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ट्रेन-स्टेशनों पर खोजे संगीत के हुनरबाज़, हेमलता ने भिखारियों को ऐसे बना दिया स्ट्रीट आर्टिस्ट


मुंबई:

दुनिया में हुनरमंद लोगों की कोई कमी नहीं है बस जरूरत है तो उन्हें ढूंढकर तरासने की. हुनरमंद लोगों को नई पहचान देने की ऐसी ही कोशिश मुंबई की हेमलता तिवारी कर रही है. हेमलता भिखारियों को खोजकर उन्हें आर्टिस्ट बनाने में लगी है. हेमलता स्वराधार नाम का एक बैंड चला रही है. जिसमें लोकल ट्रेन और प्लेटफ़ॉर्म पर गाना गाने वाले, भीख़ मांगने वाले कलाकार शामिल हैं. हेमलता मुफलिसी में गुजर-बसर कर रहे गाने-बजाने वालों को ढूंढकर उन्हें संगीत की शिक्षा की ट्रेनिंग दे रही है. हेमलता की इस अनोखी पहल की बदौलत लोग अब ना सिर्फ भिखारियों को आर्टिस्ट के नजरिए से देख रहे हैं बल्कि उन्हें सम्मान भी मिल रहा है. मुंबई की भागती दौड़ती लोकल में गाने-बजाने वाले ये आर्टिस्ट बड़े टीवी चैनलों के मंच पर, बड़े फ़िल्म स्टार्स के सामने परफॉर्म कर रहे हैं.

हेमलता ने भिखारियों में ढूंढा कलाकार

मुंबई के दादर स्टेशन पर बांसुरी बजाते इरशाद भले ही देख नहीं सकते लेकिन अपनी कला से दिल जीतने में उनका कोई सानी नहीं. BA थर्ड ईयर की छात्रा संगीता काले भी देखने में असमर्थ हैं, लेकिन ट्रेनों और स्टेशनों पर अपनी आवाज़ से आर्थिक सहायता जुटाकर आगे की शिक्षा पाना चाहती हैं. दौड़ती ट्रेनों में भजन क़व्वाली गाते फ़तहराम और धरम गोस्वामी. रिश्ते में भाई हैं और उनकी पीढ़ियों भी संगी से जुड़ी रही, इसलिए उनका आर्थिक सहारा गाना बजाना ही है.  सरकारी किताबों में ये सभी गाने-बजाने वाले भिखारी हैं, लेकिन 32 साल की हेमलता तिवारी इन जैसों को ढूंढकर “आर्टिस्ट” बनने का मौका दे रही है.

अमिताभ, आलिया जैसे सितारों से मिल चुके हैं बैंड के आर्टिस्ट

“स्वराधार” यानी स्वर के आधार पर चलने वाली इनकी संस्था ट्रेनों स्टेशनों पर ऐसे संगीत के हुनरबाजों को तलाशती हैं और म्यूज़िक की ट्रेनिंग देकर बड़े टीवी चैनलों या मंचों पर परफॉर्म करवाती हैं. हेमलता तिवारी के बैंड में मुंबई के ऐसे 80 आर्टिस्ट परफॉर्म कर रहे हैं. अब तक 6 चैनलों पर “स्वराधार” के आर्टिस्ट परफॉर्म कर चुके हैं. अमिताभ बच्चन, आलिया भट्ट जैसे फ़िल्मी सितारे इनसे रूबरू हुए हैं. इन हुनरबाज़ों के लिए सम्मान की ऐसी घड़ियां इनकी कला की ओर इनका इरादा और मज़बूत करती है.

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ट्रेन में एक शख्स को गाते सुना फिर हुई शुरुआत

हेमलता तिवारी ने बताया कि बारह साल पहले ऐसा हुआ था कि ट्रेन में मैंने एक शख़्स को बहुत सुरीला गाते सुना, लोग पैसे फेंक के गुज़र रहे थे. उन्हें भिखारी की तरह ही देखते हैं. लेकिन वहीं एक इवेंट में गई तो देखा सिंगर पर लोग कूद पड़े सेल्फ़ी और फ़ोटो के लिए. सर सर करके बड़े आर्टिस्ट का सम्मान मिल रहा था जबकि सुर में वो ट्रेन वाला शख़्स और ये गायक समान मालूम पड़ते थे. तब ही मुझे ये आइडिया आया था. मेरी संस्था में सिर्फ़ ट्रेन और स्टेशनों पर ऐसे गाने बजाने वाले ही हैं. जिन्हें हम आर्टिस्ट की तरह परफॉर्म करवाते हैं.

आर्टिस्ट बनने से मिला अलग सम्मान

ट्रेनों स्टेशनों पर जहां इन्हें ज़ीरो से कुछ सौ मिल जाते होंगे, वहीं चैनलों पर बैंड परफॉरमेंस से कुछ हज़ार की मदद मिल जाती है. जो इनके लिए जीवनदान समान है. पर इनके लिये सबसे बड़ी ख़ुशी है “आत्मसम्मान”. और इनके हुनर को पहचानने वाली सम्माजनक नज़र.  बांसुरी वादक इरशाद शेख़ ने कहा कि स्टेशनों पर बुरी सोच से हमें देखते बात करते हैं. पुलिस भी तंग करती है लेकिन जब से आर्टिस्ट का रूप मिला अब पुलिस से भिड़ने की हिम्मत मिल गई है.

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गायिका संगीता काले ने कहा कि जिस तरह मैं ट्रेन में गाती हूं कोई सम्मान से नहीं देखता. अभी भी 60% लोग हीनभावना से देखते हैं. ऐसे में हमे सम्मान देने के लिए संस्था का काम सराहनीय है. फ़तहराम गोस्वामी का कहना है कि हमें भी पता है कि हम गई गायकों से अच्छा गाते बजाते हैं लेकिन क्या करें आर्थिक हालात ऐसे हैं कि ट्रेन में गाने पर मजबूर हैं लेकिन हेमलता जी से बहुत सहयोग मिलता है. लगता है हमभी कुछ हैं.

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बेगर्स एक्ट में तब्दीली की मांग

अपने माता-पिता को आर्थिक तंगी से जूझते  देख चुकीं हेमलता आज बेसहारा हुनरबाजों को अच्छा जीवन देने निकली हैं. लेकिन सिस्टम के कुछ क़ायदों में तब्दीली से इनकी सेवा को मज़बूत पंख मिल सकते हैं. हेमलता तिवारी ने मांग की कि बेगर्स एक्ट में तब्दीली हो क्योंकि ये ऐसे गाते बजाते हैं तो इनपर पुलिस कार्रवाई करती है, इनको आर्टिस्ट की तरह देखा जाए. बेसहारा हैं, दिव्यांग हैं, इनके लिए थोड़ा सम्माजनक रास्ता निकालना चाहिए. “स्वराधार” का परिवार धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है. हेमलता जैसे मदद के और कई हाथ आगे बढ़ें तो समाज में बड़े बदलाव की उम्मीद की जा सकती है. 


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