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Explainer: वादे हैं, वादों का क्या, कितने पूरे हुए कांग्रेस के चुनावी वादे?


नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव के परिणाम (Lok Sabha Elections Result 2024) चार जून को आने के बाद कुछ तस्वीरें जितनी तेजी से सामने आईं, उतनी ही तेजी से गायब भी हो गईं. कई राज्यों में कांग्रेस कार्यालयों में महिलाओं की भीड़ वाली तस्वीरें भी सामने आई थीं.  वे महिलाएं, जो इस उम्मीद में वहां पहुंची थीं कि कांग्रेस के घोषणापत्र में किए वादे (Congress Promise) और गारंटी कार्ड के मुताबिक उन्हें साल के एक लाख रुपए की पहली किश्त दी जाएगी. जाहिर है वे खाली हाथ घर लौट आईं. इसका कारण भी साफ था कि चाहे इंडिया गठबंधन ने चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया हो, लेकिन सरकार में नहीं आ सका. लिहाजा इस वादे को पूरा करने का कोई तरीका उनके पास नहीं था. लेकिन उन वादों का क्या जो कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) में किए, मगर सत्ता में आने के बाद उस पर उन्हें पूरा न करने का आरोप लगा.

कांग्रेस की अभी तीन राज्यों में अपने बूते सरकार है- कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना. साथ ही, पार्टी झारखंड में जेएमएम के साथ गठबंधन सरकार में शामिल है. वैसे तो इन सभी राज्यों में कांग्रेस के चुनावी वादों को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं, लेकिन सबसे तीखे सवाल कर्नाटक को लेकर पूछे जा रहे हैं. एक नजर डालते हैं कि कर्नाटक में कांग्रेस ने क्या वादे किए थे और उन्हें पूरा करने की कवायद कहां तक पूरी हुई.

वादों का बोझ अब जनता पर!

कर्नाटक में कांग्रेस ने सत्ता में आने से पहले कई लोक-लुभावन वादे किए थे. पार्टी की बड़ी जीत के पीछे इन वादों की बड़ी भूमिका रही. कुछ बड़े वादे जैसे हर परिवार को गृह ज्योति के तहत हर महीने 200 यूनिट मुफ्त बिजली, हर परिवार की महिला मुखिया को गृह लक्ष्मी के तहत दो हजार रुपए प्रति महीने, बीपीएल परिवारों को अन्न भाग्य के तहत 10 किलो खाद्यान्न, बेरोजगार स्नातकों को दो साल के लिए हर महीने तीन हजार रुपए और बेरोजगार डिप्लोमा धारकों को दो साल के लिए डेढ़ हजार रुपए प्रति महीने की युवनिधि. इसके अलावा महिलाओं को बसों में मुफ्त यात्रा के लिए शक्ति योजना. 
इन सभी वादों को पूरा करने के लिए राज्य के खजाने पर बोझ बढ़ा और उस बोझ को कम करने के लिए अब राज्य सरकार दूसरे तरीकों से पैसा लाने की तैयारी कर रही है. उसका बोझ आखिरकार जनता पर ही पड़ रहा है.

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‘एक हाथ दे, एक हाथ ले’ वाली रणनीति

 राज्य की कांग्रेस सरकार ने वादे के मुताबिक 200 यूनिट बिजली देना तो शुरू किया लेकिन खर्च की भरपाई के लिए बिजली की दरें महंगी कर दीं. इसी तरह स्नातक और डिप्लोमाधारी बेरोजगारों को युवनिधि के तहत बेरोजगारी भत्ता देने की शर्तों को कड़ा कर दिया गया. महिलाओं की बसों में मुफ्त यात्रा तो शुरू हुई लेकिन उसका आर्थिक भार हल्का करने के लिए अब किरायों में 20 प्रतिशत बढोतरी का प्रस्ताव है. सभी लोक-लुभावन योजनाओं का बोझ सरकारी खजाने से कम करने के लिए राज्य सरकार ने उत्पाद शुल्क,संपत्ति कर, स्टाम्प पेपर ड्यूटी, नए वाहनों पर रोड टैक्स में बढ़ोतरी के साथ ही डीजल, पेट्रोल, बिजली, पानी और दूध की कीमतें बढ़ाईं हैं, जिनका सीधा असर आम लोगों पर पड़ा है. शराब पर टैक्स और एससी-एसटी फंड को डायवर्ट करने की बातों से भी सरकार के प्रदर्शन पर असर पड़ा है. इसी तरह 11 इंदिरा कैंटीन को बंद करने को लेकर भी सवाल पूछे जा रहे हैं.

कांग्रेस के नौकरी के वादे का क्या हुआ?

हिमाचल प्रदेश की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. वहां कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के अपने घोषणा पत्र में पांच लाख युवाओं को नौकरी देने का वादा किया था, लेकिन इस मोर्चे पर अभी कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है. कर्नाटक ही तरह हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस ने मुफ्त बिजली का वादा किया था. इसके तहत 300 यूनिट तक बिजली मुफ्त करने की बात कही थी, लेकिन अब हर यूनिट बिजली के दाम में 22 पैसे की बढोत्तरी कर दी गई. हिमाचल प्रदेश में भी महिलाओं को 1500 रुपए प्रति महीने देने का वादा था जो अब भी पूरा होना का इंतजार है.

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तेलंगाना की महिलाओं को वादा पूरा होने का इंतजार

तेलंगाना की बात करें तो वहां भी हालात कुछ ऐसे ही हैं. तेलंगाना मे कांग्रेस ने महिलाओं को हर महीने 2,000 रुपये, 500 रुपये में एलपीजी सिलेंडर, 18 साल की उम्र पूरी करने वाली लड़कियों को मुफ्त स्कूटी और अन्य वादे किए थे. लेकिन ये वादे पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं. महिलाओं से किए गए वादे, किसानों, किरायेदार किसानों और अन्य लोगों को 15,000 रुपये प्रति एकड़ इनपुट सहायता पूरी नहीं हुई. तेलंगाना राज्य में आधे से ज़्यादा नियमित बसें नाममात्र के लिए महिलाओं के लिए मुफ़्त बस यात्रा लागू करती हैं.

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झारखंड से किया वादा कब पूरा होगा?

झारखंड में कुछ ही महीनों में चुनाव होने जा रहे हैं. पांच साल पहले जेएमएम और कांग्रेस गठबंधन ने जनता से कई लोक-लुभावन वादे किए थे. इनमें युवाओं को लाखों नौकरियां देना और उन्हें पांच-सात हजार रुपए का बेरोजगारी भत्ता देना का वादा किया था. लेकिन बेरोजगार युवा इसका इंतजार कर रहे हैं. इसी तरह महिलाओं को कर्ज देने के लिए महिला बैंक बनाने और किसानों के लिए किसान बैंक बनाने का वादा पूरा नहीं हुआ.

एक ऐसे समय जब राजनीतिक दलों में लोक-लुभावन वादे करने की होड़ लगी है, यह परखना भी जरूरी है कि ऐसे वादे जमीन पर किस हद तक उतरते हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि चुनाव से पहले जनता से बढ़-चढ़ कर वादे किए जाएं और सत्ता में आने के बाद उन्हें भुला दिया जाए या उन्हें पूरा करने के लिए जनता पर दूसरे तरीके से बोझ लाद दिया जाए.

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