क्या भारत ने कर दी पाकिस्तान की हवा खराब? समझिए दावे में क्यों कम है दम
India Hands In Pakistan Air Pollution: पाकिस्तान (Pakistan) अनोखा देश बनता जा रहा है. इमरान खान (Imran Khan) के जमाने में उनके मंत्री हुआ करते थे शेख रशीद (Sheikh Rasheed Ahmad). उनके ‘पाव-पाव भर’ के एटम बम तो याद ही होंगे आपको और इमरान खान का “घबराना नहीं है” तो सुपरहिट था. अब नई सरकार है. उसके प्रधानमंत्री डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) को अमेरिका का राष्ट्रपति बनने की बधाई देते हैं तो उनपर अपने ही देश के कानून तोड़ने के आरोप लग जाते हैं. दरअसल, शहबाज शरीफ (Shehbaj Sharif) ने एक्स पर ट्रंप को बधाई दी, लेकिन एक्स पाकिस्तान में प्रतिबंधित है. शहबाज ने ट्रंप को एक्स पर बधाई इसलिए दी ताकि पूरी दुनिया उसे पढ़ सके खासकर डोनाल्ड ट्रंप तक बात पहुंचे, लेकिन वे यह भूल गए कि एक्स पर पाकिस्तान में प्रतिबंध लगा हुआ है. अब इस पर बवाल मचा हुआ है. इसी तरह पाकिस्तान में स्मॉग छाने और वायु प्रदूषण बढ़ने पर पाकिस्तानी पंजाब की सूचना मंत्री आजमा बोखारी ने आरोप लगाया है कि भारत से आने वाली हवाएं लाहौर की वायु गुणवत्ता खराब कर रही हैं. इससे पहले ऐसा ही आरोप इमरान की पर्यावरण राज्य मंत्री जरताज गुल वजीर भी 2019 में लगा चुकी हैं. उन्होंने तो इसे भारत पर स्मॉग को हथियार की तरह पाकिस्तान के खिलाफ इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था.
पाकिस्तान की सत्ता बदली, सोत नहीं
जाहिर है पाकिस्तान में सत्ता बदलती है पर सोच नहीं. वहां के नेता पाकिस्तान की सारी परेशानियों का ठीकरा भारत पर फोड़ सत्ता का आनंद लेते हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो आजमा बोखारी कम से कम अपने ही देश के सबसे बड़े मीडिया संस्थान डॉन में छपे लेख को याद कर लेतीं. तब डॉन ने एक स्टोरी प्रकाशित की थी और अपनी तब की मंत्री जरताज गुल वजीर को बताया था कि साल 2005 में पाकिस्तान क्लीन एयर एक्शन प्लान (पीसीएपी) शुरू किया गया था, सरकारों की नीतियों के कारण पीसीएपी कभी सफल नहीं हुआ. मई 2018 में जारी स्मॉग आयोग की सिफारिशों का भी यही हश्र होता दिख रहा है, क्योंकि पंजाब का पर्यावरण संरक्षण विभाग (ईपीडी) दो साल बाद भी आवश्यक संख्या में वायु-गुणवत्ता मॉनिटर (एक्यूएमएस) खरीदने में विफल रहा है.पंजाब को आवश्यक डेटा एकत्र करने में सक्षम बनाने के लिए कम से कम 240 एक्यूएमएस की आवश्यकता है. हालांकि, वर्तमान में महज पांच हैं.
पाकिस्तानी मीडिया संस्थान ने बताया था झूठा
डॉन ने ये भी बताया था कि शिकागो विश्वविद्यालय के वायु-गुणवत्ता जीवन सूचकांक की गणना है कि यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन के वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों को पूरा किया जाता है तो लाहौर के नागरिकों की जीवन प्रत्याशा 5.1 वर्ष बढ़ जाएगी. अगर पंजाब को धुंध और खराब वायु गुणवत्ता के खिलाफ अपनी लड़ाई में सफल होना है, तो उसे कुछ गिने-चुने लोगों को नोटिस जारी करने या भारत पर जहरीली हवा को दोष देने जैसे सतही कार्यों को करने के बजाय साक्ष्य-आधारित नीति दृष्टिकोण बनानी होगी. डॉन ने आगे लिखा की राजनीतिक नेतृत्व को सोशल मीडिया पर बयानबाजी और गलत सूचना फैलाने के बजाय इस मुद्दे को हल करने की जरूरत है. संकट की मांग है कि नीति निर्माण, निगरानी और मूल्यांकन के लिए पर्यावरण विशेषज्ञों को साथ लिया जाए और नौकरशाहों को केवल नीति कार्यान्वयन का काम सौंपा जाए.
साल भर खराब रहती है हवा
हालांकि, पाकिस्तान सरकार ने अब तक वायु गुणवत्ता का इलाज इस तरह से किया है कि वह मानकर चलता है कि ये एक मौसमी मुद्दा है, जो अक्टूबर में शुरू होता है और जनवरी तक चलता है. पीएक्यूआई द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि लाहौर पूरे साल खराब वायु गुणवत्ता से ग्रस्त रहता है. नागरिक पूरे वर्ष खराब हवा में सांस लेते हैं, जो दिसंबर और जनवरी में खतरनाक स्तर तक बिगड़ जाती है. तापमान, हवा, सापेक्ष आर्द्रता और वर्षा जैसे कारक किसी भी वातावरण में वायु गुणवत्ता के स्तर को प्रभावित करते हैं. हालांकि, यह स्वीकार करने की जरूरत है कि लाहौर खुद शहर को पूरे साल प्रदूषित रखने के लिए पर्याप्त उत्सर्जन पैदा करता है. इसका एकमात्र अपवाद मानसून के महीने प्रतीत होते हैं, जब लगातार बारिश के दौर प्रदूषकों को हवा में इकट्ठा होने से रोकते हैं.
कलह से बचने को कहा था
डॉन के अनुसार, पर्यावरण विशेषज्ञों ने बार-बार तर्क दिया है कि फसल जलाना खराब वायु गुणवत्ता का एकमात्र या सबसे बड़ा कारण नहीं है, लेकिन ईपीडी पंजाब इसे एक बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश करता रहा है. सबसे हालिया उदाहरण नासा के सैटेलाइट तस्वीरें हैं. ये बताती हैं कि भारत पर आरोप लगाना गलत है. खुद लाहौर और पंजाब के किसान अपने खेतों में पराली जला रहे हैं.यह भी देखा जा सकता है कि हर साल मई में रबी फसल के मौसम के अंत में भारत और पाकिस्तान में इसी अनुपात में पराली जलाई जाती है, लेकिन हवा की गुणवत्ता प्रभावित नहीं होती है जैसा कि पाकिस्तान की मंत्री दावा कर रही हैं. यह दावा कि भारत में फसल जलाने से लाहौर में धुंध आती है, न केवल बिना सबूत के हैं, बल्कि यह बहुत हल्के हैं, जो संकट से निपटने के लिए आवश्यक वैज्ञानिक समझ की कमी को दर्शाता है.यह दोनों देशों में और कलह पैदा करने वाला है.
पाकिस्तान को सच पता है
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) और पंजाब के कृषि विभाग के बीच सहयोग से प्रकाशित आर-स्मॉग रिपोर्ट इस बात का एक बड़ा उदाहरण है कि अगर विभाग कुशलता से काम करते हैं तो क्या हासिल किया जा सकता है. अतीत में, विश्व बैंक की मदद से इसी तरह का एक डाटा तैयार किया गया था, जिसने पाकिस्तान में बिगड़ती वायु गुणवत्ता को रोकने के लिए आवश्यक नीतिगत कार्रवाइयों को विस्तार से बताया था.ये दोनों अध्ययन, पराली जलाने से ज्यादा वायु प्रदूषण के पीछे सबसे बड़ा कारण परिवहन क्षेत्र को मानते हैं. हालांकि दोनों अध्ययनों में अलग-अलग पद्धतियां और अध्ययन क्षेत्र थे, लेकिन वे कृषि स्रोतों को अनुपात में तीसरा सबसे बड़ा कारण मानते हैं.
ये हैं मुख्य कारण
पाकिस्तान का परिवहन, बिजली और उद्योग क्षेत्रों में उत्सर्जन पर बहुत कम नियंत्रण है. पर्यावरण विभागों को वाहन और औद्योगिक उत्सर्जन जांच का काम सौंपा जाता है, लेकिन उत्सर्जन को केवल उन्हें रोककर नियंत्रित किया जा सकता है. विश्व बैंक के अध्ययन में कहा गया है कि लाहौर और पाकिस्तान के अन्य शहरों में पीएम 2.5 उत्सर्जन का कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) उत्सर्जन के साथ बहुत मजबूत संबंध है, जिसका अर्थ है कि दोनों का एक ही स्रोत है. साक्ष्य हैं कि स्वच्छ हवा की लड़ाई में खराब ईंधन की गुणवत्ता संभावित खलनायक है.ईंधन की गुणवत्ता बिजली और उद्योग क्षेत्रों को भी प्रभावित करती है. थर्मल पावर प्लांटों में बिजली उत्पादन के लिए इस्तेमाल होने वाले फर्नेस ऑयल में सल्फर की मात्रा तीन प्रतिशत तक हो सकती है. लाहौर के पास कम से कम आठ थर्मल पावर प्लांट हैं, जो अधिक स्वच्छ प्राकृतिक गैस के बजाय फर्नेस ऑयल का उपयोग करते हैं.
ये कर पाएगा पाकिस्तान
साहीवाल कोल पावर प्लांट से पंजाब में बिजली क्षेत्र के उत्सर्जन में वृद्धि होने की संभावना है. परिणाम उत्सर्जन के बड़े हॉटस्पॉट हैं, जिन्हें उपग्रह के माध्यम से देखा जा सकता है. हालांकि, शहरी क्षेत्रों में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण डीजल वाहन हैं.पाकिस्तान ने 1998 में पाक-2 ईंधन-गुणवत्ता मानकों (यूरो -2 के बराबर) को अपनाया, लेकिन देश भर में इन मानकों के समान कार्यान्वयन का मूल्यांकन कभी नहीं किया गया. यूरो-2 डीजल में सल्फर का 500 पीपीएम (भाग प्रति मिलियन) होता है. दुनिया भर के देश इस समय यूरो-5 और यूरो-6 मानकों की ओर बढ़ रहे हैं. इसी तरह, भारत स्टैंडर्ड-4 का उपयोग करता है, जो यूरो-4 के बराबर है, जिसमें 50 पीपीएम सल्फर होता है.विडंबना यह है कि पाकिस्तान अब भी यूरो-2 का इस्तेमाल कर रहा है.