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Explainer : अमेठी में 25 साल बाद गांधी परिवार से कोई शख्स चुनावी मैदान में नहीं…

अमेठी में कांग्रेस ने जिस केएल शर्मा को उम्मीदवार बनाया, वो गांधी फैमिली के करीबी माने जाते हैं. गौर करने वाली बात ये है कि साल 1998 के बाद यानी 25 साल बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि अमेठी सीट (Amethi Seat) से गांधी फैमिली का कोई शख्स चुनावी मैदान में नहीं है. आखिरी बार साल 1998 में सतीश शर्मा ने चुनाव लड़ा था, जिन्हें संजय सिंह से शिकस्त झेलनी पड़ी थी. ये वही अमेठी है जिसे एक समय पर कांग्रेस का अभेद्य किला माना जाता था. साथ ही इसे दशकों से गांधी परिवार का गढ़ माना जाता रहा. 

अमेठी सीट नेहरू-गांधी परिवार का पुराना गढ़

उत्तर प्रदेश के 80 लोकसभा सीटों में से अमेठी सीट को नेहरू-गांधी परिवार का गढ़ माना जाता रहा है. हालांकि, इस सीट से पिछले चुनाव में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को बीजेपी की स्मृति ईरानी ने बड़े अंतर से हरा दिया था. लेकिन अगर अमेठी में हुए आज तक के लोकसभा चुनाव के इतिहास को देखें तो ये बात साफ हो जाती है कि यह सीट ज्यादातर समय तक कांग्रेस के ही पास रही है. अमेठी को उत्तर प्रदेश के VVIP सीटों में से एक माना जाता है. 2019 से अमेठी की यह सीट भारतीय जनता के पास है. 

स्मृति ईरानी ने भेदा कांग्रेस का अभेद किला

पार्टी का गढ़ रही अमेठी सीट कांग्रेस वर्ष 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से हार गई थी. सीट से निवर्तमान सांसद एवं भाजपा उम्मीदवार स्मृति ईरानी ने 2019 में राहुल गांधी को हराया था.

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अमेठी सीट का चुनावी इतिहास

1967 के आमचुनाव में अमेठी लोकसभा सीट पहली बार अस्तित्व में आया. इस नई सीट पर कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी सांसद बने. तब उन्होंने बीजेपी के गोकुल प्रसाद पाठक को साढ़े तीन हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था. इसके बाद 1972 में विद्याधर वाजपेयी दोबारा अमेठी के सांसद बने. 1977 के चुनाव में पहली बार गांधी परिवार से किसी ने इस सीट से अपनी दावेदारी पेश की थी. कांग्रेस पार्टी ने गांधी परिवार से संजय गांधी को मैदान में उतारा था. लेकिन आपातकाल के दौरान सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की तीव्र आलोचना के चलते जनता ने संजय गांधी पर अपना विश्वास नहीं जताया.

नतीजा यह रहा कि इस चुनाव में संजय गांधी की हार हुई. और जनता पार्टी के उम्मीदवार रविंद्र प्रताप सिंह यहां से सांसद चुने गए. 1980 में संजय गांधी की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में इंदिरा गांधी के बड़े बेटे राजीव गांधी ने अमेठी की बागडोर संभाली. इसके बाद 1984 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी को ही एक बार फिर अमेठी से मैदान में उतारा गया.1984 में इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई. 

तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने राजीव को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई. इसके बाद लोकसभा चुनावों की घोषणा हो गई. राजीव फिर अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए गए तो मेनका ने राजीव के मुकाबले निर्दलीय उम्मीदवार के तौर में पर्चा भर दिया.यह मुकाबला नेहरू-गांधी परिवार के दोनों वारिसों के बीच हो गया. जब नतीजे आए तो मेनका के सामने राजीव को प्रचंड जीत मिली. 1984 लोकसभा चुनाव में राजीव को 3,65,041 वोट जबकि उनके विरोध में उतरीं मेनका को महज 50,163 वोट ही मिल सके. 

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इस तरह से मेनका को 3,14,878 वोटों से करारी हार झेलनी पड़ी. बात अगर 1989 और 1991 के लोकसभा चुनावों की करें तो यहां से एक बार फिर राजीव गांधी ही इस सीट से सांसद बने. 1991 के लोकसभा चुनावों के दौरान 20 मई को पहले चरण की वोटिंग हुई. 21 मई को राजीव गांधी प्रचार के लिए तमिलनाडू गए हुए थे. तब इस दौरान ही उनकी हत्या कर दी गयी.1991 और 1996 में अमेठी लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ जिसके बाद कांग्रेस के सतीश शर्मा सांसद बने. हालांकि, 1998 में कांग्रेस को दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा 

जब भाजपा प्रत्याशी संजय सिंह ने सतीश शर्मा को 23 हजार वोटों से हराया था.1999 में सोनिया गांधी ने जीता चुनाव. 1999 में कांग्रेस से राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी चुनावी मैदान में उतरीं और उन्होंने संजय सिंह को 3 लाख से भी अधिक वोटों से हराया. इसके बाद 2004 के 14वें लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी पहली बार इस सीट से चुनाव लड़े, उन्होंने बसपा प्रत्याशी चंद्रप्रकाश मिश्रा को 2 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया. 2009 में भी राहुल ने अमेठी सीट से जीत दर्ज की. 

इस बार जीत का अंतर साढ़े तीन लाख से भी ज्यादा रहा. 2014 में राहुल गांधी इस सीट से लगातार तीसरी बार सांसद चुने गए. उनके खिलाप भाजपा की ओर से स्मृति ईरानी मैदान में उतरी थीं. हालांकि, तब जीत का अंतर 1 लाख वोट से कुछ ही ज्यादा था.

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