क्या साधने यूक्रेन जा रहे हैं पीएम नरेंद्र मोदी, युद्ध खत्म करवाने में मध्यस्थ बनेगा भारत?
नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पोलैंड और यूक्रेन की यात्रा पर बुधवार सुबह रवाना हुए.सबसे पहले वो पोलैंड जाएंगे.वो 23 अगस्त को वार्सा से ट्रेन यात्रा कर यूक्रेन की राजधानी कीव पहुंचेंगे.उनका कीव में करीब सात घंटे रहने का कार्यक्रम है.साल 1992 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यूक्रेन यात्रा होगी.इस दौरान राजनीतिक, व्यापार, आर्थिक, निवेश, शिक्षा, सांस्कृतिक, मानवीय सहायता और द्विपक्षीय संबंधों समेत कई मुद्दों पर बातचीत होने की संभावना है.इससे पहले पीएम मोदी जुलाई के दूसरे हफ्ते में रूस और ऑस्ट्रिया की यात्रा पर गए थे.
पीएम मोदी यूक्रेन के नेशनल फ्लैग डे पर कीव की यात्रा कर रहे हैं.वो पोलैंड से कीव की यात्रा ‘रेल फोर्स वन’ ट्रेन से करेंगे.यह यात्रा करीब 10 घंटे की होगी.वो कीव में करीब सात घंटे रहेंगे.उनकी कीव से वार्सा वापसी भी इसी ट्रेन से होगी. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन समेत दुनिया के कई नेताओं ने यूक्रेन की सीमा के पास स्थित पोलैंड के रेलवे स्टेशन से ट्रेन के जरिए कीव की यात्रा की है.
पीएम मोदी और राष्ट्रपति जेलेंस्की की पहली आधिकारिक मुलाकात
प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की के निमंत्रण पर यूक्रेन की यात्रा पर जा रहे हैं. कीव में दोनों नेता पहली बार आधिकारिक तौर पर मिलेंगे. इससे पहले वे किसी तीसरे देश में ही मिलते रहे हैं.रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच पीएम मोदी की इस यात्रा को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
I will be visiting Ukraine at the invitation of President @ZelenskyyUa. This visit will be an opportunity to build on the earlier discussions with him and deepening the India-Ukraine friendship. We will also share perspectives on the peaceful resolution of the ongoing Ukraine…
— Narendra Modi (@narendramodi) August 21, 2024
भारत कुछ उन देशों में शामिल रहा है, जिन्होंने यूक्रेन को सबसे पहले एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता दी थी.भारत ने दिसंबर 1991 में यूक्रेन को एक अलग स्वतंत्र और संप्रभु देश के रूप में मान्यता दी.भारत ने यूक्रेन के साथ राजनयिक संबंध जनवरी 1992 में स्थापित किए थे.राजधानी कीव में भारत ने अपना दूतावास मई 1992 में खोला था. वहीं यूक्रेन ने भारत में अपना दूतावास फरवरी 1993 में खोला था.यह एशिया में यूक्रेन का पहला दूतावास था.
राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने 2005 में यूक्रेन की यात्रा की थी. लेकिन किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने अब तक यूक्रेन की यात्रा नहीं की है.प्रधानमंत्री नरेंद्र जब 23 अगस्त को कीव पहुंचेंगे तो वे यूक्रेन की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री होंगे.यूक्रेन यात्रा से पहले प्रधानमंत्री मोदी की राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की से तीन मुलाकात हो चुकी है. पहली बार दोनों नेता ग्लासगो में आयोजित COP 2021 सम्मेलन के दौरान हुई थी. इसके बाद दोनों नेता मई 2023 में जापान में हुई जी-7 देशों के सम्मेलन के दौरान मिले थे.वहीं इस साल जून में दोनों नेताओं की मुलाकात इटली में आयोजित जी-7 देशों के सम्मेलन में हुई थी. यह नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री के रूप में तीसरे कार्यकाल की पहली विदेश यात्रा थी.दोनों नेताओं की पिछली दोनों मुलाकातें फरवरी 2022 में शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद हुई हैं.
पीएम मोदी की यूक्रेन यात्रा और रूस
पीएम मोदी की यूक्रेन यात्रा उनकी रूस यात्रा के करीब छह हफ्ते बाद हो रही है. उनकी रूस यात्रा की अमेरिका और यूक्रेन ने भी निंदा की थी. जेलेंस्की ने नौ जुलाई 2024 को कहा था,”आज रूस के मिसाइल हमले में 37 लोग मारे गए, इसमें तीन बच्चे भी शामिल थे. रूस ने यूक्रेन में बच्चों के सबसे बड़े अस्पताल पर हमला किया.एक ऐसे दिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता का दुनिया के सबसे ख़ूनी अपराधी से मॉस्को में गले लगाना शांति स्थापित करने की कोशिशों के लिए बड़ी निराशा की बात है.”
कुछ विशेषज्ञ आशंका जता रहे हैं कि पीएम मोदी की यूक्रेन यात्रा से रूस नाराज होगा. लेकिन ऐसा लगता नहीं है. रूसी राष्ट्रपति के चीन यात्रा के बाद भारत ने कोई आपत्ति नहीं जताई थी.चीन-रूस संबंधों को लेकर रूस और भारत दोनों ने कहा था कि भारत और रूस के बीच संबंध अलग किस्म के हैं.इस दौरे से भारत और रूस के बीच संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ता है.ऐसे में उम्मीद है कि पीएम मोदी के यूक्रेन दौरे पर रूस भी कोई आपत्ति नहीं जताएगा.
भारत का संतुलन
पीएम मोदी ऐसे समय कीव की यात्रा पर जा रहे हैं, जब यूक्रेन रूस में घुसकर हमले कर रहा है. इसके बाद से विशेषज्ञ आशंका जता रहे हैं कि रूस यूक्रेन पर बड़ा हमला कर सकता है. इससे दोनों देशों में तनाव बढ़ा हुआ है. बुद्ध का देश भारत हमेशा से शांति का समर्थक रहा है. वह कभी भी युद्ध की वकालत नहीं करता है. रूस-यूक्रेन युद्ध पर भी भारत का रुख रहा है कि कूटनीति और बातचीत से इस युद्ध को सुलझाया जा सकता है.इससे स्थायी शांति स्थापित हो सकती है.स्थायी शांति केवल उन्हीं विकल्पों से हासिल हो सकती है,जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य हों.भारत दोनों देशों में बातचीत पर जोर देता रहा है. लेकिन भारत ने अभी तक यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा नहीं की है.भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ लाए गए किसी प्रस्ताव का समर्थन भी नहीं किया है.इसके बाद भी भारत ने यूक्रेन में अब तक दवा, कंबल, टेंट और मेडिकल उपकरण के रूप में करीब 135 टन की मानवीय मदद भेजी है. इस साल जुलाई में पुतिन के साथ शिखर वार्ता के दौरान पीएम मोदी ने कहा था कि यूक्रेन संघर्ष का समाधान युद्ध के मैदान में संभव नहीं है. बम और गोलियों के बीच शांति वार्ता सफल नहीं होती है.
पीएम मोदी की यूक्रेन यात्रा को देखते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है,”एक मित्र और भागीदार के रूप में,हम क्षेत्र में जल्द शांति और स्थिरता की वापसी की उम्मीद करते हैं.”पीएम मोदी ने कहा है कि संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान पर अपना दृष्टिकोण साझा करने के लिए राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ पहले की बातचीत को आगे बढ़ाने के अवसर की प्रतीक्षा कर रहा हूं.
रूस और यूक्रेन के बीच भारत
रूस और यूक्रेन के साथ रिश्ते को भारत अपनी जरूरतों के हिसाब से आगे बढ़ाता रहा है. युद्ध के दौरान भारत पश्चिमी देशों के दबाव में नहीं आया है. उसने रूस के खिलाफ उठाए गए कदमों को नकारने का काम किया है. आर्थिक पाबंदियों के बाद भी रूस से तेल खरीदना भारत ने जारी रखा है. पिछले साल आयोजित जी-20 सम्मेलन में भारत ने यूक्रेन के राष्ट्रपति को आमंत्रित नहीं किया, जबकि पश्चिम के देशों में आयोजित हर सम्मेलन में जेलेंस्की नजर आते हैं. इस सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति नहीं आए न चीनी राष्ट्रपति. इसके बाद भी जो साझा बयान जारी किया गया, उसका अनुमोदन सभी ने किया. यहां तक की रूस और चीन भी उससे खुश नजर आए थे. भारत की कोशिश रूस-यूक्रेन युद्ध में किसी एक पक्ष के साथ खड़ा होने की नहीं है. वह दोनों के साथ मित्रता बनाए रखता है. वह रूस से तेल खरीदता है तो यूक्रेन की मानवीय मदद करने से पीछे नहीं हटता है.
क्या भारत करेगा मध्यस्थता
भारतीय प्रधानमंत्री की यूक्रेन यात्रा से कई लोगों को इस बात की उम्मीद है कि इससे रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म हो सकता है. लेकिन यह तभी संभव है, जब दोनों देश भारत से मध्यस्थता की अपील करें. लेकिन दोनों में से किसी भी देश ने अभी तक इसको लेकर कोई अपील नहीं की है. इस युद्ध में सबसे बड़ी भूमिका अमेरिका की है. इसलिए युद्ध खत्म कराने में उसकी बड़ी भूमिका हो सकती है. लेकिन अमेरिका की मौजूदा प्रशासन अभी इस दिशा में कोई पहल करता हुआ नहीं दिख रहा है. नवंबर में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के बाद इस दिशा में कोई पहल हो सकती है.
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