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देश

जीरो से लेकर आयरन केस रॉकेट तक… दुनिया का क्या-क्या दिया मेरे भारत ने


नई दिल्‍ली:

आर्यभट्ट ने जीरो दिया, तो भारतीय चिकित्सक सुश्रुत ने की थी मोतियाबिंद की पहली सर्जरी. भारत ने ही दुनिया को बताया था कि सूर्य है सौर मंडल का केंद्र न कि पृथ्‍वी. टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों पर पहली बार आयरन केस रॉकेट दाग कर उन्‍हें चौंका दिया था. वुट्ज स्टील भी दुनिया को भारत ने ही दी थी. भारतीय विद्वानों का लोहा शुरुआत से दुनिया मानती रही है और आज भी मानती है. आइए राष्‍ट्रीय विज्ञान दिवस (National Science Day) के अवसर पर आपको बताते हैं कि दुनिया को विकास की राह पर ले जाने के लिए भारतीय विद्वानों का कितना योगदान रहा है.     

जीरो का आइडिया 

आर्यभट्ट ने जीरो (0)  का अविष्‍कार किया था. आर्यभट्ट प्राचीन भारत के एक महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे. उनका जन्म 476 ईस्वी में हुआ था. शून्य का विचार गणित और विज्ञान के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण खोजों में से एक है. यह एक ऐसी अवधारणा है, जिसने हमारी दुनिया को समझने और उसे मापने के तरीके को बदल दिया. 

दशमलव सिस्‍टम भी भारत की देन

दशमलव प्रणाली की खोज का श्रेय प्राचीन भारत को जाता है. दशमलव प्रणाली, जिसे डेसिमल सिस्टम या बेस-10 सिस्टम के नाम से भी जाना जाता है, एक संख्या प्रणाली है जिसमें 10 अंकों का उपयोग किया जाता है. भारतीय गणितज्ञों ने सबसे पहले 0 सहित 10 अंकों का उपयोग करके एक स्थान-मूल्य प्रणाली विकसित की. इस प्रणाली को बाद में अरब व्यापारियों द्वारा यूरोप में लाया गया, जहा यह बड़े स्‍तर पर अपनाई गई.

दुनिया में बज रहा आयुर्वेद का डंका

दुनियाभर के देश आज आयुर्वेद (Ayurveda) का लोहा मानते हैं. आयुर्वेद भारत की एक प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है. इसका इतिहास हजारों साल पुराना है और इसे दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणालियों में से एक माना जाता है. इसमें जड़ी-बूटियों आदि से प्राकृतिक तरीके से इलाज किया जाता है. इसके साइड इफैक्‍ट भी  न के बराबर होते हैं, इसलिए आयुर्वेद दुनिया भर में लोकप्रियता हासिल कर रहा है. 

भारत के अंक संकेतन को अरब देशों ने अपनाया 

अंक संकेतन (Numeral Notaions) संख्याओं को दर्शाने का एक तरीका है. संख्याओं को लिखने के लिए विभिन्न अंक प्रणालियां हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी विशेषताएं और उपयोग हैं. अंक संकेतन को भी भारत ने ही डेवलेप किया था, जिसे बाद में अरब और फिर पश्चिम के देशों ने अपनााया.   

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टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों पर दागे थे आयरन केस रॉकेट 

आयरन केस यानि लोहे के आवरण वाले रॉकेट (Iron Cased Rockets) का आविष्कार टीपू सुल्तान ने 18वीं सदी में किया था. टीपू सुल्तान मैसूर के शासक थे और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में इन रॉकेटों का इस्तेमाल किया था. टीपू सुल्तान के रॉकेटों को “मैसूरियन रॉकेट” के नाम से भी जाना जाता है. इन रॉकेटों में बारूद का इस्तेमाल किया जाता था, जो उन्हें लंबी दूरी तक उड़ने में मदद करता था. टीपू सुल्तान के रॉकेट भारतीय इंजीनियरिंग के एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं और उन्होंने दुनिया भर में रॉकेट तकनीक के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

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फाइबोनैचि संख्याएं जानते थे भारतीय विद्वान 

इस बात के प्रमाण हैं कि फाइबोनैचि से पहले भारतीय विद्वानों को फाइबोनैचि संख्याएं (Fibonacci Numbers) के बारे में जानकारी थी. फाइबोनैचि संख्याएं एक अनुक्रम बनाती हैं, जहा. प्रत्येक संख्या दो पूर्ववर्ती संख्याओं का योग होती है, जो आमतौर पर 0 और 1 से शुरू होती है. इसलिए, अनुक्रम चलता है- 0, 1, 1, 2, 3, 5, 8, 13, 21…

 
बाइनरी नंबर्स…  डिजिटल युग का आधार

बाइनरी नंबर (Binary Numbers), जिसे द्विआधारी संख्या भी कहा जाता है, एक संख्या प्रणाली है जो केवल दो अंकों, 0 और 1 का उपयोग करती है. यह आधुनिक कंप्यूटरों और डिजिटल सिस्टमों में अहम भूमिका निभाती हैं. बाइनरी नंबर सिस्टम डिजिटल युग का आधार है. यह कंप्यूटर और डिजिटल उपकरणों को डेटा को सेव करने  करने संबंधी चीजों में काम आता है. यह भी विश्‍व को भारत की देन है. 

एल्गोरिदम की चक्रवाला विधि से डेटा प्रोसेसिंग हुई आसान

चक्रवाला विधि (Chakravala Method of Algorithms) एक शक्तिशाली उपकरण है, जिसका इस्‍तेमाल कई समस्याओं को हल करने के लिए किया जा सकता है. इसका उपयोग डेटा प्रोसेसिंग, सर्च एल्गोरिदम और गेमिंग जैसे क्षेत्रों में किया जाता है. इसे लूपिंग (Looping) या पुनरावृत्ति (Iteration) के रूप में भी जाना जाता है. एल्गोरिदम को शुरू करने के लिए आवश्यक प्रारंभिक मान और स्थितियां निर्धारित की जाती हैं.

भारत ने सिखाया कैसे मापते हैं? 

शासक माप (Ruler Measurements) भूमि माप की एक प्रणाली है, जिसका उपयोग प्राचीन काल से भारत में भूमि के क्षेत्रफल को मापने के लिए किया जाता रहा है. यह प्रणाली विभिन्न शासकों द्वारा विकसित की गई थी और समय के साथ बदलती रही. प्राचीन भारत में भूमि को मापने के लिए विभिन्न प्रणालियों का उपयोग किया जाता था. इनमें से कुछ प्रणालियां स्थानीय थीं, जबकि कुछ प्रणालियां पूरे देश में उपयोग की जाती थीं.

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भारतीय दार्शनिक कणाद ने दिया परमाणु का सिद्धांत 

परमाणु का सिद्धांत (Theory of Atom) पदार्थ की संरचना और व्यवहार को समझने का एक मूलभूत ढांचा है. यह सिद्धांत बताता है कि सभी पदार्थ परमाणुओं नामक छोटे, अविभाज्य कणों से बने होते हैं. प्राचीन भारतीय दार्शनिक कणाद ने लगभग 600 ईसा पूर्व में ‘परमाणु’ की अवधारणा दी थी.

भारत ने बताया सूर्य है सौर मंडल का केंद्र 

हेलोसेंट्रिक थ्‍योरी (Hellocentric Theory) एक खगोलीय मॉडल है, जो सूर्य को सौर मंडल के केंद्र में रखता है, जबकि पृथ्वी और अन्य ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं. यह जियोसेंट्रिक मॉडल के विपरीत है, जो पृथ्वी को ब्रह्मांड के केंद्र में रखता है. इस थ्‍योरी को भी भारत में ही डेवलेप किया गया था. 

भारत में विकसित हुआ था वुट्ज स्टील 

वुट्ज स्टील (Wootz Steel) एक विशेष प्रकार का क्रूसिबल स्टील है, जो प्राचीन भारत में विकसित हुआ था. यह अपनी अनूठी संरचना और असाधारण गुणों के लिए जाना जाता है, जिसने इसे तलवारों और अन्य हथियारों के निर्माण के लिए एक लोकप्रिय सामग्री बना दिया. वुट्ज स्टील का उत्पादन पहली बार दक्षिण भारत में लगभग 300 ईसा पूर्व शुरू हुआ था. 

जिंक को कैसे गलाएं भारत ने बताया 

जिंक गलाना (Smelting of Zinc) एक महत्वपूर्ण धातुकार्मिक प्रक्रिया है. इसके जरिए ही आधुनिक समाज के लिए आवश्यक जिंक धातु का उत्पादन किया जाता है. इसमें जिंक को उसके अयस्कों से निकाला जाता है. जिंक एक अपेक्षाकृत कम गलनांक वाली धातु है, लेकिन ये प्रक्रिया इसे निकालना आसान बनाती है.

सीमलेस मेटल ग्लोब

सीमलेस मेटल ग्लोब (Seamless metal Globe) एक ऐसा ग्लोब है, जो बिना किसी दिखाई देने वाले सीम या जॉइंट के बनाया जाता है. यह आमतौर पर एक ठोस धातु की गेंद से बनाया जाता है, जिस पर पृथ्वी या अन्य खगोलीय पिंडों की सतह को उकेरा जाता है. सीमलेस मेटल ग्लोब देखने में बहुत सुंदर होते हैं. उनकी चिकनी, सतह उन्हें एक आधुनिक और परिष्कृत रूप देती है. ये ग्लोब पृथ्वी की सतह को दर्शाते हैं, जिसमें महाद्वीप, महासागर और देश शामिल हैं.

प्लास्टिक सर्जरी का विकास भी भारत में

प्लास्टिक सर्जरी (Plastic Surgery) एक शल्य चिकित्सा है, जिसमें मानव शरीर को फिर से जोड़ा या बदला शामिल है. इसे मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बांटा गया है: पुनर्निर्माण सर्जरी और कॉस्मेटिक सर्जरी. यह सर्जरी शरीर के उन हिस्सों को ठीक करने के लिए की जाती है जो दुर्घटना, चोट, बीमारी या जन्मजात दोषों के कारण क्षतिग्रस्त हो गए हैं. ऐसे सबूत मिलते हैं कि पहली प्‍लास्टिक सर्जरी भारत में ही हुई थी. 

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भारत में  हुई थी पहली मोतियाबिंद की सर्जरी 

मोतियाबिंद की सर्जरी (Cataract Surgery) का आविष्कार वास्तव में भारत में हुआ था. प्राचीन भारतीय चिकित्सक सुश्रुत को मोतियाबिंद की सर्जरी के बारे में जानकारी थी. मोतियाबिंद एक ऐसी स्थिति है जिसमें आंख का प्राकृतिक लेंस धुंधला हो जाता है. मोतियाबिंद सर्जरी में सर्जन कॉर्निया में एक छोटा चीरा लगाता है और अल्ट्रासाउंड तरंगों का उपयोग करके मोतियाबिंद को छोटे टुकड़ों में तोड़ देता है. फिर, टुकड़ों को आंख से हटा दिया जाता है और एक आर्टिफिशियल लेंस लगाया जाता है.

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क्‍यों मनाया जाता है विज्ञान दिवस?

देश में 28 फरवरी को विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है. यही वह दिन है जब देश के महान वैज्ञानिक सी वी रमन ने ‘रमन प्रभाव’ का आविष्कार किया था, जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. महान भौतिक विज्ञानी सर चंद्रशेखर वेंकट रमन ने 28 फरवरी 1928 को भौतिकी के गंभीर विषय में एक महत्वपूर्ण खोज की थी. पारदर्शी पदार्थ से गुजरने पर प्रकाश की किरणों में आने वाले बदलाव पर की गई इस महत्‍वपूर्ण खोज के लिए 1930 में उन्हें भौतिकी के नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया. वह यह पुरस्कार ग्रहण करने वाले भारत ही नहीं, बल्कि एशिया के पहले वैज्ञानिक थे. इस खोज के सम्‍मान में 1986 से इस दिन को राष्‍ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाने का चलन है. वर्ष 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मान भारत रत्‍न से नवाजा.


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