Explainer : क्या HMPV से है कोरोना जैसा खतरा? जानें इस वायरस के बारे में पूरी जानकारी
कोविड महामारी की दहशत हमारे मन में इतनी गहरी बैठ गई है कि किसी भी संक्रामक बीमारी का जिक्र अगर मीडिया में जोर-शोर से होने लगे या फिर उसका कहीं कनेक्शन चीन से जोड़ दिया जाए, तो लोग घबराने लगते हैं. यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि कोविड महामारी के दौरान अपनों को खोने और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए तरसने की पीड़ा तुरंत याद आ जाती है. कोई भी नहीं चाहता कि दोबारा वैसा मंजर सामने आए. हम यह जिक्र इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इन दिनों HMPV यानी Human Metapneumovirus नामक एक बीमारी की बड़ी चर्चा हो रही है और इसे चीन से भी जोड़ा जा रहा है. तो, क्या है HMPV और क्या हमें इससे डरना चाहिए?
बच्चों का विदेश यात्रा से कोई संबंध नहीं
बेंगलुरु के एक अस्पताल में तीन महीने की एक बच्ची को तकलीफ के बाद भर्ती कराया गया और जांच में पता चला कि उसे HMPV इन्फेक्शन हुआ है. इस बच्ची को पहले से ब्रोंकोन्यूमोनिया की शिकायत थी. यह हाल ही में HMPV का पहला मामला था. बच्ची का इलाज किया गया और वह अब ठीक हो चुकी है. इसी अस्पताल में 3 जनवरी को आठ महीने के एक और बच्चे को भी HMPV पॉजिटिव पाया गया. इस बच्चे को भी पहले से ब्रोंकोन्यूमोनिया की शिकायत थी और अब वह भी ठीक हो रहा है. खास बात यह है कि इन दोनों बच्चों का विदेश यात्रा से कोई संबंध नहीं था. इसका मतलब है कि इन्हें HMPV संक्रमण देश में ही हुआ. यानी इसका चीन या किसी अन्य देश से कोई संबंध नहीं है.
केंद्र सरकार के अलर्ट के बाद राज्य सरकारें भी तुरंत सक्रिय
बेंगलुरु में इन दो मामलों के सामने आने के बाद से अब तक पूरे देश में HMPV के 11 केस सामने आ चुके हैं. इनमें से तीन महाराष्ट्र, तीन कोलकाता, दो चेन्नई और एक गुजरात में पाए गए हैं. कोविड संक्रमण के बाद से मीडिया भी कुछ ज्यादा अलर्ट है और HMPV संक्रमण के जितने भी मामले सामने आए हैं, उन्हें गंभीरता से लिया जा रहा है. केंद्र सरकार के अलर्ट के बाद राज्य सरकारें भी तुरंत सक्रिय हो गई हैं और अस्पतालों में अलग से आइसोलेशन वार्ड्स बना दिए गए हैं.
घबराने की कोई जरूरत नहीं!
प्रयागराज में हो रहे महाकुंभ में भी HMPV के संबंध में पूरी तरह से अलर्ट जारी किया गया है. हालांकि, इसके साथ ही सभी सरकारों और विशेषज्ञों ने यह भी स्पष्ट किया है कि घबराने या हड़बड़ाने की कोई जरूरत नहीं है. यह कोई नया वायरस नहीं है, बल्कि बहुत पहले से भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों में मौजूद है और कोविड की तरह घातक भी नहीं है. WHO की पूर्व चीफ साइंटिस्ट डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने कहा है कि इन्फ्लुएंजा जैसी बीमारियों या Severe Acute Respiratory Illnesses (SARI) के मामलों में से केवल 3% मामले HMPV के हैं. इसीलिए घबराने की कोई जरूरत नहीं है.
सबसे पहले तो आपको यह बता दें कि HMPV वायरस एक पुराना वायरस है, जो कोविड वायरस की तरह बिल्कुल नया नहीं है. भारत में इसे 2001 से डिटेक्ट किया जाता रहा है और कुछ रिसर्च के अनुसार 50 के दशक में भी इसके कुछ सबूत मिले हैं. यही वजह है कि इसे लेकर हमारी जनता में इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है.
HMPV वायरस नया नहीं : दिल्ली एम्स
दिल्ली एम्स के डॉक्टर नीरज निश्चल ने कहा कि HMPV वायरस नया नहीं है, और इसे लेकर हमारे भीतर रोग प्रतिरोधक क्षमता मौजूद है। लेकिन फिर भी छोटे बच्चों को, जिन्हें पहली बार यह संक्रमण होता है, या फिर बुजुर्गों को, जिनकी इम्यूनिटी कम होती है, या वे लोग जो पहले से बीमार हैं और जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है, खासकर फेफड़ों या दिल की गंभीर बीमारियों के मरीजों की तबीयत बिगड़ने की आशंका ज्यादा रहती है.
अधिकांश मामलों में लोग खुद ही ठीक हो जाते हैं
एक बार HMPV संक्रमण होने के बाद शरीर में इसके प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है. इसके बाद अगर दोबारा संक्रमण होता है, तो ज़ुकाम जैसे हल्के लक्षण आते हैं और अधिकांश मामलों में लोग खुद ही ठीक हो जाते हैं. रिसर्च के अनुसार बच्चों में होने वाली सांस की बीमारियों में 10% से 12% मामले HMPV के होते हैं. अधिकांश मामलों में तकलीफ खुद ही ठीक हो जाती है. हालांकि, जिन बच्चों को यह संक्रमण होता है. उनमें से 5% से 16% बच्चों को सांस की नली के निचले हिस्से में संक्रमण से जुड़ी बीमारियां, जैसे न्यूमोनिया, होने की आशंका रहती है.
कोविड महामारी के बाद क्या बदला?
कोविड महामारी के बाद देश में बीमारियों के परीक्षण नेटवर्क में सुधार हुआ है. जांच का दायरा बड़ा और गहरा हुआ है, जिससे बीमारियों का जल्द पता लगाना संभव हो गया है. अगर किसी को HMPV वायरस के गंभीर लक्षण दिखाई दें, तो इसका पता लगाने के लिए नाक या गले से स्वैब सैंपल लिया जाता है. लैब में परीक्षण किया जाता है. हालांकि, यदि HMPV इन्फेक्शन गंभीर नहीं है, तो इसका परीक्षण करने की आवश्यकता नहीं होती. यदि इन्फेक्शन गंभीर हो, तो फेफड़ों में एयरवेज में बदलाव की जांच के लिए ब्रोंकोस्कोपी या एक्स-रे कराने की जरूरत पड़ सकती है. हालांकि, यह बार-बार बताना जरूरी है कि HMPV वायरस से घबराने की कोई जरूरत नहीं है. यदि इस संक्रमण के कारण कोई दूसरा यानी सैकंडरी इन्फेक्शन होता है, तो उसका इलाज करना जरूरी हो जाता है.
वायरल इन्फेक्शन का कोई विशेष इलाज नहीं
अगर आप स्वस्थ हैं और HMPV वायरस का संक्रमण हुआ है, तो भी आप जल्दी ठीक हो जाएंगे, क्योंकि यह एक सामान्य वायरल इन्फेक्शन है. इस वायरल इन्फेक्शन का कोई विशेष इलाज नहीं है और न ही कोई एंटीवायरल दवा उपलब्ध है. इलाज केवल लक्षणों के आधार पर किया जाता है, जिसे सिम्पटोमैटिक ट्रीटमेंट कहते हैं. जैसे, बुखार के लिए पैरासिटेमोल ली जा सकती है, नाक बंद होने पर भाप लेना और आराम करना फायदेमंद रहता है.
वायरस दरअसल, जीवित नहीं होते. यह बड़ा ही दिलचस्प है कि वायरस जीव और निर्जीव के बीच की सीमा पर होते हैं. इन्हें भोजन की जरूरत नहीं पड़ती, इसलिए भोजन को ऊर्जा में बदलने की प्रक्रिया, जिसे हम मेटाबोलिज़्म कहते हैं, ये नहीं करते. इनका कोई दिमाग भी नहीं होता. ये बस कुछ जीन होते हैं, जैसे तीन या चार जीन का समूह, जबकि बैक्टीरिया में हज़ारों जीन होते हैं. वायरस कई प्रकार के हो सकते हैं. जब वायरस को कोई होस्ट नहीं मिलता, यानी कोई जीव जैसे इंसान या जानवर के संपर्क में नहीं आता, तो यह निर्जीव ही रहता है. यह बस एक जेनेटिक जानकारी होती है, जो कुछ प्रोटीन से घिरी रहती है. अगर वायरस को फ्रीज़ यानी बर्फ में जमा कर दिया जाए, तो भी इन्हें कोई नुकसान नहीं होता, बल्कि ये और अधिक सुरक्षित रहते हैं.
इसी वजह से इन दिनों कई वैज्ञानिक आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) के कारण आर्कटिक ध्रुव पर जो पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) पिघल रही है, उससे ऐसे वायरस बाहर आ सकते हैं जो कभी किसी बड़ी महामारी का कारण बन सकते हैं. इसका कारण यह है कि हमारे शरीर में उनके प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं होगी. पर्माफ्रॉस्ट उस परत को कहते हैं जो कम से कम दो साल से लगातार जमी हुई हो, यानी शून्य डिग्री या उससे कम तापमान पर. आर्कटिक, अंटार्कटिक और हिमालय में तो यह पर्माफ्रॉस्ट हज़ारों साल से जमी हुई है.
वायरस के जीनोम की एक कॉपी जब किसी सेल में पहुंचती है, तो उसकी संख्या बड़ी तेजी से बढ़ने लगती है. कुछ ही घंटों में एक वायरस की हजारों कॉपी बन सकती हैं. वायरस की कॉपी बनने की इस प्रक्रिया में कई बार गड़बड़ियां भी होती हैं, जिससे जेनेटिक बदलाव के कारण दूसरे प्रकार के वायरस भी उत्पन्न हो सकते हैं. यानी वायरस में म्यूटेशन के कारण नई तरह के वायरस बन सकते हैं. अगर शरीर किसी एक वायरस के प्रति इम्यूनिटी विकसित कर लेता है, तो फिर उसे दूसरी तरह के वायरस से निपटने के लिए तैयार होना पड़ता है. अगर वह निपट नहीं पाता, तो वह शिकार हो सकता है. जैसा कि हमने कोविड के दौरान देखा था, कोरोना वायरस के अलग-अलग स्ट्रेन धीरे-धीरे सामने आने लगे थे.
HMPV वायरस से बचाव के उपाय
साबुन से हाथों को बार-बार धोएंबिना धुले हाथों से अपनी आंखों, नाक या मुंह को छूने से बचेंबीमारी के लक्षण वाले लोगों के साथ निकट संपर्क से बचेंखांसते और छींकते समय मुंह और नाक को ढकेंबुखार, खांसी और छींक आने पर सार्वजनिक स्थानों से दूर रहेंखूब पानी पिएं और पौष्टिक भोजन करेंसंक्रमण को कम करने के लिए जगहों पर उचित वेंटिलेशन सुनिश्चित करेंयदि आप बीमार हैं, तो घर पर रहें और दूसरों से संपर्क सीमित रखेंबीमार होने पर हाथ मिलाने से बचें, और टिशू पेपर या रुमाल का उपयोग करें
10 सबसे ख़तरनाक वायरस
मारबर्ग वायरस
दुनिया का सबसे खतरनाक वायरस मारबर्ग वायरस है, जिसका नाम जर्मनी की राइन नदी की सहायक नदी लान के किनारे बसे एक खूबसूरत कस्बे के नाम पर रखा गया है. खास बात यह है कि इस कस्बे का बीमारी से कोई लेना-देना नहीं है. यह एक प्रकार का हेमोरेजिक फीवर वायरस है. हेमोरेजिक फीवर में शरीर के अंगों और शिराओं से ब्लीडिंग होती है. यानी खून रिसने लगता है और इससे अंगों को काफी नुकसान हो सकता है. मारबर्ग वायरस से शरीर में ऐंठन होती है और म्यूकोसल मैम्ब्रेन जैसे नाक के अंदर, मुंह, होठों आदि से ब्लीडिंग हो सकती है. त्वचा और शरीर के अंगों को भी नुकसान हो सकता है. इस वायरस में मृत्यु की आशंका 90% तक होती है.
इबोला वायरस
इबोला वायरस भी बहुत खतरनाक है और इसके पांच स्ट्रेन होते हैं. यानी यह पांच प्रकार का होता है. हर स्ट्रेन का नाम अफ्रीका के अलग-अलग इलाकों के नाम पर रखा गया है, जैसे ज़ायरे, सूडान, ताई फॉरेस्ट, Bundibugyo और Reston ज़ायरे इबोला वायरस सबसे घातक होता है, जिसमें 90% मामलों में मौत हो जाती है. गिनी, सिएरा लियोन और लाइबेरिया में इस वायरस के स्ट्रेन पाए जाते हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार यह वायरस संभवतः फ्लाइंग फॉक्स से इंसान में आया है.
हैंटावायरस
हैंटावायरस के तहत भी कई तरह के वायरस आते हैं. इसका नाम एक नदी के नाम पर रखा गया है. 1950 में कोरियाई युद्ध के दौरान अमेरिका के कई जवान इस नदी के पास Hantavirus से संक्रमित हो गए थे. इसके भी कई लक्षण होते हैं, जैसे फेफड़ों की बीमारी, बुखार और किडनी का खराब हो जाना.
बर्ड फ्लू वायरस
बर्ड फ्लू वायरस काफ़ी चर्चा में रहा है और भारत में भी इसके कई मामले सामने आए हैं. इसके भी कई प्रकार होते हैं और बर्ड फ्लू में मौत की दर 70% तक होती है. बर्ड फ्लू का एक स्ट्रेन H5N1 सबसे ज्यादा चर्चा में रहा है, हालांकि इससे संक्रमण की आशंका काफ़ी कम रहती है. यह संक्रमण तभी हो सकता है जब H5N1 से संक्रमित पोल्ट्री, यानी मुर्गियां या बत्तखें, किसी इंसान के सीधे संपर्क में आएं. यही वजह है कि एशियाई देशों में इसके कई मामले देखने को मिलते हैं, जहां लोग मुर्गियों और बत्तखों के काफी करीब रहते हैं.
लसा वायरस
इस वायरस का पहला संक्रमण नाइजीरिया की एक नर्स को हुआ था. यह वायरस चूहों से फैलता है, लेकिन यह बहुत ज्यादा नहीं फैला है और एक खास इलाके तक सीमित रहा है, यानी यह Endemic रहा है, खासतौर पर पश्चिमी अफ्रीका तक. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पश्चिम अफ्रीका के 15 प्रतिशत चूहों में यह लसा वायरस पाया जाता है.
हुनिन वायरस
यह वायरस अर्जेंटीना के हेमोरेजिक फीवर से जुड़ा हुआ है. हुनिन वायरस से संक्रमित मरीजों के शरीर में सूजन हो सकती है, त्वचा से खून रिस सकता है, सेप्सिस हो सकता है. यानी इन्फेक्शन के प्रति शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अत्यधिक प्रतिक्रिया कर सकती है, जिससे अंगों का फेलियर हो सकता है और टिशू डैमेज हो सकता है. हुनिन वायरस संक्रमण में दिक्कत यह है कि इसके लक्षण इतने सामान्य होते हैं कि शुरुआत में बीमारी का पता लगाना मुश्किल हो सकता है.
क्रीमिया- कॉन्गो फीवर
क्रीमिया कॉन्गो फीवर टिक्स यानी किलनी से फैलता है. इसके लक्षण इबोला और मारबर्ग वायरस की तरह ही होते हैं. संक्रमण के शुरुआती दिनों में मरीज के चेहरे और मुंह पर पिन के आकार की ब्लीडिंग हो सकती है.
मैचपो वायरस
यह वायरस बोलीवियन हेमोरेजिक फीवर से जुड़ा हुआ है, जिसे ब्लैक टायफस भी कहा जाता है. मैचपो वायरस के संक्रमण से तेज बुखार आता है और उसके साथ ही शरीर में भारी ब्लीडिंग होती है. यह भी हुनिन वायरस की तरह फैलता है. यह वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल सकता है और अक्सर चूहों के शरीर में रहता है.
कियासनूर फॉरेस्ट वायरस
1955 में यह वायरस भारत के दक्षिण-पश्चिम तटीय इलाकों के जंगलों में पहली बार पाया गया था. यह टिक्स से फैलता है. लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार यह पता लगाना मुश्किल है कि यह वायरस किस जानवर में रहता है. माना जाता है कि चूहे, पक्षी और जंगली सुअर इसके होस्ट हो सकते हैं. कियासनूर फॉरेस्ट वायरस से संक्रमित मरीजों को तेज बुखार होता है. इसके साथ ही तेज सिरदर्द और मांसपेशियों में दर्द होता है, जिससे ब्लीडिंग भी हो सकती है.
डेंगू बुखार
डेंगू बुखार का डर भी लगातार बना रहता है और भारत में लोग इससे अनजान नहीं हैं. यह मच्छरों से फैलता है, जो साफ पानी में रहते हैं. दुनिया में हर साल 5 से 10 करोड़ लोग डेंगू से प्रभावित होते हैं. भारत समेत एशिया के कई देशों में डेंगू बुखार पाया जाता है. दुनिया के दो अरब लोगों पर लगातार डेंगू का खतरा बना रहता है.