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सरकार संसद के इसी सत्र में पेश कर सकती है वन नेशन वन इलेक्शन बिल, समझिए कितना बदल जाएगा भारत का चुनाव


नई दिल्ली:

केंद्र सरकार संसद के शीतकालीन सत्र या बजट सत्र के दौरान ‘एक देश, एक चुनाव’ (One Nation, One Election) विधेयक पेश कर सकती है. इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजा जा सकता है. एक देश, एक चुनाव पर रामनाथ कोविंद समिति की रिपोर्ट को मोदी कैबिनेट से पहले ही मंजूरी मिल चुकी है. सरकार चाहती है कि इस बिल पर आम सहमति बने. इसलिए सभी स्टैक होल्डरों से चर्चा की जानी चाहिए. इसलिए JPC वन नेशन वन इलेक्शन बिल को लेकर सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से चर्चा करेगी. सरकार को उम्मीद है कि इस बिल पर आम सहमति बन जाएगी. 

‘एक देश, एक चुनाव’ मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ यानी एक देश एक चुनाव का वादा किया था. मोदी कैबिनेट ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ (One Nation One Election) प्रस्ताव को 18 सितंबर को मंजूरी दे दी थी. 

आइए कब से लागू हो सकता है वन नेशन वन इलेक्शन? जिन विधानसभाओं का कार्यकाल पूरा नहीं हुआ है, उनका क्या होगा? वन नेशन वन इलेक्शन के लागू होने के बाद देश में चुनाव की प्रक्रिया कितनी बदल जाएगी:-

वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर सरकार और विपक्ष के क्या हैं तर्क?
सरकार पिछले कुछ समय से एक साथ चुनाव कराने पर जोर दे रही है. सरकार का तर्क है कि मौजूदा इलेक्शन सिस्टम समय, पैसे और वर्कफोर्स को बर्बाद कर रही है. चुनाव से पहले घोषित आदर्श आचार संहिता से विकास के कामों में ब्रेक लग जाता है. एक साथ चुनाव कराने से समय पैसे और वर्कफोर्स की बचत होगी. विकास के काम बिना रुकावट के पूरे किए जा सकेंगे.

जबकि, विपक्ष ने सरकार के इन तर्कों को अव्यावहारिक बताया है. विपक्षी दलों ने राज्य में चुनाव कराने में चुनाव आयोग के सामने आने वाली तार्किक चुनौतियों की ओर इशारा किया है.

2 सितंबर 2023 को हुआ था कोविंद कमिटी का गठन
वन नेशन वन इलेक्शन का प्रोसेस तय करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी, इसमें 8 सदस्य थे. कोविंद कमिटी (Ramnath Kovind Committee) का गठन 2 सितंबर 2023 को किया गया था. कमिटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. कमिटी ने सभी विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक बढ़ाने का सुझाव दिया है. 

कोविंद कमिटी ने क्या दिए सुझाव?
-कोविंद कमिटी ने सुझाव दिया कि सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए.
-पहले फेज में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं. दूसरे फेज में 100 दिनों के अंदर निकाय चुनाव कराए जा सकते हैं.
-हंग असेंबली, नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं.
-इलेक्शन कमीशन लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों की सलाह से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आई कार्ड तैयार कर सकता है.
-कोविंद पैनल ने एकसाथ चुनाव कराने के लिए डिवाइसों, मैन पावर और सिक्योरिटी फोर्स की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश भी की है.

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कोविंद कमिटी में कौन-कौन?
वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 2 सितंबर 2023 को कमिटी बनाई गई थी. कोविंद की कमिटी में गृह मंत्री अमित शाह, पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद, जाने माने वकील हरीश साल्वे, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, पॉलिटिकल साइंटिस्ट सुभाष कश्यप, पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त(CVC) संजय कोठारी समेत 8 मेंबर हैं. केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल कमिटी के स्पेशल मेंबर बनाए गए हैं.

कैसे तैयार हुई रिपोर्ट?
कमिटी ने इसके लिए 62 राजनीतिक पार्टियों से संपर्क किया. इनमें से 32 पार्टियों ने वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया. वहीं, 15 दलों ने इसका विरोध किया था. जबकि 15 ऐसी पार्टियां भी थीं, जिन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. 191 दिन की रिसर्च के बाद कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी. कमिटी की रिपोर्ट 18 हजार 626 पेज की है.

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किन देशों से लिया कौन सा रेफरेंस?
-वन नेशन वन इलेक्शन के लिए कई देशों के संविधान का एनालिसिस किया गया. कोविंद कमिटी ने स्वीडन, जापान, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका, बेल्जियम, फिलीपिंस, इंडोनेशिया के इलेक्शन प्रोसेस की स्टडी की. 
-दक्षिण अफ्रीका में अगले साल मई में लोकसभाओं और विधानसभाओं के इलेक्शन होंगे. जबकि स्वीडन इलेक्शन प्रोसेस के लिए आनुपातिक चुनावी प्रणाली यानी Proportional Electoral System अपनाता है. 
-जर्मनी और जापान की बात करें, तो यहां पहले पीएम का सिलेक्शन होता है, फिर बाकी चुनाव होते हैं. 
-इसी तरह इंडोनेशिया में भी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव साथ में होते हैं.

वन नेशन वन इलेक्शन के लिए कौन सी पार्टियां तैयार?
वन नेशन वन इलेक्शन का BJP, नीतीश कुमार की JDU, तेलुगू देशम पार्टी (TDP), चिराग पासवान की LJP ने समर्थन किया है.  इसके साथ ही असम गण परिषद, मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) और शिवसेना (शिंदे) गुट ने भी वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया है.

किन पार्टियों ने विरोध किया?
वन नेशन वन इलेक्शन का विरोध करने वाली सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है. इसके अलावा समाजवादी पार्टी (SP), आम आदमी पार्टी (AAP), सीपीएम (CPM) समेत 15 दल इसके खिलाफ थे. जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) समेत 15 दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन पर कोई जवाब नहीं दिया.

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क्या इससे पहले भारत में एक साथ चुनाव हुए? 
हां ऐसा हुआ है. भारत की आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए गए थे. हालांकि, 1968 और 1969 में कई राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल समय से पहले खत्म कर दिया गया. 1970 में इंदिरा गांधी ने पांच साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही लोकसभा को भंग करने का सुझाव दिया. इससे उन्होंने भारत में एक साथ चुनाव कराने की परंपरा को भी तोड़ दिया. जबकि मूल रूप से 1972 में लोकसभा के चुनाव होने थे. अब मोदी सरकार फिर से इसे लागू करने की कोशिश में है.

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किन राज्यों की विधानसभाओं का कम हो सकता है कार्यकाल?
-वन नेशन वन इलेक्शन लागू हुआ तो उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब व उत्तराखंड का मौजूदा कार्यकाल 3 से 5 महीने घटेगा. 
-गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा का कार्यकाल भी 13 से 17 माह घटेगा. 
-असम, केरल, तमिलनाडु, प. बंगाल और पुडुचेरी मौजूदा कार्यकाल कम होगा.

संसद में बिल को पास कराना कितना आसान और कितना मुश्किल?
सरकार के लिए आम सहमति के अभाव में मौजूदा इलेक्शन के सिस्टम को बदलना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा. ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ को लागू करने में संविधान में संशोधन के लिए कम से कम 6 विधेयक शामिल होंगे. सरकार को संसद में दो-तिहाई बहुमत की जरूरत पड़ेगी. NDA के पास संसद के दोनों सदनों यानी लोकसभा और राज्यसभा में साधारण बहुमत है. लेकिन, किसी भी सदन में दो-तिहाई बहुमत हासिल करना एक मुश्किल काम हो सकता है.

राज्यसभा की 245 सीटों में से NDA के पास 112 सीटें हैं. विपक्षी दलों के पास 85 सीटें हैं. दो-तिहाई बहुमत के लिए सरकार को कम से कम 164 वोट चाहिए.

यहां तक कि लोकसभा में NDA को मुश्किलें आ सकती हैं. अभी NDA के पास 545 में से 292 सीटें हैं. लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत का आंकड़ा 364 है. लेकिन, स्थिति गतिशील हो सकती है, क्योंकि बहुमत की गिनती सिर्फ उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के संदर्भ में की जाएगी.

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वन नेशन वन इलेक्शन की क्या होंगी चुनौतियां?
-वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर संघवाद की चिंता भी है. कुछ जानकारों का कहना है कि इससे भारत की राजनीतिक व्यवस्था के संघीय ढांचे पर असर पड़ेगा. राज्य सरकारों की स्वायत्तता कम होगी. विधि आयोग भी मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था में एक साथ चुनाव की व्यावहारिकता पर सवाल उठा चुका है.

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-व्यावहारिक तौर पर देखा जाए तो एक साथ चुनाव कराने में भारी मात्रा में संसाधनों की ज़रूरत पड़ेगी, जिसका इंतजाम करना चुनाव आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती है. एक साथ चुनाव कराने के लिए बड़ी मात्रा में EVM और ट्रेंड लोगों की ज़रूरत पड़ेगी. ताकि, पूरी चुनावी प्रक्रिया ठीक से पूरी की जा सके.

-वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व का भी सवाल है. अक्सर होने वाले चुनावों के ज़रिए जनता समय-समय पर अपनी पसंद तय कर सकती है, लेकिन अगर सिर्फ 5 साल बाद ऐसा होगा, तो जनता की इस पसंद को ज़ाहिर करने में दिक्कत आएगी.

-इससे एक पार्टी के प्रभुत्व का ख़तरा बढ़ जाएगा. कई अध्ययन बताते हैं कि जब भी एक साथ चुनाव होते हैं, तो एक ही पार्टी के राष्ट्रीय और राज्य चुनावों के जीतने की संभावना बढ़ जाती है. जिससे स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों में घालमेल हो जाता है. 

-वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर कई कानूनी पेचीदगियां हैं. कई जानकारों का कहना है कि एक देश एक चुनाव के कानून को कई संवैधानिक सिद्धांतों पर भी खरा उतरना पड़ेगा.

2009 से अब तक कितनी बार हो चुकी चुनावी प्रक्रिया?
2009 से अब तक लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए निर्वाचन आयोग 34 बार चुनाव प्रक्रिया पूरी कर चुका है. इनमें से कई बार लोकसभा और कई विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए हैं या कई बार अलग-अलग कराए गए हैं. इन दिनों ही हरियाणा और जम्मू-कश्मीर की चुनाव प्रक्रिया एक साथ हो रही है. अगर एक देश, एक चुनाव होता है तो ये चुनाव प्रक्रिया पांच साल में एक ही बार होगी या फिर बीच में कुछ विधानसभाएं भंग हुईं, तो उतनी बार चुनाव होंगे.

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