मुश्किलों भरे बचपन से लेकर देश को नई ऊंचाइयां दिलाने तक, ऐसा रहा डॉ. मनमोहन सिंह का सफर
जब पहली बार पीएम बनाए जाने का हुआ था ऐलान
2004 के लोकसभा चुनाव की मतगणना तक किसी को अंदाजा नहीं था कि अटल सरकार चुनाव हार सकती है. सभी चुनावी विश्लेषक एनडीए सरकार की वापसी का दावा कर रहे थे. मतगणना के शुरुआती रुझानों में भाजपा पिछड़ी तो लगा कि ये शुरुआती रुझान हैं. बीजेपी वापसी जरूर करेगी, लेकिन वो संभव न हो सका. कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए चुनाव जीत गई. माना जा रहा था कि सोनिया गांधी ही अब प्रधानमंत्री बनेंगी. हालांकि, 1998 में सोनिया गांधी के राजनीति में आते ही विदेशी मूल के मुद्दे को लेकर शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा जैसे कांग्रेस के नेताओं ने पार्टी छोड़ दी और 10 जून 1999 को नई पार्टी बना ली थी. फिर भी चूकि नंबर यूपीए के पक्ष में थे और शरद पवार से लेकर लालू यादव तक सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने को लेकर दावे कर रहे थे, तो लग रहा था कि इस जीत के बाद अब विदेशी मूल का मुद्दा समाप्त हो चला है. बीजेपी के भी ज्यादातर नेता खामोश थे, तभी सुषमा स्वराज और उमा भारती ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को गरमा दिया था. सुषमा स्वराज ने तो यहां तक कह दिया था कि सोनिया गांधी ने पीएम पद की शपथ ली तो अपने केश कटवा लेंगी. मामला फिर बेहद गर्म हो गया था.
फिर भी चूकि नंबर यूपीए के पक्ष में थे और शरद पवार से लेकर लालू यादव तक सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने को लेकर दावे कर रहे थे, तो लग रहा था कि इस जीत के बाद अब विदेशी मूल का मुद्दा समाप्त हो चला है. बीजेपी के भी ज्यादातर नेता खामोश थे, तभी सुषमा स्वराज और उमा भारती ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को गरमा दिया था. सुषमा स्वराज ने तो यहां तक कह दिया था कि सोनिया गांधी ने पीएम पद की शपथ ली तो अपने केश कटवा लेंगी. मामला फिर बेहद गर्म हो गया था.
नटवर सिंह के अनुसार राहुल गांधी ने सोनिया गांधी को उनकी बात मानने के लिए 24 घंटे का वक्त दिया. इसी के साथ उनकी बात न मानने पर किसी हद तक जाने की धमकी दी. राहुल गांधी के यह कहने पर कि वे उन्हें प्रधानमंत्री पद स्वीकार करने से रोकने के लिए हर मुमकिन कदम उठाएंगे, सोनिया गांधी की आंखों में आंसू आ गए. मनमोहन सिंह बिल्कुल चुप थे. प्रियंका ने कहा था ” राहुल कुछ भी कर सकते हैं.” राहुल की जिद ने सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री की कुर्सी ठुकराने के लिए मजबूर कर दिया था. वहीं नीरजा चौधरी ने अपनी किताब How Prime Ministers Decide में लिखा है कि इस घटनाक्रम के कुछ ही दिन बाद नटवर सिंह के अलावा विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भी उन्हें बताया था कि सोनिया गांधी के बच्चे नहीं चाहते कि वे प्रधानमंत्री पद स्वीकार करें, क्योंकि उनकी जिंदगी खतरे में पड़ने की आशंका से वे डरे हुए हैं.
विश्वनाथ प्रताप सिंह उस समय सोनिया गांधी के पक्ष में सरकार बनाने के पक्ष में थे. नीरजा चौधरी से सोमनाथ चटर्जी ने भी विश्वनाथ प्रताप सिंह के कथन की पुष्टि करते हुए कहा था कि हमने तो उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर स्वीकार किया था, लेकिन उनके बच्चे नहीं चाहते थे कि वे इसे स्वीकारें. विश्वनाथ प्रताप सिंह के निकट रहे संतोष भारतीय ने भी अपनी किताब ” विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, सोनिया गांधी और मैं ” में इस प्रसंग का उल्लेख किया है.
देश में आर्थिक सुधारों के जनक रहे हैं मनमोहन सिंह
देश के पहले सिख प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह को भारत में बड़े आर्थिक सुधार का जनक माना जाता है.पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने 1991 में आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू किया था. इस कदम ने प्रभावी रूप से ‘लाइसेंस राज’ का युग खत्म कर दिया. 1991 के उदारीकरण बजट को अभूतपूर्व उपलब्धि माना जाता है. इससे आर्थिक सुधारों के एक नए युग की शुरुआत हुई थी. इस दूरदर्शी कदम ने देश में क्रांति ला दी, मध्यम वर्ग को सशक्त बनाया और लाखों लोगों को गरीबी और हाशिए से ऊपर उठाया.विशेषज्ञ मानते हैं कि 1991 के बजट ने भारत के विकास को गति दी.अपने पहले ही बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत को एक नई दुनिया में पहुंचा दिया. इस दौरान नई औद्योगिक नीति का अनावरण किया गया, जिसने परिवर्तन के साथ निरंतरता पर आधारित भारत के आर्थिक परिवर्तन को प्रेरित किया.डॉ. मनमोहन सिंह ने इस बजट में विदेशी कंपनियों को देश में अपना व्यापार जमाने के लिए एंट्री की इजाजत दी. साथ ही कई नियमों में बदलाव भी किया गया.
आपको बता दें कि 1991 को ऐतिहासिक बजट वाला साल भी कहा जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस बजट से देश की इकोनॉमिक ग्रोथ की रफ्तार को तेज करने का काम किया गया. मनमोहन सिंह ने इस बजट में लाइसेंसी राज को खत्म किया था और आर्थिक उदारीकरण के युद की शुरुआत की थी. मनमोहन सिंह द्वारा पेश किए गए आर्थिक सुधारों ने कंपनी कानून और व्यापार व्यवहार अधिनियम (MRTP) सहित कई कानूनों को उदार बना दिया. 1991 में विदेशी मुद्रा भंडार संकट का सामना करते हुए नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार ने तीन परिवर्तनकारी आर्थिक सुधार – वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण पेश किए थे.
नरेगा से गरीबों को दिया था रोजगार
2004 में जब डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने बतौर प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने गरीबों और ग्रामीण भारत के विकास पर विशेष ध्यान दिया. 2005 में उन्होंने “राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम” (नरेगा) लागू किया. इस योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में रहने वाले हर परिवार को साल में कम से कम 100 दिन मजदूरी की गारंटी दी गई. अगर सरकार 100 दिन का काम नहीं दे पाती थी, तो उसे बेरोजगारी भत्ता देना पड़ता था. इस योजना से ग्रामीण इलाकों में गरीबी कम हुई और लोगों का शहरों की ओर पलायन भी कम हुआ. बाद में इस योजना का नाम बदलकर “महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम” (मनरेगा) कर दिया गया. यह योजना आज भी ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है.
देश को दिया सूचना का अधिकार
वो डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार थी जिसने देश में पहली बार 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI)लागू किया था. उनकी सरकार द्वारा लाया गया ये कानून आम आदमी के लिए निर्णायक साबित हुए. उनकी सरकार के इस कानून ने आम आदमी को सशक्त बनाया था. इस कानून के तहत भारत का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी विभाग से जानकारी मांग सकता है.इससे सरकारी कामों में पारदर्शिता आई और भ्रष्टाचार कम हुआ. सरकारी अधिकारियों को अब पता था कि उनके काम पर जनता की नजर है, इसलिए वे ज्यादा जिम्मेदारी से काम करने लगे.
मनमोहन सिंह ने ऐसे कौन से किए 4 बड़े काम, जिससे देश को बनाया खुद का कर्जदार
बराक ओबामा के साथ पूर्व पीएम मनमोहन सिंह
अमेरिका के साथ परमाणु समझौता कर देश को और बनाया ताकतवर
डॉ. मनमोहन सिंह ने 2008 में अमेरिका के साथ एक ऐतिहासिक “परमाणु समझौता” किया. इस समझौते को “123 समझौता” भी कहा जाता है. इस समझौते के तहत भारत को अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु तकनीक और ईंधन मिलने का रास्ता खुल गया.भारत ने “परमाणु अप्रसार संधि” (NPT) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, फिर भी यह समझौता हुआ. यह डॉ. मनमोहन सिंह की कूटनीतिक सफलता थी. इस समझौते से दुनिया में भारत का कद बढ़ा और भारत को एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता मिली. इस समझौते ने भारत के विकास को नई गति दी. तो ये थे डॉ. मनमोहन सिंह के 4 सबसे बड़े फैसले, जिन्होंने भारत को बदल दिया. वे एक दूरदर्शी नेता थे, जिन्होंने भारत को आर्थिक संकट से निकाला, गरीबों को सशक्त बनाया, प्रशासन में पारदर्शिता लाई और दुनिया में भारत का कद बढ़ाया. उनकी कमी हमेशा महसूस होगी.
पीएम मोदी ने सदन में की थी डॉ. मनमोहन सिंह की तारीफ
बात इसी साल 8 फरवरी 2024 की है, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्यसभा में देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तारीफ की थी. उन्होंने डॉ. मनमोहन सिंह की सराहना करते हुए पीएम मोदी ने उन्हें ‘प्रेरक उदाहरण’ बताया और कहा कि जब भी लोकतंत्र की चर्चा होगी तो उनके योगदान को याद किया जाएगा.राज्यसभा से सेवानिवृत्त हो रहे सदस्यों की विदाई के अवसर पर उच्च सदन को संबोधित करते हुए उन्होंने कांग्रेस की ओर से केंद्र सरकार के खिलाफ ‘ब्लैक पेपर’ जारी किए जाने का स्वागत भी किया और विपक्षी पार्टी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि देश की समृद्धि को नजर ना लगे, इसके लिए ‘काला टीका’ बहुत जरूरी होता है.पीएम मोदी मोदी ने कहा कि मैं विशेष रूप से मनमोहन सिंह जी का स्मरण करना चाहूंगा. छह बार इस सदन में वो अपने मूल्यवान विचारों से और नेता के रूप में भी और प्रतिपक्ष में भी नेता के रूप में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है. मोदी ने कहा कि वैचारिक मतभेदों के कारण कभी बहस के दौरान छींटाकशी हो जाती है लेकिन वह बहुत अल्पकालीन होता है.
Video: PM रहते मनमोहन सिंह की वो आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस, जब उन्होंने कहा- ‘इतिहास मेरे प्रति…’