Explainer: मिल्कीपुर में हिंदुत्व कार्ड चलेगा या अखिलेश का PDA, जानें सीट का पूरा गणित
नई दिल्ली:
पांच फरवरी को होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए बड़े पैमाने पर प्रचार का शोर थम गया है और अब नेता-कार्यकर्ता घर-घर जाकर व्यक्तिगत प्रचार कर रहे हैं. दिल्ली का चुनाव सुर्ख़ियों में ज़बर्दस्त छाया रहा. इसके बावजूद उत्तर प्रदेश की एक विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव का हाई वोल्टेज प्रचार भी अपनी जगह बनाता रहा. पांच फरवरी को जब दिल्ली के लोग वोट डालेंगे, तो उत्तर प्रदेश की मिल्कीपुर विधानसभा और तमिलनाडु की इरोड विधानसभा के उपचुनाव के लिए भी वोट डाले जाएंगे. मिल्कीपुर सीट की ख़ास बात ये है कि बीजेपी के लिए ये सीट हमेशा से ही कड़ी चुनौती रही है. पिछले 33 साल में मिल्कीपुर विधानसभा सीट बीजेपी सिर्फ़ एक बार ही जीत पाई है. इसलिए ये सीट जीतना बीजेपी के लिए इस बार भी बड़ी चुनौती है.
बीजेपी को लेना है उस हार का बदला
उत्तर प्रदेश की मिल्कीपुर आरक्षित विधानसभा सीट तो राज्य की सत्तारूढ़ बीजेपी और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के लिए नाक की लड़ाई बन चुकी है. इसके लिए दोनों ही पक्षों की ओर से इतना ज़ोरदार चुनाव प्रचार हुआ है कि दिल्ली से छपने वाले कथित राष्ट्रीय अख़बारों में भी वो सुर्ख़ियां बनता रहा. अयोध्या ज़िले और फ़ैज़ाबाद लोकसभा सीट के तहत आने वाली मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर वैसे तो दस उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुक़ाबला बीजेपी के उम्मीदवार चंद्रभान पासवान और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अजीत प्रसाद के बीच है. अजीत प्रसाद इस सीट से पूर्व विधायक रहे अवधेश प्रसाद के बेटे हैं. अवधेश प्रसाद अब फ़ैज़ाबाद सीट से सांसद हैं. पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने फ़ैज़ाबाद सीट से चुनाव जीता, तो बीजेपी में हड़कंप मच गया. उसकी दो वजह रही… एक तो पिछले साल जनवरी में राम मंदिर बनने के तीन महीने बाद हुए इस चुनाव में अयोध्या-फ़ैज़ाबाद इलाके में बीजेपी के लिए चुनाव हारना एक बड़ा झटका था, जिससे वो अभी तक उबर नहीं पाई है और दूसरा एक सुरक्षित सीट से अखिलेश यादव ने दलित उम्मीदवार को उतारा और जीत हासिल कर ली. यही वजह है कि मिल्कीपुर सीट को जीतकर बीजेपी उस हार का बदला लेने की जीतोड़ कोशिश कर रही है. मिल्कीपुर सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. बीजेपी और सपा दोनों के ही उम्मीदवार अनुसूचित जाति से जुड़े पासी समुदाय से आते हैं, जिसकी इस सीट पर अच्छी ख़ासी तादाद है.
भीम आर्मी भी मिल्कीपुर से मैदान में…
मिल्कीपुर सीट से मायावती की बीएसपी ने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है और कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन में अपनी सहयोगी समाजवादी पार्टी के समर्थन में उम्मीदवार नहीं उतारा. वैसे इस सीट पर एक तीसरे उम्मीदवार को नहीं भूलना चाहिए. ये हैं भीम आर्मी के प्रमुख और लोकसभा सांसद चंद्रशेखर आज़ाद की आज़ाद समाज पार्टी के उम्मीदवार सूरज चौधरी. सूरज चौधरी पहले समाजवादी पार्टी में थे, अवधेश प्रसाद के क़रीबी थे और हाल में सपा छोड़कर आज़ाद समाज पार्टी में आ गए. सूरज चौधरी भी पासी समुदाय से हैं. बीएसपी की ग़ैर मौजूदगी में दलित समुदाय के वोटों में वो कितनी सेंध लगाते हैं ये देखना दिलचस्प रहेगा.
बीजेपी के लिए मिल्कीपुर सीट हमेशा से ही कड़ी चुनौती?
मिल्कीपुर सीट की ख़ास बात ये है कि बीजेपी के लिए ये सीट हमेशा से ही कड़ी चुनौती रही है. पिछले 33 साल में मिल्कीपुर विधानसभा सीट बीजेपी सिर्फ़ एक बार ही जीत पाई है. इसलिए ये सीट जीतना बीजेपी के लिए इस बार भी बड़ी चुनौती है. फ़ैज़ाबाद के मौजूदा सांसद अवधेश प्रसाद ने 2022 में मिल्कीपुर सीट से बीजेपी उम्मीदवार गोरखनाथ को हराया था. उपचुनाव में इस सीट का नतीजा आने वाले दिनों के लिए इशारा भी हो सकता है. कई जानकार तो मानते हैं कि इस चुनाव का नतीजा 2027 में होने वाले उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव की दिशा तय कर सकता है. ऐसे में यहां उछला कोई भी मुद्दा बड़ा बन सकता है. जैसे बीते शनिवार को एक दलित महिला की हत्या के मुद्दे ने चुनाव को नए सिरे से गर्मा दिया.
दलित महिला पर यौन हमला बना चुनावी मुद्दा
दलित महिला का शव घर से लापता होने के अगले दिन खेत से बरामद हुआ. महिला के परिवार को आशंका है कि उसपर यौन हमला हुआ और उसके शव को क्षत-विक्षत किया गया. पुलिस के मुताबिक, उसे फोरेंसिक रिपोर्ट का इंतज़ार है, जिससे ये साफ़ हो सकेगा कि क्या महिला को बलात्कार का शिकार भी बनाया गया? पुलिस ने हालांकि, इन ख़बरों को ग़लत बताया कि महिला की आंखें निकाली गईं. पुलिस ने कहा कि ये बेबुनियाद और ग़लत हैं. अयोध्या के एसएसपी के मुताबिक, महिला के परिवार ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिसके अगले दिन महिला का शव एक खेत में मिला. पुलिस के मुताबिक, पहली नज़र में लगता है कि अपराध वहां नहीं हुआ जहां से शव बरामद किया गया. कहीं और हत्या कर शव को यहां डाल दिया गया. चुनाव प्रचार के आख़िरी दिन इस केस के तीन आरोपी पकड़े गए. लेकिन समाजवादी पार्टी को पुलिस प्रशासन पर यकीन नहीं है. ये मामला जब सामने आया तो स्थानीय सांसद अवधेश प्रसाद पत्रकारों के सामने रो पड़े. कहा कि अगर पीड़ित परिवार को न्याय नहीं मिला तो वो इस्तीफ़ा दे देंगे. ये भी कहा कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने ये मुद्दा उठाएंगे. ये तस्वीर जमकर वायरल हुईं और विपक्ष ने राज्य की बीजेपी सरकार पर हमले तेज़ कर दिए.
इतिहास क्या कहेगा, ऐसी बात हमारी बेटी के साथ कैसे हो गई? मर्यादा पुरुषोत्तम राम आप कहां हो… सीता मैया आप कहां हो?
अवधेश प्रसाद, सपा सांसद, फ़ैज़ाबाद
बलात्कार पर सियासत जारी
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज विरोधी सरकार है, दलितों के ख़िलाफ़ अन्याय, अत्याचार हो रहा है. योगी सरकार तुरंत इस मामले की जांच कराए और दोषियों को सख़्त से सख़्त सज़ा दिलाए. ढिलाई के लिए ज़िम्मेदार पुलिसकर्मियों पर भी कार्रवाई की जाए. उधर बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि महिला के साथ अमानवीय बर्ताव हुआ है. ऐसी घटना दोबारा न हो इसके लिए सरकार सख़्त से सख़्त कदम उठाए. समाजवादी पार्टी ने कहा कि एक दलित महिला की हत्या के मामले ने राज्य की क़ानून व्यवस्था पर नए सिरे से सवाल खड़े कर दिए हैं और राज्य में पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यक के साथ खिलवाड़ हो रहा है. उधर योगी सरकार ने कहा है कि वो मामले की तह तक जाएगी. राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो पिछली कई घटनाओं के आधार पर आशंका जता चुके हैं कि हो सकता है कि इस घटना के पीछे समाजवादी पार्टी से ही जुड़े किसी व्यक्ति का नाम सामने आए.
एक दलित महिला की हत्या से पहले भी मिल्कीपुर में प्रचार काफ़ी गर्माया हुआ था. इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि चुनाव जीतने के लिए बीजेपी और सपा की ओर से हर उस नेता को प्रचार में उतार दिया गया जो यहां वोटों को प्रभावित कर सकते हैं.
मिल्कीपुर विधानसभा का गणित
- मिल्कीपुर सीट पर कुल दस उम्मीदवार हैं. मुख्य मुक़ाबला बीजेपी और सपा के उम्मीदवारों के बीच है.
- मिल्कीपुर सीट पर कुल 3.58 लाख मतदाता हैं, जिनमें से 1.40 लाख दलित हैं.
- क़रीब 50 हज़ार दलित मतदाता पासी समुदाय हैं, जबकि बाकी कोरी और जाटव समुदाय से हैं.
- इस सीट पर 50 हज़ार ओबीसी, 60 हज़ार ब्राह्मण, 50 हज़ार यादव, 30 हज़ार मुस्लिम और 25 हज़ार राजपूत मतदाता हैं.
योगी सरकार ने लगाया एड़ी-चोटी का जोर
बीजेपी के लिए हमेशा से मुश्किल सीट रही मिल्कीपुर सीट को जीतने के लिए उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया है. यूपी के सात मंत्रियों और 40 विधायकों को प्रचार में उतारने के अलावा ख़ुद योगी आदित्यनाथ ने आठ बार इस सीट का दौरा किया. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनकी पत्नी और सपा सांसद डिंपल यादव ने पार्टी के अन्य दिग्गजों के साथ धुआंधार प्रचार किया. इस अभियान में बीजेपी के हिंदुत्व कार्ड का मुक़ाबला करने के लिए समाजवादी पार्टी ने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक यानी पीडीए के एक होने का नारा दिया है. सपा नेता अपने प्रचार के दौरान लगातार मतदाताओं को आगाह करते रहे हैं कि उनके वोट हासिल करने के लिए बीजेपी हर संभव कोशिश कर सकती है, जबकि बीजेपी लगातार याद दिला रही है कि सपा सरकार के समय क़ानून व्यवस्था की क्या हालत थी. बीजेपी अपने हर प्रचार में समाजवादी पार्टी को दलित विरोधी बताती रही. दावा करती रही कि दलितों को सताने वाले आपराधिक तत्वों का साथ देकर सपा ने बाबा साहेब अंबेडकर को अपमानित किया है.
मिल्कीपुर का चुनाव परिणाम देगा कई सवालों के जवाब
सबसे पहले तो इस बात का इशारा मिलेगा कि बीजेपी के हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के कार्ड का जादू अब भी क़ायम है या नहीं?
दूसरा अंदाज़ा ये मिलेगा कि बीएसपी के लगातार कमज़ोर होने के बाद यूपी का दलित वोट किस तरफ़ जा रहा है. दलित वोट किस तरफ़ ट्रांसफ़र होंगे. बीते लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की जीत के पीछे एक वजह ये भी रही कि दलित वोट अच्छी ख़ासी तादाद में उसकी तरफ़ ट्रांसफ़र हुए. क्या ये रुख़ क़ायम रहेगा?
तीसरी बात ये है कि समाजवादी पार्टी द्वारा MY गठजोड़ यानी मुस्लिम यादव गठजोड़ को छोड़कर PDA के भरोसे चुनाव लड़ने यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक की रणनीति क्या इस उपचुनाव में भी काम आएगी?
सपा का दावा है कि PDA मज़बूत से सपा के साथ खड़े हैं. मिल्कीपुर में सपा नेताओं का कहना है कि अयोध्या-फ़ैज़ाबाद लोकसभा सीट पर बीजेपी की हार तो बस एक झांकी थी, असली तस्वीर तो अभी बाकी है. अब एक सवाल ये है कि जब बीते नवंबर में ही उत्तरप्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए थे, तो मिल्कीपुर सीट पर क्यों नहीं हुए? नवंबर में नौ सीटों पर हुए उपचुनाव में बीजेपी ने छह, सपा ने दो और आरएलडी ने एक सीट पर जीत हासिल की थी. उन सीटों पर चुनाव कार्यक्रम के साथ जब मिल्कीपुर का एलान नहीं हुआ, तो सब हैरान रह गए. इस सिलसिले में चुनाव आयोग से सवाल किया गया. मिल्कीपुर का नाम शामिल न किए जाने पर मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा था कि वहां चुनाव इसलिए नहीं कराया गया, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव से जुड़ी एक याचिका कोर्ट में लंबित है. दरअसल 2022 में फ़ैज़ाबाद के मौजूदा सांसद अवधेश प्रसाद ने मिल्कीपुर सीट का चुनाव जीता था, तो हारने वाले बीजेपी उम्मीदवार गोरखनाथ ने नतीजों को कोर्ट में चुनौती दी थी. आरोप लगाया था कि अवधेश प्रसाद ने चुनाव आयोग को वैध दस्तावेज़ नहीं सौंपे हैं. जब मिल्कीपुर का नाम चुनाव आयोग की लिस्ट में नहीं आया, तो गोरखनाथ ने कहा कि वो दो तीन दिन में चुनाव नतीजों को चुनौती देने वाली अपनी याचिका वापस ले लेंगे, जो उन्होंने फिर वापस ले भी ली. इससे यहां विधानसभा उपचुनाव का रास्ता साफ़ हो गया.
मिल्कीपुर में चुनाव आयोग ने निष्पक्ष चुनाव के लिए पूरे इंतज़ाम कर दिए हैं. पर्याप्त तादाद में सुरक्षाबलों को तैनात किया गया है. लेकिन सपा को आशंका है कि मिल्कीपुर में राज्य सरकार के तंत्र का दुरुपयोग हो सकता है. लिहाज़ा उसने चुनाव आयोग से मांग की है कि सभी मतदान केंद्रों से मतदान को वेबकास्ट किया जाए और बीजेपी के लिए काम कर रहे कुछ मतदान अधिकारियों और बीएलओ को हटाने की मांग की है. इस पर बीजेपी का दावा है कि सपा ने पहले ही हार मान ली है.
इस बीच मिल्कीपुर चुनाव प्रचार में सपा के एक बाग़ी विधायक सपा की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं. गोसाईगंज सीट से सपा के बाग़ी विधायक अभय सिंह मिल्कीपुर में बीजेपी उम्मीदवार चंद्रभान प्रसाद के लिए प्रचार करते नज़र आए. अभय सिंह ने परिवारवाद का आरोप लगाते हुए कहा कि इस इलाके से सांसद और विधायक दोनों ही एक परिवार से क्यों हों. क्या सपा के पास नेताओं की कमी है?
मिल्कीपुर विधानसभा में किस जाति के कितने वोटर
- कुल मतदाता 3.58 लाख
- दलित – 1.40 लाख ( पासी – 50 हज़ार)
- ओबीसी – 50 हज़ार
- ब्राह्मण – 60 हज़ार
- यादव – 50 हज़ार
- मुस्लिम – 30 हज़ार
- राजपूत – 28 हज़ार
नवंबर 2024 में क्यों नहीं हुआ, मिल्कीपुर उपचुनाव?
साल 2024 में जब चुनाव कार्यक्रम के साथ मिल्कीपुर सीट पर उपचुनाव का ऐलान नहीं हुआ, तब सभी हैरान रह गए. इस सिलसिले में चुनाव आयोग से सवाल किया गया. मिल्कीपुर का नाम शामिल न किए जाने पर मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा था कि वहां चुनाव इसलिए नहीं कराया गया, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव से जुड़ी एक याचिका कोर्ट में लंबित है. दरअसल, 2022 में फ़ैज़ाबाद के मौजूदा सांसद अवधेश प्रसाद ने मिल्कीपुर सीट का चुनाव जीता था, तो हारने वाले बीजेपी उम्मीदवार गोरखनाथ ने नतीजों को कोर्ट में चुनौती दी थी. आरोप लगाया था कि अवधेश प्रसाद ने चुनाव आयोग को वैध दस्तावेज़ नहीं सौंपे हैं. जब मिल्कीपुर का नाम चुनाव आयोग की लिस्ट में नहीं आया, तो गोरखनाथ ने कहा कि वो दो तीन दिन में चुनाव नतीजों को चुनौती देने वाली अपनी याचिका वापस ले लेंगे. जो उन्होंने फिर वापस ले भी ली. इससे यहां विधानसभा उपचुनाव का रास्ता साफ़ हो गया.
मिल्कीपुर नाम कैसे पड़ा?
कोई भी इलाका किसी भी कारण से चर्चा में आ सकता है. जैसे उत्तरप्रदेश का मिल्कीपुर उपचुनाव के लिए हाई वोल्टेज प्रचार के कारण चर्चा में है. ऐसे में एक जिज्ञासा ये हुई कि मिल्कीपुर का नाम कैसे पड़ा. क्या इसका मिल्क यानी दूध से कोई लेना देना है. तो आपको बता दें मिल्कीपुर नाम का मिल्क से कोई नाता नहीं है, बल्कि ये नाम पड़ा है यहां रहने वाले मिल्की समुदाय के लोगों के कारण जो मुस्लिम धर्म से जुड़े हैं. मिल्की मुस्लिम को जट्ट मुस्लिम भी कहा जाता है और उत्तर प्रदेश के पूरे अवध इलाके में वो पाए जाते हैं. मिल्की समुदाय के कुछ लोग पाकिस्तान में भी हैं. दिल्ली सल्तनत के दौर में उन्हें मिल्की नाम दिया गया. मिल्की समुदाय के लोग आमतौर पर आर्थिक लिहाज़ से संपन्न माने जाते हैं. पढ़ाई-लिखाई में आगे रहने की वजह से ब्रिटिश दौर में भी उन्हें ख़ासी तवज्जो दी गई. उन्नाव ज़िले में वो बड़ी ज़मीनों के मालिक भी रहे हैं. उत्तर प्रदेश के कौशांबी और इलाहाबाद में भी मिल्की मुसलमान अच्छी ख़ासी तादाद में हैं.