भोपाल गैस राहत अस्पतालों में डॉक्टर-नर्सों के आधे पद खाली, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भी नहीं है परवाह
भोपाल :
भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के दर्द को बताने वाली एक मार्मिक मूर्ति कुख्यात यूनियन कार्बाइड कारखाने के पास ही खड़ी है. इसमें एक मां ने अपने बच्चे को खुद से चिपका रखा है. डच कलाकार रूथ वॉटरमैन ने 1985 में इस मूर्ति को बनाया था. नाजी गैस चैंबर की त्रासदी और उसमें अपने माता-पिता की मौत से आहत होकर उन्होंने इस मूर्ति को बनाया था. चालीस साल के बाद भी भोपाल गैस त्रासदी से बचे हजारों लोग पीड़ा झेल रहे हैं और अपर्याप्त चिकित्सा देखभाल के कारण उनका स्वास्थ्य बिगड़ रहा है. सुप्रीम कोर्ट और मध्य प्रदेश के हाई कोर्ट द्वारा कर्मचारियों की नियुक्ति के आदेश के बावजूद गैस राहत अस्पतालों में डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ के लगभग आधे आवंटित पद खाली हैं.
बिना किसी स्पष्टीकरण के रुक गई चयन प्रक्रिया
सूत्र बताते हैं कि कुछ डॉक्टरों को कैबिनेट मंत्री ने बताया कि उनका चयन आदेश अमान्य है. डॉ. प्रताप सिंह की पत्नी का चयन किया गया था, उन्होंने बताया कि कई डॉक्टरों ने प्रतिनियुक्ति के लिए आवेदन किया था. हालांकि चयन प्रक्रिया बिना किसी स्पष्टीकरण के रुक गई.
हाई कोर्ट के 30 नवंबर 2023 के निर्देश में रिक्तियों को भरने में विफल रहने पर शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की बात कही गई थी. इसके बावजूद बहुत कम प्रगति हुई है. स्वास्थ्य विभाग के 16 मई के विज्ञापन में केवल 15 डॉक्टरों की नियुक्ति हुई और उस सूची को भी रोक दिया गया.
विशेषज्ञ डॉक्टरों के नहीं होने से आती है परेशानी
एनेस्थिसियोलॉजिस्ट सहित विशेषज्ञ डॉक्टरों के नहीं होने से गैस राहत अस्पतालों में सर्जिकल प्रक्रियाओं में बाधा आती है. चिकित्सा मंत्री राजेंद्र शुक्ला ने कहा, “गैस राहत अस्पतालों को नियमित नियुक्तियां मिलती हैं. हमारा लक्ष्य इन मुद्दों को हल करना है.” वहीं राज्य मंत्री विजय शाह ने कहा, “आठ अस्पतालों में पंद्रह डॉक्टरों की नियुक्ति की गई है और दस दिनों के भीतर और नियुक्तियां की जाएंगी.”
भोपाल गैस त्रासदी झेल चुके लोगों ने ऐसे बयां किया दर्द
आरिफ नगर की रहने वाली नूरजहां गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही हैं. उन्होंने याद करते हुए कहा, “मेरा छोटा बेटा गैस के कारण मर गया, वह सिर्फ दो साल का था.” उन्होंने कहा, “अब, मुझे घुटनों में दर्द, मधुमेह और रक्तचाप की समस्या है. अस्पतालों में लंबी कतारें हैं, कोई डॉक्टर नहीं है, और कोई दवा नहीं है.”
एक निजी अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट दिखाते हुए एक अन्य महिला कम्मो बेगम ने कहा, “मैं सिरदर्द और चलने में कठिनाई से पीड़ित हूं. सरकारी अस्पताल में घंटों इंतजार करना मेरी क्षमता से परे है.”
त्रासदी में अपना पूरा परिवार खोने वाली मीना पंथी ने अपनी निराशा साझा करते हुए कहा, “मुझे एड़ी में दर्द और सांस लेने में तकलीफ है. गैस राहत अस्पताल केवल दूर से दवाएं लिखता है, वे कभी भी पूरी जांच नहीं करते हैं.”