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युद्ध की मार से मलबे के ढेर में तब्दील गाजा, खंडहर हो चुकी मस्जिद; फिलिस्तीनी कैसे मना रहे ईद

गाजा में इस साल की ईद कुछ अलग है. युद्ध और कठिनाइयों के बीच, यहां के लोग अपने संघर्षों को पीछे छोड़ते हुए, अपने दिलों में आशा और खुशियां लेकर ईद मना रहे हैं. 2025 की ईद..गाजा के लोगों के लिए एक प्रतीक है – साहस, प्यार और एकता का. जो तस्वीरें सामने आईं हैं वो तस्वीरें गवाह है कि जीवन के संघर्षों के बावजूद, उम्मीद की रोशनी कभी मंद नहीं होती.

ध्वस्त मस्जिदों के बाहर नमाज 

हमलों के दौरान गाजा में कई जगहों पर मस्जिदें तबाह हो चुकी हैं. जिन जगहों पर पहले अल्लाह की इबादत होती थी, वहां अब खंडहर हैं. बावजूद इसके फिलिस्तीनी मुसलमानों ने अपने अपनी हिम्मत को बनाए रखते हुए टूटी मस्जिदों के बाहर भी ईद की नमाज अदा की. यह नजारा दिल को चीरने वाला था. रमजान के पवित्र महीने के बाद, जहां लोग अल्लाह की पूजा करते हुए ईद के दिन खुशी और उमंग के साथ परिवार के साथ इकट्ठा होते हैं, वहीं गाजा में इस बार ये ईद दुख और पीड़ा में बदल चुका है. यहां के लोग भूख, तबाही, और अपनों के खोने के गम में डूबे हुए हैं.

दर्द, बेबसी और भूखमरी

जब दुनिया में लोग खुशियों का जश्न मना रहे थे, गाजा के लोग गम और दर्द में डूबे हैं. इस्राइली हमलों के चलते गाजा में खाने-पीने की संकट ने भी गंभीर रूप ले लिया है. इन हमलों के बाद, वहां खाद्य आपूर्ति बाधित हो गई, और तब से ही मानवीय मदद की कोई संभावना नहीं थी. इस्राइल ने गाजा में किसी भी खाद्य, ईंधन या चिकित्सा सहायता को भेजने पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी. नतीजा, यहां के लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं. ऐसे में, ईद पर पकवान तैयार करना और परिवार के साथ बैठकर दावत करना, उनके लिए एक ख्वाब जैसा बन गया है. लोग अपने परिवार वालों की कब्रों पर जाकर उनकी यादों के साथ दिन बिता रहे हैं. ये ईद उल्लास और खुशियों की नहीं बल्कि दर्द, बेबसी और भूखमरी की है. बच्चों को न तो नए कपड़े मिल पाए हैं, न मिठाइयां, और न ही खिलौने.

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गाजा में इस संघर्ष ने हर किसी की जिंदगी को बदलकर रख दिया. यह संघर्ष तब शुरू हुआ जब 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इस्राइल पर हमला किया था, और इसके बाद, इस्राइली सेना ने गाजा पर बमबारी शुरू कर दी, जिससे हजारों निर्दोष लोग मारे गए. आज गाजा के लोग सिर्फ अपने जीवन की रक्षा करने में लगे हैं. गाजा में ईद 2025 केवल एक संघर्ष की कहानी बनकर रह गई है, लेकिन इसके बावजूद, गाजा के लोग अपनी आस्था और साहस के साथ जीने की उम्मीद रखते हैं. यह एक ऐसी कहानी है, जो कभी खत्म नहीं होगी. जब तक गाजा में सच में शांति और सुख का आगमन न हो. सवाल ये क्या अब कभी यह धरती खुशियों से फिर से महक सकेगी? क्या इस संघर्ष के बीच गाज़ा के लोग एक बार फिर से ईद का असली आनंद ले सकेंगे? और क्या ये उदास चेहरे फिर मुस्कुरा सकेंगे?



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