‘गांधी परिवार ने बनाया और बिगाड़ा मेरा राजनीतिक करियर’: कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर
नई दिल्ली:
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने एक इंटरव्यू के दौरान गांधी परिवार को लेकर बड़ा बयान दिया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि ” पिछले 10 सालों से मुझे सोनिया गांधी से मिलने का मौका नहीं मिला है”. उन्होंने कहा कि मुझे राहुल गांधी के साथ सार्थक समय बिताने का, एक बार को छोड़कर, कोई अवसर नहीं मिला. जबकि प्रियंका गांधी से बातचीत फोन कॉल्स पर होती रही. उन्होंने कहा कि इसलिए मैं उनके (प्रियंका गांधी) संपर्क में हूं.
EXCLUSIVE | VIDEO: “For 10 years, I was not given an opportunity to meet Sonia Gandhi one-on-one. I was not given an opportunity, except once, of spending any meaningful time with Rahul Gandhi. And I have not spent time with Priyanka except on one occasion, no, two occasions. She… pic.twitter.com/A40wVsV0vd
— Press Trust of India (@PTI_News) December 15, 2024
“बीजेपी में नहीं जाऊंगा”
मणिशंकर अय्यर ने साफ किया कि चाहे कुछ भी हो जाए वो बीजेपी में शामिल नहीं होने वाले हैं. उन्होंने कहा कि मेरे जीवन की विडंबना यह है कि मेरा राजनीतिक करियर गांधी परिवार ने बनाया और गांधी परिवार ने ही बिगाड़ा. मैं अभी भी पार्टी का सदस्य हूं. मैं कभी पार्टी नहीं बदलूंगा और निश्चित रूप से बीजेपी में नहीं जाऊंगा.”
उन्होंने एक घटना को भी याद किया जब उन्हें राहुल गांधी को जन्मदिन की बधाई देने के लिए प्रियंका गांधी को फोन करना पड़ा था. उन्होंने बताया कि राहुल गांधी का जन्मदिन था. मैंने प्रियंका गांधी को फोन कर राहुल गांधी को मेरी और से जन्मदिन की बधाई देने को कहा था. प्रियंका गांधी ने मुझसे कहा कि आप सीधा उन्हें क्यों नहीं फोन कर रहे हैं. मैंने उनसे कहा कि क्योंकि में पार्टी से सस्पेंड हो गया हूं. ऐसे मैं अपने नेता से बात नहीं कर सकता. मणिशंकर अय्यर ने कहा कि ये बात तब की है जब प्रियंका गांधी राजनीति में नहीं आई थी.
मनमोहन को राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए था: मणिशंकर अय्यर
मणिशंकर अय्यर ने अपनी नई पुस्तक में कहा है कि 2012 में जब राष्ट्रपति पद रिक्त हुआ था तब प्रणब मुखर्जी को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA-2) सरकार की बागडोर सौंपी जानी चाहिए थी और मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए था. अय्यर (83) ने पुस्तक में लिखा है कि यदि उस समय ऐसा किया गया होता तो UPA सरकार ‘‘शासन के पंगु बनने” की स्थिति में नहीं पहुंचती.
इस वजह से हारी UPA
उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में बनाए रखने और प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन भेजने के निर्णय ने UPA के तीसरी बार सरकार गठित करने की संभावनाओं को ‘‘खत्म” कर दिया. अय्यर ने अपनी आगामी पुस्तक ‘ए मैवरिक इन पॉलिटिक्स’ में ये विचार रखे हैं. इस पुस्तक को ‘जगरनॉट’ ने प्रकाशित किया है.
अय्यर ने लिखा, ‘‘2012 में प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) को कई बार ‘कोरोनरी बाईपास सर्जरी’ करानी पड़ी. वह शारीरिक रूप से कभी पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो पाए. इससे उनके काम करने की गति धीमी हो गई और इसका असर शासन पर भी पड़ा. जब प्रधानमंत्री का स्वास्थ्य खराब हुआ, लगभग उसी समय कांग्रेस अध्यक्ष भी बीमार पड़ी थीं लेकिन पार्टी ने उनके स्वास्थ्य के बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की.”
उन्होंने कहा कि जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि दोनों कार्यालयों – प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष – में गतिहीनता थी, शासन का अभाव था जबकि कई संकटों, विशेषकर अन्ना हजारे के ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ आंदोलन से या तो प्रभावी ढंग से निपटा नहीं गया या फिर उनसे निपटा ही नहीं गया.
उन्होंने लिखा, ‘व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना था कि जब 2012 में राष्ट्रपति पद खाली हुआ था तो प्रणब मुखर्जी को सरकार की बागडोर सौंपी जानी चाहिए थी और डॉ. मनमोहन सिंह को भारत का राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए था.”
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