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समाज के प्रति करुणा की भावना ने मुझे न्यायाधीश के रूप में बनाए रखा है: सीजेआई चंद्रचूड़


नई दिल्ली:

भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को कहा कि समाज के प्रति उनकी करुणा की भावना ने ही एक न्यायाधीश के रूप में उन्हें निरंतरता प्रदान की, खासकर मामलों की पड़ताल जैसे महत्वपूर्ण अवसरों पर.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘पड़ताल का तत्व हमारे काम में शामिल है. इससे कोई भी चीज छूटती नहीं है. पड़ताल का यह तत्व हमारे न्यायालय के काम को निर्देशित करता है, लेकिन न्यायाधीश के रूप में हमें बनाए रखने वाली चीज उस समाज के प्रति हमारी करुणा की भावना है, जिसके लिए हम न्याय करते हैं.’

वह 10 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं. उन्हें बम्बई उच्च न्यायालय में मुंबई के वकीलों के संघों द्वारा सम्मानित किया गया.

उन्होंने एक ऐसे मामले का उल्लेख किया, जिसमें उस दलित छात्र को राहत दी गई थी, जो समय पर आईआईटी धनबाद में प्रवेश शुल्क का भुगतान नहीं कर सका था.

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘लड़का हाशिये पर रहने वाले परिवार से था, वह 17,500 रुपये की प्रवेश फीस भी नहीं दे सका था. अगर हमने उसे राहत नहीं दी होती तो उसे कॉलेज में प्रवेश नहीं मिलता. यही वह चीज है जिसने मुझे इतने सालों तक न्यायाधीश के रूप में बनाए रखा है.”

सीजेआई ने जोर देकर कहा, ‘‘आप किसी नागरिक को राहत न देने के लिए तकनीकी प्रकृति के 25 कारण ढूंढ सकते हैं, लेकिन मेरे हिसाब से राहत देने के लिए एक ही औचित्य पर्याप्त है.”

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत होने से पहले एक दशक से अधिक समय तक बम्बई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य किया था.

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उन्होंने कहा कि बम्बई उच्च न्यायालय के जैसा कुछ भी नहीं है. उन्होंने कहा, ‘बम्बई उच्च न्यायालय जैसा कुछ नहीं है. आपातकाल के समय में भी जब हर कोई अपना जमीर खो रहा था, बम्बई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्याय के मुद्दे से विचलित नहीं हुए.” सीजेआई ने कहा कि जब उन्होंने न्यायाधीश का पद संभाला तो वह ‘शुरू में बहुत परेशान’ थे.

(इस खबर को The Hindkeshariटीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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