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गीता को बचपन से ही पढ़ना चाहिए, ये सिर्फ बुढ़ापे में पढ़ा जाने वाला ग्रंथ नहीं : RSS चीफ मोहन भागवत


बेंगलुरु:

राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा कि गीता को बचपन से ही पढ़ना चाहिए, यह बुढ़ापे में पढ़ने का ग्रंथ नहीं हैं. आरएसएस प्रमुख रविवार को कर्नाटक के उडुपी स्थित श्री कृष्‍ण मठ पहुंचे थे, जहां पर उन्‍होंने यह कहा. इस दौरान भागवत ने मठ के सुगुनेंद्र तीर्थ स्‍वामी से भी मुलाकात की. उन्‍होंने कहा, “सनातन काल से जो चिंतन हैं, वह पूर्णता तक पहुंचा है. उस चिंतन का सारांश गीता है.”

साथ ही उन्‍होंने कहा, “वो इतना संपूर्ण है कि उससे पहले का सारा चिंतन और उसके बाद सृष्टि-प्रलय तक होने वाला सब आध्‍यात्मिक चिंतन का गीता में समावेश है.”

गीता रोज के जीवन में पथ प्रदर्शक है : भागवत 

भागवत ने कहा, “भगवद्गीता के बाद भारत और विश्‍व में जो भी चिंतन धाराएं आई हैं, उसका भी अध्‍ययन करते हो तो ध्‍यान में आता है कि यह सब गीता में पहले से है. गीता रोज के जीवन में पथ प्रदर्शक है. 

उन्‍होंने कहा, “यह बुढ़ापे में पढ़ने का ग्रंथ नहीं है. बचपन से ही उसका संस्‍कार मिलना चाहिए तो आदमी जीवन में यशस्‍वी और सार्थक बनकर जी सकता है.”

जनसंख्‍या पर बयान की हुई थी काफी चर्चा 

मोहन भागवत ने हाल ही में जनसंख्‍या को लेकर एक बयान दिया था, जिसकी काफी चर्चा हुई थी. भागवत ने अपने बयान में परिवार के महत्व पर जोर दिया था और कहा था कि अगर किसी समाज की जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से नीचे चली जाती है, तो वह समाज अपने आप नष्ट हो जाएगा. उन्‍होंने कहा था कि परिवार समाज का हिस्सा है और हर परिवार एक इकाई है. साथ ही कहा कि हमारे देश की जनसंख्या नीति, जो 1998 या 2002 के आसपास तय की गई थी, कहती है कि जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से नीचे नहीं होनी चाहिए. हमें दो से अधिक अर्थात तीन (जनसंख्या वृद्धि दर) की आवश्यकता है, यही जनसंख्या विज्ञान कहता है. यह संख्या महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे (समाज को) कायम रहना चाहिए. 

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