EXCLUSIVE: सुप्रीम कोर्ट के CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ की न्यायपालिका में सुधारों समेत कई मुद्दों पर बेबाक राय – पूरा इंटरव्यू
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सवाल- आप देश के पहले सीजेआई हैं, जो अपने साथी जजों के साथ कच्छ गए. आपने वहां डिस्ट्रिक्ट न्यायपालिका की परेशानियों को समझा और उस पर बात की. डिस्ट्रिक्ट कोर्ट सुविधाओं में क्या परेशानियां हैं और आप उन परेशानियों को कैसे देखते हैं. आप कैसे आम जनता को आश्वस्त करेंगे कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट से लेकर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट तक, कहीं भी न्याय मिल सकता है?
जवाब- मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के बीच एक-दूसरे के साथ संवाद में बदलाव लाना होगा. लोगों का पहला संपर्क डिस्ट्रिक्ट न्याय पालिका के साथ होता है. आम नागरिकों को कोई भी समस्या आती है, तो सीधे सुप्रीम कोर्ट में उनका आना मुश्किल होता है, इसीलिए वह पहले जिला न्यायलय में जाते हैं. इस परिदृश्य से मुझे लगा कि हम जिला जजों के साथ जुड़कर यह समझें कि आखिर जिला न्यायपालिका में क्या परेशानियां हैं. जब हम जिला न्यायपालिका को मजबूत करेंगे, तब हम वास्तव में मजबूत होंगे.
जिला कोर्ट के साथ हमारे नागरिकों के इंटरफ़ेस के आधार पर हमने पूरे क्षेत्र से जिला न्यायालयों से जुड़े हुए 220 से अधिक जजों का राष्ट्रीय सम्मेलन कच्छ में आयोजित किया. इस सम्मेलन में हमने जजों की स्टोरी, उनके परिपेक्ष्य और उनके विचार सुने, ताकि हम उनके मुद्दों और उनकी परेशानियों को हल करने के लिए अपनी पॉलिसी मेकिंग बदल सकें और लोगों से जुड़ सकें. दरअसल, जजों के जरिए आम लोगों के साथ सीधे संपर्क किया जाता है और इससे हमें हमारे सिस्टम में स्टेकहोल्डर की परेशानियों, जिसमें अदालतों में आने वाले वकील और मामले के वादियों के बारे में बहुत कुछ जानने को मिलता है, इसमें न्याय की तलाश में कोर्ट आने वाले वकील और हाशिए पर रहने वाले ग्रुप्स भी शामिल हैं. इससे ये भी जानना आसान होता है कि महिलाओं के मुद्दे किस तरह के हैं, उनसे जुड़े किस तरह के केस अदालत में आते हैं, इसलिए मुझे लगता है कि यह सम्मेलन एक अच्छी कोशिश रहा. कच्छ में एक हजार से ज्यादा जजों का एक बड़ा सम्मेलन हुआ, जिससे पूरे देश को जिला न्यायपालिका से जोड़ने का काम किया गया.
सवाल- न्यायपालिका में इस तरह की टेक्नोलॉजी है कि कन्याकुमारी में बैठे वकील सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही में शामिल हो सकते हैं, वादी भी इसे देख सकते हैं, टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के लिए आपकी भविष्य की क्या प्लानिंग है?
जवाब- टोक्नोलॉजी के इस्तेमाल में मेरा मिशन यह सुनिश्चित करना है कि सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट का काम घरों और आम नागरिकों तक पहुंचे. यह साफ करना जरूरी है कि टेक्नोलॉजी को शामिल करने और न्यायपालिका को मॉर्डन बनाने का मकसद लोगों के जीवन में न्यू साइलो (एकांत जगह) बनाना नहीं है. टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल का मकसद लोगों तक आसानी से पहुंचना है.
मैं बहुत ही विस्तार से कुछ उदाहरण बताता हूं, हम वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई कर रहे हैं. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के तहत देश का सुप्रीम कोर्ट सिर्फ वह सुप्रीम कोर्ट नहीं है, जो दिल्ली के तिलक मार्ग तक ही सीमित है. मेरा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट वास्तव में देश का प्रतिनिधित्व करता है. देशभर से, यहां तक कि देश के दूर-दराज के इलाकों से भी एक वकील, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुनवाई के लिंक के जरिए एक सिंपल से सेल फोन पर हमसे जुड़ सकता है.
इसी तरह से जिन वादियों के मामले सुप्रीम कोर्ट में हों या न हों, वे भी सुप्रीम कोर्ट के कामकाज को देख सकते हैं. मैं व्यक्तिगत रूप से महसूस करता हूं कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से किए जाने वाले कामकाज को समझने में नागरिक थोड़ी-बहुत भूमिका निभाते हैं. जनता का पैसा खर्च होता है, तो उनको यह जानने का हक है कि अदालत में क्या हो रहा है. मुझे लगता है कि अदालतों में हमारे द्वारा किए जा रहे कामों को जानने से आम जनता में विश्वास और विश्वास की भावना आएगी.
सुप्रीम कोर्ट में हम सभी मामलों को बहुत गंभीरता से लेते हैं. हो सकता है कि वो किसी के लिए छोटे मुद्दे हों, लेकिन हमारे लिए हर केस अपने आप में स्पेशल होता है. किसी के पेंशन का मामला, तनाव का केस, किसी के सर्विस टर्मिनेशन से जुड़ी एफआईआर, गलतफहमी का मामला, अगर कोई व्यक्ति बिना पेरोल के सालों से जेल में बंद है, मामला बिना जमानत के सालों से विचाराधीन है, हम इस तरह के मुद्दे को बहुत गंभीरता से लेते हैं.
आम लोगों तक न्यायालयों को पहुंचाने के लिए हम कई तरीके अपना रहे हैं. क्योंकि हर किसी नागरिक के पास लेपटॉप नहीं होता है, स्मार्ट फोन नहीं होता है. हालांकि, हमारा कर्त्तव्य है कि कोई भी व्यक्ति सुविधाओं के अभाव में न्याय से वंचित न रह जाए. इसलिए हमने देशभर में लगभग 18000 ई-सेवा केंद्र जिला अदालतों के परिसरों में खोले हैं. यह ई-सेवा केंद्र अभी पायलट बेसिस पर हैं. अब आम लोगों को मामलों की इंटरनेट फाइल, ई-फाइलें, कोर्ट में जाने के लिए पास आदि की सुविधाएं भी डिजिटल तरीके से मिल रही हैं.
देशभर में 29 फरवरी 2024 तक 3.09 करोड़ केस वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग मोड में हाईकोर्ट और जिला कोर्ट सुने जा चुके हैं. वहीं, 21.6 करोड़ केसों का डेटा, इसमें 4.40 करोड़ पेंडिंग केस भी शामिल हैं और 25 करोड़ फाइनल जजमेंट और ऑर्डर… ये सभी डेटा ऑनलाइन उपलब्ध है. 1 जनवरी 2024 से मार्च 2024 तक कोर्ट सिस्टम की ई-ताल वेबसाइट से 46 करोड़ ई-ट्रांजेक्शन हो चुके हैं. इससे आप हमारे द्वारा लाए गए ई-प्रोजेक्ट की पहुंच का अंदाजा लगा सकते हैं.
हमारे ई-मिशन मोड प्रोजेक्ट के फेस-3 के लिए केंद्र सरकार ने 7200 करोड़ रुपये की स्वीकृति दे दी है. हमारा उद्देश्य अब सिर्फ पेपर प्रोसेस को ऑटोमैट करना ही नहीं है, बल्कि हमारा लक्ष्य अदालतों के सभी काम को डिजिटलाइज्ड करना है, ताकि वह इंफॉर्मेशन और कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के काम आ सके. हम इस ऑटोमैशन से आगे निकलना चाहते हैं. आप जानते ही हैं कि मेरी कोर्ट पेपरलेस है. हमारे पास आने वाली हर फाइल डिजिटलाइज्ड मोड में होती है. इस तरीके से हम देश की अन्य कोर्ट को मेंटोर भी कर रहे हैं. हम उन्हें ट्रैनिंग भी दे रहे हैं. हमारी अदालतों में बड़ी संख्या में दिव्यांग कर्मचारी भी काम करते हैं, इनमें से कई देख नहीं पाते हैं. हमारी कोशिश है कि ऐसे लोगों को ध्यान में रखकर अपनी वेबसाइट पर काम करें, ताकि हमारे मिशन में कोई भी पीछे न छूटे.
सवाल- भारतीय न्यायपालिका के मुखिया होने के नाते आप आम लोगों को कैसे आश्वस्त करेंगे कि न्यायपालिका उनके लिए हैं और उन्हें न्याय देने के लिए कठोर परिश्रम कर रही है?
जवाब- देखिए, हमारे सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और जिला अदालतों की सबसे बड़ी ताकत यह है कि ये ‘पीपुल्स कोर्ट'(जनता की अदालत) हैं. संवैधानिक ढांचे में इन अदालतों को बनाने का मकसद आपकी संपत्ति की रक्षा, सामाजिक स्तर को बनाए रखने और जाति, धर्म, लिंग के आधार पर आपके साथ भेदभाव न हो इसके लिए किया गया. इसलिए सुप्रीम कोर्ट में आना वाला कोई भी केस छोटा नहीं होता है और न ही कोई मामला बड़ा होता है. हम सभी मामलों को एक ही नजरिये से देखते हैं. हमारा उद्देश्य आम लोगों के लिए खड़ा रहना है. हमारे लिये यह मायने नहीं रखता कि किस राज्य में किसकी सरकार है. हम सिर्फ आम आदमियों के मुद्दों को लेकर चिंतित रहते हैं. देश में रूल ऑफ लॉ को बनाए रखने में अदालतें अहम भूमिका निभाती हैं. लोग जब अदालतों पर भरोसा जताते हैं, तब हमें इस संवैधानिक ढ़ाचे का अहम हिस्सा होने पर खुशी होती है. मैं लोगों को यहां से एक संदेश देना चाहता हूं कि हम अपनी वर्किंग लाइफ के हर पल में आम लोगों के लिए मौजूद हैं. कई बार मुझे आधी रात को भी ई-मेल आता है और मैं हमेशा उनका जवाब देता हूं.
मुझे आधी रात को एक मैसेज आया कि एक लड़की को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी की इजाजत चाहिए. मैंने तुरंत अपने स्टाफ को इसके बारे में सूचित किया और अगले दिन सुबह उस केस पर सुनवाई की गई. किसी का घर गिराया जा रहा है, किसी को घर से निकाल दिया गया है, किसी को सरेंडर करना है, लेकिन उसकी मेडिकल कंडीशन ठीक नहीं है, ऐसे ढेरों समस्याएं लेकर लोग कोर्ट में आते हैं. इन सभी समस्याओं को हम गंभीरता से लेते हैं.
सवाल- महिलाओं के अधिकारों को लेकर आपने कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए हैं, क्या आपको लगता है कि महिला सशक्तीकरण के लिए अभी और काम किया जाना बाकी है?
जवाब- देखिए, हमने कई चुनौतियों का सामना किया है, उससे ऊपर उठे हैं. इसमें भी कोई दो राय नहीं कि महिलाओं की स्थिति में आज काफी सुधार हुआ है. आजादी के समय जो महिलाओं का शिक्षा की दर थी, उसकी अगर आज तुलना करें तो उसमें काफी विकास हुआ है. लीगल प्रोफेशन में भी ये प्रोग्रेस देखने को मिलता है. हालांकि, मुझे लगता है कि न्यायपालिका के द्वारा बहुत कुछ महिलाओं को सशक्त करने के लिए अभी किया जाना बाकी है.
भारतीय सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन के बारे में आपने कहा, जो सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसलों में से एक है. इस फैसले के बाद थलसेना, नौसेना और वायुसेना में महिलाएं कई महत्वपूर्ण पदों को संभाल रही हैं. भारतीय न्यायपालिका में भी महिलाएं अहम पदों पर मौजूद हैं. हाल ही में जिला अदालतों के लिए जो भर्तियां हुई हैं, उनमें कई राज्यों में महिलाओं का प्रतिशत 50 से ज्यादा हैं. कई राज्यों में तो 60-70 प्रतिशत महिलाओं की भर्ती हुई है. मेरा मानना है कि यह उभरते हुए देश की पहचान है. महिलाएं शिक्षित हो रही हैं, ऐसे में हमारे सामने चुनौती यह है कि कैसे उन्हें सही अवसर प्रदान किये जाएं.
सुप्रीम कोर्ट में फरवरी महीने में हमने 12 महिलाओं को वरिष्ठ अधिवक्ता नियुक्त किया है. आजादी से जनवरी 2024 तक सिर्फ 13 महिलाएं वरिष्ठ अधिवक्ता नियुक्त हुई थीं. हम महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा अवसर प्रदान कर रहे हैं. अब युवा महिलाएं ज्यादा लीगल प्रोफेशन में आ रही हैं. महिलाएं अब लॉ फर्म और अदालतों में प्रैक्टिस करते हुए भी ज्यादा नजर आती हैं. सुप्रीम कोर्ट में ही महिला कर्मचारियों की संख्या काफी बढ़ गई है. मेरी ही सहायक कई महिलाएं हैं. जिला अदालतों से भी काफी महिलाएं सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच रही हैं. इससे हमें जिला स्तर पर लोगों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में पता चलता है. मेरा मानना है कि यह भारतीय समाज में सामाजिक बदलाव का एक संकेत है, जिस पर हमें गर्व होना चाहिए.
सवाल- कई लोग आपके फिटनेस मंत्र को लेकर उत्सुक नजर आते है. काम के साथ आप अपनी फिटनेस पर ध्यान कैसे दे पाते हैं, इसके बारे में कुछ बताइए…?
जवाब- हंसते हुए… मेरा दिन सुबह साढ़े तीन बजे शुरू हो जाता है. उस समय वातावरण बेहद शांत होता है. मैं ऐसे में थोड़ा चिंतन-मनन करता हूं. 20-25 साल से मैं लगातार योगा भी करता आ रहा हूं. इसके अलावा मैं और मेरी बेस्ट फ्रेंड यानि मेरी पत्नी कल्पना सालों से बेसिक आयुर्वेदिक डाइट… लाइफ स्टाइल अपना रहे हैं. हम दोनों ही शाकाहारी हैं. हम प्लांट बेस्ड लाइफस्टाइल अपनाते हैं. मुझे नहीं लगता कि दूसरे इसके बारे में क्या सोचते हैं, लेकिन मुझे यह फायदा देता है. मेरा मानना है कि जो भी हम अपनी जुबान पर रखते हैं, उसका हमारी बॉडी-दिमाग पर असर पड़ता है. इसके अलावा मुझे लगता है कि आपकी फिजिकल और मेंटल फिटनेस अंदर से पैदा होती है, बाहर से नहीं. हमारा दिलो-दिमाग भी हमें फिट रखने में अहम भूमिका निभाता है, क्योंकि हमारी सोच भी बेहद मायने रखती है. हालांकि, मेरी जिंदगी भी किसी सामान्य शख्स जैसी ही है, जिसमें कई चुनौतियां हैं… इसमें भी उतार-चढ़ाव आते हैं. मेरी लाइफ का मंत्र है- जीवन में तमाम चुनौतियों के बावजूद उम्मीद और आशा की भावना के साथ जियो. इसके अलावा मुझे लगता है कि हमारे जीवन में आने वाली हर चुनौती के पीछे कोई न कोई मकसद होती है. इसलिए हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए.
सवाल- कई लोग यह जानना चाहते हैं कि आखिर आप खाते क्या हैं… आपके रामदाना खाने की भी काफी चर्चा है?
जवाब – हंसते हुए… हां, मैं रामदाना खाता हूं, साबूदाना नहीं. हमारे महाराष्ट्र में साबूदाने की खिचड़ी बनती है, खासतौर पर व्रत के दिन. लेकिन मैं ज्यादातर रामदाना खाता हूं, क्योंकि मैं पिछले 25 साल से सोमवार का व्रत रखता हूं. महाराष्ट्र में हमारे यहां, रामदाना जरूर खाते हैं. यह काफी पोष्टिक और हल्का होता है. हालांकि, कई बार ऐसा भी होता है, जब मैं डाइट फॉलो नहीं करता हूं. चीट-डे में जमकर खाता हूं. मुझे लगता है कि अगर दिलो-दिमाग पर आपका नियंत्रण है, तो आपकी काफी परेशानियां खत्म हो जाती हैं.
सवाल- चीट-डे में आपको क्या खाना पसंद है…?
जवाब- खिल-खिलकर हंसते हुए… आइसक्रीम.
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