होता है कि उसकी गरिमा को ठेस पहुंची है तो क्या वह एक्शन ले सकती है?

हां बिल्कुल..अभी तो यह 16 साल की बच्ची के साथ हुआ है. अगर यह मामला भारत में होता है तो पॉक्सो की धाराओं का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इन्फोर्मेशन ऑफ टेक्नोलॉजी एक्ट के भीतर 67 या 67A देखेंगे तो वह सिर्फ ऑब्सीड कंटेंट या सेक्सुअली  एक्सप्लोसिव कंटेंट के बारे में है. तो ये जो मेटावर्स में हो रहा है ये भी सेक्सुअली एक्सप्लोसिव कंटेंट होता है. इसके जरिए भी हम लोग कानून के अंतर समाधान ढूंढ सकते हैं.

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ये पहला मामला है जिसे पुलिस इन्वेस्टिगेट कर रही है. लेकिन आपका कहना है कि इस तरह के बहुत मामले आए हैं. 3D नहीं तो 2D में 1993 में ये हो चुका है. तो फिर इतने साल में नया कानून बनाने की कोशिश क्यों नहीं की गई? ऐसे प्रावधान हो ताकि इस तरह की घटनाओं में इंसाफ मिल सके.

सेसी टेल्स किताब में मैंने भी यही राय दी है कि भारतीय न्याय संहिता में भी  वर्चुअल रेप को लेकर सेक्शन शामिल होने चाहिए. फिजिकल रेप की तरह ही वर्चुअल रेप के लिए अलग से सेक्शन बनाना चाहिए. ये देखना चाहिए कि1993 के बाद क्या-क्या हुआ है. जब 2022 में यह घटना हुई थी उसके बाद बहुत लोगों ने इस तरह के असॉल्ट की शिकायत की. एक मामला एक लड़के का था. उस लड़के ने लड़की का अवतार बनाया था और उस अवतार का सेक्सुअल हैरेसमेंट हो गया.  उस लड़के ने एक इंटरव्यू में बताया कि जब उसके साथ वह हुआ था तो उसे समझ आया कि ऐसे समय में लड़कियों के दिमाग में क्या चलता होगा. 

सबसे पहले तो इस तरह के ऑप्शन देने वाले मल्टीप्लेयर और गेम वगैहर देने वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने एक कोड ऑफ कंडक्ट बनाया है. जिसमें लिखा है कि क्या किया जा सकता है और क्या नहीं. मेटावर्स में भी इस तरह का कोड ऑफ कंडक्ट यानी कि पर्सनल बाउंडरी बनाया गया है. उनके प्लेटफॉर्म में क्या कर सकते हैं और क्या नहीं, उसमें भी वर्चुअल रेप का शब्द इस्तेमाल नहीं किया गया है.  इस तरह के असॉल्ट या वॉयलेशन होते हैं तो पहसे पहला ऑप्शन यह है कि शिकायत करने पर इसे करने वालों को ब्लॉक किया जा सकता है. भारत में भी देखना पड़ेगा कि इस तरह के मामलों को रजिस्टर होकर कंवेक्शन होगा कि नहीं.

यह मामला फिजिकल स्पेस में नहीं है बल्कि वर्चुअल स्पेस में है तो यह रेप कैटेगर में आता है या नहीं ये भी सवाल है. नए क्रिमिनल जस्टिस लॉ आए हैं, उसमें शायद भारत में ये रहे कि दोनों प्लेटफॉर्म में अप्लाई होगा. क्या आप यह कहना चाहती हैं?

रेप के भीतर वाला सेक्शन तो सिर्फ फिजिकल रेप के लिए ही होगा, यह वर्चुअल रेप की कैटेगरी में नहीं आएगा. माध्यमों की अनदेखी कर जो वॉयलेशन किए हैं उसके लिए जो सेक्शन हैं वही अप्लाई होंगे.

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वर्चुअल रेप जैसी घटनाओं से कैसे बचा जाए? क्यों कि इस तरह की घटनाएं बहुत ज्यादा बढ़ रही हैं काफी रिपोर्ट्स आ रही हैं.मामेले की इन्वेस्टिगेशन पहली बार हो रही है इसलिए यह चर्चा में है.

क्राइम को हम अवॉयड नहीं कर सकते लेकिन सुरक्षित रहने की कोशिश तो कर सकते हैं. जब भी मल्टीप्लेयर गेम्स खेलें तो इसके लिए सुरक्षित  प्लेटफॉर्म देखें, जहां इस तरह की दुर्घटनाएं नहीं होगी. लेकिन इस तरह की घटनाएं तो फेसबुक पर हुई हैं. दूसरा तरीका ये हो सकता है कि इस तरह की घटनाएं होने पर तुरंत लॉग आउट करें या इसे डिसकनेक्ट कर दिया जाए, ताकि इस तरह का असॉल्ट आगे न बढ़ सके. जब भी खतरे का ऐहसास हो फिजिकल वर्ल्ड की तरह ही खुद को वर्चुअल वर्ल्ड में भी सुरक्षित रखना चाहिए. ऐसा नहीं सोचें कि यह वर्चुअल है तो इससे भागा जा सकता है. कई लोग यह सोचकर आगे बढ़ते रहते हैं कि वह ज्यादा मजबूत हैं और फाइट कर सकते हैं, ऐसे में और ज्यादा असॉल्ट हो जाता है. फिजिकल वर्ल्ड की तरह ही सुरक्षा के बारे में वर्चुअल वर्ल्ड में भी सोचने की जरूरत है. दुर्भाग्य यह है कि वर्चुअल वर्ल्ड में हम ज्यादा फ्रीडम के बारे में सोचते हैं लेकिन ऐसा है नहीं.

 

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