दिल्ली चुनाव में कैसे पलटी बाजी? भाजपा ने इस तरह तोड़ा 'आप का तिलिस्म'
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कांग्रेस को भी जाना जा रहा अहम कारण
दिल्ली में भाजपा की प्रचंड जीत के पीछे कांग्रेस को भी अहम कारण माना जा रहा है. हालांकि कांग्रेस का खाता नहीं खुला है. इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 6.34 प्रतिशत वोट हासिल हुआ है. यह पिछले चुनाव की तुलना में करीब दो प्रतिशत ज्यादा है. माना जा रहा है कि कांग्रेस के कारण ‘आप’ को 10 से ज्यादा सीटों का नुकसान हुआ है.
सबसे बड़ी बात यह है कि मोदी सरकार ने कुछ दिनों पहले आम बजट में 12 लाख रुपये तक की कमाई पर आयकर छूट का तोहफा दिया. इसे भी दिल्ली चुनाव के नतीजों में ‘गेम चेंजर’ माना जा रहा है. दिल्ली में एक बड़ी आबादी मध्यम वर्ग और नौकरीपेशा वर्ग की है. आयकर में छूट देने से मोदी सरकार के ऐलान से मध्यम और नौकरीपेशा वर्ग का झुकाव भाजपा की ओर बढ़ा.
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भाजपा की ओर खिसका पूर्वांचली वोट बैंक!
चुनाव में पूर्वांचली वोट बैंक का भाजपा की तरफ आना भी नतीजों में दिखा. कभी इस वोट बैंक को ‘आप’ के साथ माना जाता था. लेकिन, कुछ महीने पहले से जिस तरह से भाजपा ने पूर्वांचली समाज से जुड़े मुद्दों को उठाया. इसमें कोरोना के समय पूर्वांचली लोगों को दिल्ली से बाहर भेजना हो या छठ पूजा के आयोजन को लेकर ‘आप’ नेताओं पर गंभीर आरोप, इन तमाम मुद्दों से एक तरफ भाजपा को फायदा हुआ, तो ‘आप’ को तगड़ा नुकसान हुआ.
भाजपा के मुद्दों की काट नहीं ढूंढ पाई AAP
चुनाव में भाजपा ने अपने प्रचार अभियान में शीश महल, वायु प्रदूषण और यमुना नदी से जुड़े मुद्दों को जोरशोर तरीके से उठाया. आम आदमी पार्टी उसकी काट नहीं ढूंढ पाई. शीशमहल और यमुना की सफाई से जुड़े मुद्दे पर आम आदमी पार्टी शुरू से ही ‘बैकफुट’ पर नजर आती रही. आप नेताओं ने वायु प्रदूषण और यमुना नदी से जुड़े मुद्दों को हल करने में विफल रहने का ठीकरा एलजी और केंद्र सरकार पर फोड़ा.
अरविंद केजरीवाल ने तो यहां तक कह दिया कि उनके नेताओं (खुद उन्हें भी) को राजनीतिक षड्यंत्र के तहत जेल भेजने के कारण दिल्ली के विकास पर ब्रेक लग गया. लेकिन, भाजपा दिल्ली की जनता के मन में केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की असफलता को बैठाने में सफल रही.